Editor-Manish Mathur
जयपुर 17 नवंबर 2020 देश की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने फ्लाई ऐश से जियो-पॉलिमर काॅर्स एग्रीगेट को विकसित करने में सफलता हासिल है। इससे पत्थर से निर्मित गिट्टी / खंड पर निर्भरता खत्म होगी और पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
फ्लाई ऐश से जियो-पॉलिमर काॅर्स एग्रीगेट के उत्पादन पर एनटीपीसी के रिसर्च प्रोजेक्ट ने भारतीय मानकों के वैधानिक मापदंडों को पूरा किया है और इसकी पुष्टि नेशनल काउंसिल फाॅर सीमेंट एंड बिल्डिंग मैटीरियल्स और निर्माण सामग्री (एनसीसीबीएम) द्वारा की गई है।
एनटीपीसी ने प्राकृतिक एग्रीगेट के विकल्प के रूप में जियो-पॉलिमर काॅर्स को सफलतापूर्वक विकसित किया है। कंक्रीट कार्यों में उपयोग करने के लिए इसके उपयुक्त होने के बारे में भारतीय मानकों के अनुसार तकनीकी मानकों का परीक्षण एनसीसीबीएम, हैदराबाद द्वारा किया गया था और इसके परिणाम स्वीकार्य सीमा में आए हैं।
राख का उपयोग बढ़ाने की दिशा में एनटीपीसी द्वारा किए जा रहे रिसर्च और डेवलपमेंट के तहत यह उपलब्धि हासिल की गई है।
देश में हर साल पत्थर की गिट्टी / खंड की मांग कुल मिलाकर 2000 मिलियन मीट्रिक टन के करीब पहुंच जाती है। एनटीपीसी द्वारा फ्लाई ऐश से विकसित गिट्टी / खंड इस मांग को काफी हद तक पूरा करने में मदद करेगी और पर्यावरण पर प्राकृतिक एग्रीगेट्स के इस्तेमाल से होने वाले प्रभाव को कम करेगी। प्राकृतिक एग्रीगेट के लिए पत्थर के उत्खनन की आवश्यकता होती है।
देश में कोयले से बने थर्मल पावर प्लांट द्वारा हर साल लगभग 258 एमएमटी राख उत्पादित की जाती है। इसमें से लगभग 78 प्रतिशत राख का उपयोग किया जाता है और शेष राख अनुपयोगी रह जाती है। शेष राख का उपयोग करने के लिए एनटीपीसी वैकल्पिक तरीकों की खोज कर रहा है जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक राख का उपयोग करते हुए गिट्टी / खंड का निर्माण करने संबंधी वर्तमान अनुसंधान परियोजना शामिल है।
जियो-पॉलिमर एग्रीगेट का व्यापक इस्तेमाल निर्माण उद्योग में किया जाता है, इस तरह राख को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है। यह गिट्टी / खंड पर्यावरण के अत्यंत अनुकूल है और कंक्रीट में इस्तेमाल करने के दौरान इसके साथ किसी भी प्रकार की सीमेंट की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसमें फ्लाई ऐश आधारित जियो-पॉलिमर मोर्टार इसे पक्का करने के काम आता है। जियो-पॉलिमर गिट्टी / खंड से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी और इससे पानी की खपत को भी कम किया जा सकेगा।