Editor-Manish Mathur
जयपुर 01 जनवरी 2021 – को कृषि विज्ञान केन्द्र, डूंगरपुर द्वारा एक कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसके मुख्य अतिथि डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. एस.एल. मून्दड़ा, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने की। कार्यक्रम के प्रारम्भ में डाॅ. सी.एम. बलाई, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रभारी, कृषि विज्ञान केन्द्र, डूंगरपुर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने उद्बोधन में केन्द्र के द्वारा आयोजित की जा रही विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ. राठौड़ ने कृषकों को आव्हान किया कि किसानों को एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाना चाहिये एवं बदलते समय में नवीनतम व आधुनिक खेती को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत योगदान है और नवीनतम प्रौद्योगिकीयों के माध्यम से कृषक इसे और अधिक लाभगकारी बना सकते हैं। उन्नत किस्मों के फलदार पौधे, सब्जियां, मुर्गीपालन, बकरीपालन, अजोला, वर्मी कम्पोस्ट एवं छोटे-छोटे फार्म पोण्ड बनाकर मछली पालन द्वारा खेती में टिकाऊपन आयेगा और आय में वृद्धि होगी। डाॅ. राठौड़ ने अपील की कि कृषकों को कृषि में संचार तकनीकियों का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिये और कृषि यांत्रिकरण, जैविक उर्वरक व उत्पादों का प्रयोग करते हुए कृषि में लागत को कम करना चाहिये।
अपने उद्बोधन में उन्होंने सुझाव दिया कि जिले की छोटी कृषि जोत को देखते हुए कुषकों के खेत पर समन्वित कृषि प्रणाली मॉडल विकसित करवाया जावें ताकि माननीय प्रधानमंत्री जी का वर्ष 2022 तक कृषकों की आय दुगुनी करने का सपना साकार हो सके। उन्होंने कहा की जिले के छोटी कृषि जोत के कारण जनजाति परिवारों का कृषि के प्रति रुझान कम होना चिन्ता का विषय है। अतः पलायन को रोकने के लिये कृषकों में नवीन कुशलताएं विकसित कर उन्हें स्वावलम्बी बनाना होगा।
निदेशक प्रसार शिक्षा डाॅ. सम्पत लाल मून्दड़ा ने कृषकों को संबोधित करते हुए कहा कि केन्द्र के वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहें तथा नवीनतम तकनीकियों को अपनाते हुए आर्थिक रूप से सक्षम होकर आजीविका में सुधार करें। जिन कृषकों की छोटी कृषि जोत है वह उन्नत मुर्गीपालन एवं बेमौसमी सब्जियों की खेती कर अधिक आय अर्जित कर सकते है। ग्रामीण क्षेत्र मे कृषि से प्राप्त उत्पादों का प्रसंस्करण हेतु छोटे-छोटे कुटीर उद्योग स्थापित करने हेतु प्रेरित किया।
केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रभारी डाॅ. सी.एम. बलाई ने इस कार्यक्रम में मृदा स्वास्थ्य सुधार एंव फसल पोषण में मिट्टी परीक्षण का महत्व, पोषक तत्वों की दक्षता बढ़ाने हेतु खादों एवं ऊर्वरकों का मिला-जुला प्रयोग व फसल प्रणाली में दलहनी फसलों के समावेश से लाभ विषयों पर कृषकों को जानकारी दी।
कृषक वैज्ञानिक संवाद के दौरान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाताओं एवं निदेशकों ने किसानों से सीधे रूबरू बात करते हुए अनेकों विषयों पर जानकारियां दी। कृषि महाविद्यालय, भीलवाड़ा के अधिष्ठाता डाॅ. के.एल. जिनगर ने पौध संरक्षण जैसे पहलुओं पर चर्चा की। कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डाॅ. अजय कुमार शर्मा ने कृषि यांत्रिकीकरण पर चर्चा करते हुए कस्टम हायरिंग सेन्टर के महत्व पर प्रकाश डाला तथा कृषि में प्रयुक्त उन्नत यंत्रों की जानकारी दी। इसी प्रकार मात्स्यिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डाॅ. बी.के. शर्मा ने दक्षिणी राजस्थान की आदिवासी बहुल किसानों को मछली पालन की सम्भावनाओं पर अपने विचार व्यक्त किये। इसी तरह निदेशक अनुसंधान डाॅ. एस.के. शर्मा ने बताया कि डूंगरपुर को राजस्थान के पहले पूर्ण कार्बनिक कृषि जिले के रूप में पहचान मिली है। उन्होंने डूंगरपुर में आर्गेनिक फार्मिंग को ओर आगे बढ़ाने के लिये किसानों को प्रेरित किया।
इस कृषक वैज्ञानिक संवाद में कृषकों द्वारा पूछे गये कृषि सम्बन्धी सवालों के जवाब वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये। इस कार्यक्रम में प्रगतिशील कृषक श्रीमती शान्ता पटेल ने कृषि विज्ञान केन्द्र की प्रसंशा करते हुए कहा कि केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा प्रशिक्षण, प्रथम पंक्ति प्रदर्शन, बैमौसमी सब्जियों की खेती में उन्नत तकनीकी जैसे इन्टरक्राॅपिंग व समन्वित कीट रोग नियन्त्रण के बारे में समय समय पर दी गई तकनिकी सलाह से कृषकों की आय में वृद्वि हुई है व गुजरात में युवाओं का पलायन कम हुआ है। श्री अब्बास भाई गलियाकोट ने के.वी.के. के वैज्ञानिक द्वारा दी गयी तकनीकी सलाह से अपने फार्म पर समन्वित कृषि प्रणाली माॅडल (भैंसपालन, बकरी पालन, सब्जी उत्पादन, हरा चारा, वर्मीकम्पोस्ट व अजोला) के बारे में अपने अनुभव बताते हुए दल के समक्ष प्रशंसा की। श्री प्रवीन कोटेड़ देवल ने अपने फार्म पर विदेशी सब्जियों की खेती जैसे ब्राॅकली, लालगोभी, लेट्युस, संकर टमाटर की खेती बून्द-बून्द सिंचाई प्रणाली द्वारा करते हुए परम्परागत फसलों की बजाय अधिक आय प्राप्त करने की बात कही। श्रीमती मन्जूला ने जैविक सब्जियों की खेती व मार्केटिंग के बारे में केवीके द्वारा तकनीकी ज्ञान लेकर गांव की अन्य महिला कृषकों को भी जोड़ा है। श्री जीवन पटेल बुझेड़ा ने केन्द्र द्वारा तकनीकी सलाह से डेयरी फार्म, पाॅल्ट्री फार्म, अजोला इकाई आदि स्थापित की है व सहकारी डेयरी स्थापित कर दूध संग्रहण, पाश्चुराईजेशन व पेकिंग कर स्वंय द्वारा बिछीवाड़ा क्षैत्र में प्रति दिन दो हजार लीटर दुग्ध की बिक्री के बारे में बताया। श्री असगर अली गांव घोटात जिला डूंगरपुर ने जैविक खेती की उपयोगिता को समझते हुए वैज्ञानिको से निवेदन किया वे जिले में जैविक खेती को बढावा देने के लिए अधिक प्रशिक्षण आयोजित करें और इसके अधिक से अधिक माॅडल जिले में लगवाए।
कार्यक्रम के अन्त में डाॅ. सी.एम. बलाई, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, डूंगरपुर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।