जयपुर, 13 मार्च 2019ः गोदरेज इंटेरियो द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि बच्चे और किशोर सबसे अधिक नींद से वंचित हैं। आम तौर पर चिकित्सक भी सलाह देते हैं कि रात 10 बजे के आसपास हमें सो जाना चाहिए, लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि अब लोगों की नींद संबंधी आदतें बदलने लगी हैं और वे रात 10 बाद सोते हैं, जिससे वे हमेशा नींद की कमी के शिकार रहते हंै। इसमें इस बात का कोई महत्व नहीं है कि वे कितने घंटे नींद निकालते हैं।
यह अध्ययन भारतीय नागरिकों से मिले उन संकेतों पर आधारित हैं, जो उन्होंने वेबसाइट ेसममच/10 पर मौजूद स्लीप-ओ-मीटर पर अपने स्लीप टेस्ट के दौरान जाहिर किए हैं। 3.5 लाख से अधिक भारतीयों ने स्लीप टेस्ट दिया है। जयपुर भारत में सबसे अधिक नींद से वंचित लोगों के शहर में से एक है। अध्ययन से पता चला है कि समय पर नहीं सोने की समस्या केवल वयस्कों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि बच्चों में भी यह समस्या है। 18 वर्ष से कम उम्र के 65 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि सवेरे जागने के बाद वे थके हुए और सुस्त अनुभव करते हैं। इससे पता चलता है कि नई पीढ़ी के बीच भी नींद की कमी एक गंभीर समस्या है। उत्तर देने वाले लगभग 38 प्रतिशत बच्चों ने स्वीकार किया कि ‘‘स्क्रीन टाइम‘‘, जिसमें टेलीविजन और फोन शामिल हैं, के कारण उनके सोने के समय में देरी होती है, जबकि 38 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे आधी रात के बाद सोते हैं, जबकि आदर्श समय रात 10 बजे के आसपास का है।
अपोलो हॉस्पिटल्स के पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. श्रीकांता ने शोध के निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “विशेष रूप से स्कूली परीक्षाओं के दौरान बच्चे और उनके सोने के तरीके और आदतें माता-पिता के लिए लगातार चिंता का विषय हैं। माता-पिता को परीक्षा से संबंधित चिंता और तनाव से निपटने के लिए पहले कदम के तौर पर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चों को पर्याप्त नींद मिल रही है या नहीं। परीक्षाओं के दौरान तो पर्याप्त नींद लेना और भी आवश्यक है, क्योंकि यह बच्चों को ध्यान केंद्रित करने, फोकस को कायम रखने और सूचनाओं को बेहतर ढंग से याद करने में मदद करता है। गोदरेज इंटेरियो मेट्रेस द्वारा किए गए ेसममच/10 अध्ययन के अनुसार भारत में 84 प्रतिशत से अधिक बच्चे नींद की कमी से जूझ रहे हैं। यह राष्ट्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इसके कारण, हमारे देश की अगली पीढ़ी मोटापे, तार्किक कठिनाई, भावनात्मक असंतुलन और अन्य कई अन्य विकारों से ग्रस्त होने लगी है।‘‘
ेसममच/10 के स्लीप-ओ-मीटर निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, गोदरेज इंटेरियो डिवीजन के चीफ आॅपरेटिंग आॅफिसर श्री अनिल माथुर ने कहा, ‘‘स्लीप/10 एक अवधारणा है जो वास्तव में हमारी
स्वास्थ्य सेवा रेंज के उत्पाद विकास चरण से उभरी है। जैसा कि हमने गहराई से देखा, हमें एहसास हुआ कि सही गद्दे का चयन करने की तुलना में नींद की कमी से जुड़ी चिंता बहुत बड़ी थी। 91 प्रतिशत से अधिक भारतीय नींद की कमी से जुझ रहे हैं। 3 लाख से अधिक भारतीयों द्वारा दिए गए स्लीप-ओ-मीटर टेस्ट से हमें पता लगा कि हमारे बच्चे भी नींद से वंचित हैं। इस मसले पर बहुत अधिक गंभीरता के साथ चर्चा होनी चाहिए, क्योंकि इससे हमारे राष्ट्र के भविष्य को खतरा है।‘‘