Editor-Manish Mathur
जयपुर 06 दिसंबर 2020 अनुसंधान निदेशालय व मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘विश्व मृदा दिवस‘‘ शनिवार, 05 दिसम्बर, 2020 को अनुसंधान निदेशालय, राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर मे प्रातः 10.30 बजे आयोजित किया गया। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 05 दिसम्बर. को विश्व मृदा दिवस घोषित किया है।
डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने वेबिनार के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए बताया कि आज के परिपेक्ष्य में मृदा स्वास्थ्य तथा मानव स्वास्थ्य की गुणवत्ता महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होनें बताया कि दवाईयों के अत्यधिक प्रयोग से खाद्य पदार्थो में रसायनों के दुष्प्रभाव सामने आ रहे है। अतः ग्राहकों द्वारा ‘‘पेस्टीसाईड रेजीड्यू फ्री भोजन‘‘ या ग्रीन फूड की मांग बढ़ती जा रही हैं, इसके लिए जैविक खेती पर जोर देने की प्रबल आवश्यकता हैं ताकि रसायन मुक्त खाद्यान्न प्राप्त किया जा सके साथ ही मृदा का जैविक कार्बन स्तर को भी बढ़ाया जा सके। देश में आठ प्रकार की मृदायें पायी जाती है जिनमें अलग-अलग प्रकार के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण होते है, जिनके अनुसार उनका उपयोग करना चाहिए। मृदा में जैविक कार्बन स्तर 0.3-0.4 प्रतिशत से बढ़ाने की अति आवश्यकता है ताकि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में अनुकूल प्रभाव पड़े एवं मृदा की उत्पादकता क्षमता बढ़ाई जा सके।
डाॅ. ऐ. के. सिंह, पूर्व कुलपति, विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्यप्रदेश एवं पूर्व उप-महानिदेशक (एनआरएम), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने उद्बोधन में बताया कि मृदा के देश में विभिन्न वैज्ञानिकों को मिलकर मृदा स्वास्थ्य के उत्तम प्रबन्धन पर मिलकर कार्य करना होगा। यदि हम मृदाओं का सही प्रबन्धन करते हैं तो ये जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी कम करती है। साथ ही उन्होनें बताया कि मृदा के कार्बन स्तर पर बनाये रखने की अति आवश्यकता है ताकि मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उचित मात्रा व सूक्ष्म जीवों की संख्या बनी रह सके जिससे मृदा की उर्वरता एवं उत्पादकता क्षमता बनी रह सके।
डाॅ. एस. के. सिंह, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं मृदा उपयोग योजना, नागपुर ने अपने उद्बोधन में मृदा स्वास्थ्य को सहेज कर रखने की अपील की। सर्वे के अनुसार मृदा में गुणवत्ता के विभिन्न प्रकार के घटक होते है। साथ ही उन्होनें बताया कि भारतवर्ष में विभिन्न तरह की मृदायें पायी जाती हैं, जिसका प्रयोग उनकी गुणवत्ता के आधार पर करने की आवश्यकता हैं एवं मृदा के क्षरण को रोकने की नितान्त आवश्यकता है।
कार्यक्रम में अनुसंधान निदेशक डाॅ. शान्ति कुमार शर्मा ने अपने उदबोधन में कहा कि मृदा एक सजीव संघटक है, जिसमें असंख्य सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता हमेशा बनी रहती हैं, साथ ही उन्होनें बताया कि मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा 0.75 प्रतिशत से अधिक एवं सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या प्रति ग्राम मिट्टी में कम से कम 10 लाख से ऊपर होनी चाहिए।
कार्यक्रम में सभी मेहमानों का स्वागत डाॅ. रामहरि मीणा, विभागाध्यक्ष, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान विभाग ने किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जगदीश चैधरी एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. सुभाष चन्द्र मीणा, कार्यक्रम सचिव ने दिया। इस कार्यक्रम में 408 प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।