टिकाऊपन के जरिए लचीलेपन और लाभदेयता में वृद्धि -श्री रामनाथ वैद्यनाथन, गोदरेज ग्रुप के महाप्रबंधक और एनवायरमेंटल सस्‍टेनेबिलिटी के प्रमुख

Editor-Manish Mathur

जयपुर 01 दिसंबर 2020  – कोविड-19 संकट ने न केवल जीवन और आजीविकाओं के लिए खतरा पैदा किया है, बल्कि दुनिया की सामाजिक एवं आर्थिक संरचना को भी तहस-नहस कर दिया है। इसने हमें इस बात का स्‍मरण भी दिला दिया है कि प्रकृति की विकरालता के सामने हम कितने बौने और असहाय हैं। अब हम महसूस कर चुके हैं कि महज कोई एक अप्रत्‍याशित घटना, अर्थव्‍यवथा को पटरी से नीचे ला सकती है। इस महामारी ने हमें कई सबक सीखाये हैं जो टिकाऊपन के महत्‍व को बतलाते हैं। धरातलीय वास्‍तविकता दर्शाती है कि जिन संगठनों/समूहों ने टिकाऊपन को अपनी जिम्‍मेदारी मानते हुए वर्षों से इसे अपनी व्‍यावसायिक रणनीति में प्रमुखता से शामिल किया है, वो इस परिस्थिति का बेहतर तरीके से सामना करने में सक्षम रहे हैं और उन्‍होंने संयम के साथ इस भयंकर स्थिति के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में सफल भी रहे हैं।

हालांकि, व्‍यवसाय जगत, दीर्घस्‍थायित्व या टिकाऊपन की अवधारणा से अपरिचित नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि क्‍या इस दुनिया को दीर्घस्‍थायी बनाने के लिए पर्याप्‍त प्रयास किये जा रहे हैं, लचीलापन अपनाया जा रहा है और क्‍या आसन्‍न जलवायवीय खतरों को कम करने की कोशिश हो रही है।

घटता जुड़ाव

आज, टिकाऊपन, लगभग हर बड़े व्‍यवसाय की पहचान है, और शेयरधारकों द्वारा इसमें प्रमुखता से रूचि प्रकट की जा रही है। टिकाऊपन के लक्ष्‍यों पर संकेंद्रित तरीके से ध्‍यान दिये जाने के साथ, अनेक संगठनों के पास पर्यावरण-पोषक होने के प्रमाण-पत्र (ग्रीन सर्टिफिकेशन) हैं और उन्‍होंने इस दिशा में कई महत्‍वपूर्ण उपलब्धियां भी हासिल की है। उनकी पहलें प्रामाणिक, परिमाणित और वार्षिक टिकाऊपन रिपोर्ट्स में प्रकाशित हैं। उनके सक्रिय योगदानों के बावजूद, हम धरतीवासी ग्‍लोबल वार्मिंग (वैश्विक गर्मी) को 1.5˚C से कम करने के लक्ष्‍य को हासिल करने से काफी दूर हैं, जिससे पता चलता है कि इस लक्ष्‍य हेतु किये जाने वाले प्रयासों में कहीं न कहीं भारी कमी है। सरसरी तौर पर दो समस्‍याएं स्‍पष्‍ट हैं। पहली, मनुष्‍य का यह स्‍वभाव है कि जब तक कोई भीषण स्थिति पैदा नहीं होती, तब तक हम उस दिशा में बेहतरी के बदलाव लाने की कोशिश नहीं करते हैं। महामारी का मौजूदा झटका और महाराष्‍ट्र में हाल ही में घटित बिजली कटने की घटना, व्‍यवसाय पारितंत्र के लिए गंभीर अनुस्‍मारक हैं कि वो अपनी टिकाऊ सोच को बेहतर बनाये और अप्रत्‍याशित घटनाओं से निपटने के लिए स्‍वयं को सक्षम बनाये। आज, हमारा सबसे अधिक ध्‍यान महामारी पर है, लेकिन शीघ्र ही, हमें जलवायु परिवर्तन के परिणामों के बारे में सोचना पड़ सकता है जो इससे दस गुना अधिक गंभीर हो सकते हैं।

दूसरी, यह परिस्थितिजन्‍य मांग है कि हम बड़े पैमाने पर प्रणालीगत एवं नीतिगत परिवर्तन लायें। उदाहरण के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर राष्‍ट्रीय और राज्‍यीय नीतियों में अंतर है। साथ ही, हर कुछ वर्षों पर नीतियां बदलती रहती हैं, फिर ऐसी अनिश्चितता के चलते निजी निवेश बाधित होता है। नीतियां एकसमान, संगत और स्‍पष्‍ट तथा निजी पहलों हेतु सहयोगपूर्ण होनी चाहिए।

अन्‍य चुनौतियां

वर्तमान संकट ने हमारे पुराने श्रम नियमों पर पुन: चर्चा की आवश्‍यकता को रेखांकित किया है। अल्‍पकालिक और अस्‍थायी श्रम से जुड़ी ऐसी नीतियां बनाये जाने की दरकार है जिससे व्‍यवसायक को आवश्‍यक बल मिल सके। आगे, जल और अनिवार्य संसाधन को इसका उचित स्‍थान (और कीमत) मिलनी चाहिए। कृषि और औद्योगिक उपयोग हेतु वास्‍तविक वाटर प्राइसिंग ढांचे की आवश्‍यकता है। उद्योगों के लिए ‘ग्रीन’ (हरित) की परिभाषा को स्‍पष्‍ट और मानकीकृत किया जाना आवश्‍यक है, ताकि उनके उत्‍पादों और प्रक्रियाओं को बेंचमार्क किया जा सके, उनका मापन एवं परिमाणन हो सके। उद्योग से जुड़े मंचों और केंद्रस्‍तरीय अभियानों में जागरूकता पैदा करने और प्रीमियम ग्रीन सॉल्‍यूशंस को उपभोक्‍ताओं द्वारा अपनाये जाने हेतु प्रेरित किया जा सके। ऊर्जा के वितरण की दृष्टि से, देश के समक्ष संचरण एवं वितरण (टीएंडडी) के भारी नुकसान की चुनौती से निपटने के लिए भी रणनीति बनाये जाने की जरूरत है। मौजूदा ढांचा, इलेक्ट्रिक व्‍हीकल्‍स (ईवी) बाजार के लिए अनुकूल नहीं है जिसके चलते उपभोक्‍ताओं द्वारा आवागमन हेतु ग्रीनर मोड्स को अपनाने के मार्ग में रूकावट पैदा हो रही है।

समाधान

शीर्ष-स्‍तरीय नीति और प्रणालीगत परिवर्तनों के अलावा, अब समय की मांग है कि हमने स्‍वयं के लिए जो लक्ष्‍य निर्धारित किये हैं, उसे हासिल करने की दिशा में प्रयास शुरू करें। विशेषकर विद्युत क्षेत्र – नवीकरणीय ऊर्जा जगत और कम ऊर्जा खपत के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर कार्य किये जाने की जरूरत है, लेकिन इस संबंध में राज्‍यों की नीति समान, संगत एवं एकल होनी चाहिए। मौजूदा स्थिति में, यह आवश्‍यक है कि धुंआ उगलने वाली गाडि़यों पर जुर्माने का प्रावधान हो या न हो, लेकिन हरित पहलों को प्रोत्‍साहन अवश्‍य दिया जाये। नीतियों, शर्तों, दस्‍तावेजीकरण एवं प्रक्रियाओं में संगतता और दृढ़ता होनी चाहिए। व्‍यवसायों का मूल्‍यांकन, टिकाऊपन के पारदर्शी, मुक्‍त, वैश्विक मानकों के अनुरूप होना चाहिए। यह प्रत्‍यक्ष बदलाव लाने के वास्‍तविक उद्देश्‍य के साथ किया जाना चाहिए, भले ही इसके लिए महत्‍वाकांक्षी और कठोर लक्ष्‍य निर्धारित करने पड़ें।

महामारी ने गंभीर और अनपेक्षित तरीके से हमारी परिचालन धारणों को उलट दिया है और इसने भविष्‍य के लिए अनिश्चितता का एक लंबा साया छोड़ दिया है। व्‍यवसायों को अभूतपूर्व स्थितियों का सामना करना पड़ा है, जैसे वर्क फ्रॉ होम और श्रम का अभाव आदि। फिर भी, अन्‍य विकल्‍पों के अभाव में, व्‍यवसायों को स्‍वयं के लिए इस मॉडल को कारगर बनाना होगा। यदि आपूर्ति श्रृंखला की बात करें, तो कई संगठनों ने साथ मिलकर लॉजिस्टिक रास्‍ते साझा किये हैं, जो कि अन्‍यथा संभव नहीं हो पाता। इनसे कॉर्पोरेट्स को यह महसूस हो चुका है कि अलग तरीके से कार्य करने के लिए यदि साहसिक कदम भी उठाने पड़े तो उससे परहेज नहीं करना चाहिए, बशर्ते इससे कुशलता एवं टिकाऊपन बेहतर हो। उदाहरण के लिए, यंत्रचालन में वृद्धि के साथ, विस्‍थापित कार्यबल के कौशलोन्‍नयन के जरिए उन्‍हें भविष्‍य की नौकरियों के लिए तैयार किया जा सकता है। दूरस्‍थ तरीके से कार्य करने के परिवर्तित मानक के साथ, 70-80 प्रतिशत अनावश्‍यक आवागमन से बचा जा सकता है, जिससे कार्बन के उत्‍सर्जन में काफी कमी आयेगी। महत्‍वपूर्ण ऑनलाइन सम्‍मेलनों का आयोजन ऑनलाइन किया जा सकता है, जिससे टनों ईंधन की बचत होगी और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। ये सभी बिंदु अधिक कुशलता के साथ कार्य करने और कारोबार चलाने की दिशा में संकेत देते हैं। दरअसल, दीर्घकालिक रूप से, टिकाऊपन से लाभदेयता स्‍वत: हासिल हो जाती है।

विकास और टिकाऊपन के बीच परस्‍पर संबंध

सामाजिक और पर्यावरणीय टिकाऊपन, दीर्घकालिक रूप से लाभप्रद है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्‍यवसाय जीरो-डिस्‍चार्ज मैन्‍युफैक्‍चरिंग करता है, तो प्रक्रिया में इसके निवेश से जल की स्‍वत: बचत हो जायेगी और दीर्घावधि में अधिक लाभदेयता हासिल हो सकेगी। साथ ही, यदि कोई संगठन कम कार्बन के उपयोग के तरीके अपनाता है, तो उसे बाद में कार्बन सिक्‍वेस्‍ट्रेशन या ऑफसेट्स में बचत होगी। अनुकूलन का खर्च, प्राय: न्‍यूनीकरण से काफी कम होता है। इसलिए, हरित तरीके से कारोबार बढ़ाने को लेकर कोई भी दुविधा नहीं है, और टिकाऊपन, आसान, सुसाध्‍य और वांछनीय नीति बन चुका है।

माइक्रोसॉफ्ट के संस्‍थापक, बिल गेट्स द्वारा दुनिया की कई दु:साध्‍य समस्‍याओं के हल के लिए अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्‍सा आवंटित किये जाने हेतु लिया गया निर्णय, समाज के लिए हितकारी कार्य करने का एक अनूठा उदाहरण है। गोदरेज इंस्‍ट्रीज में, टिकाऊ को प्रतिस्‍पर्द्धा के तौर पर नहीं देखा जाता है। यह, टिकाऊपन के लिए सहयोग का समर्थन करता है। अपनी ग्रीनर इंडिया पहल के अंतर्गत, यह शून्‍य कचड़ा भराव, कार्बन न्‍यूट्रैलिटी, पॉजिटिव वाटर बैलेंस, विशिष्‍ट ऊर्जा खपत में 30 प्रतिशत कमी और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के अधिक उपयोग की इच्‍छा रखता है।

निष्‍कर्ष

चूंकि व्‍यवसाय नये सिरे से अपनी शुरुआत करने हेतु स्‍वयं को अनुकूलित कर रहे हैं, इसलिए यह व्‍यवसाय के लिए महज जिम्‍मेदार सोचतक ही सीमित नहीं है; बल्कि यह टिकाऊपन के मामले में वास्‍तविक, धरातलीय एवं गंभीर होने के बारे में है। अच्‍छी बात यह है कि लगभग 80-90 प्रतिशत टिकाऊ व्‍यवहार को बहुत कम खर्च में हासिल किया जा सकता है। यह समय है कि हम अपनी कथनी को लेकर ईमानदार रहें और जलवायु परिवर्तन को कम करने के व्‍यापक संकल्‍प को पूरा करें। व्‍यवसाय जितना अधिक टिकाऊ होगा, संकट का सामना करने के लिए वो उतना ही बेहतर तरीके से तैयार होगा।

 श्री रामनाथ वैद्यनाथन, गोदरेज ग्रुप के महाप्रबंधक और एनवायरमेंटल सस्‍टेनेबिलिटी के प्रमुख हैं, जिन्‍हें विनियामक/नीति से लेकर प्रोसेस इंजीनियरिंग, ऑपरेशंस, स्‍ट्रेटजी एडवायजरी, बिजनेस डेवलपमेंट, और प्रबंधन तक की विभिन्‍न भूमिकाओं में पर्यावरण, ऊर्जा एवं जल क्षेत्र में एक दशक से अधिक समय का अनुभव है।

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