Editor-Manish Mathur
जयपुर 11 जनवरी 2021 – तांडव’ का ट्रेलर लॉन्च होने के साथ ही लोग यह शो देखने के लिये उत्सुक हो रहे हैं। आप इस शो के रिलीज होने के लिये कितना उत्साहित हैं?
एक बार इस शो के बाहर आने के बाद मुझे गंभीर और पारखी लोगों से शो के बारे में उनकी राय जानने में ज्यादा दिलचस्पी है। मैं इसके लिये बेहद उत्सुक हो रहा हूं। चूंकि, मैं सोशल मीडिया पर नहीं हूं, इसलिये शो के टीज़र और ट्रेलर के बारे में लोगों की राय जानने में मेरी दिलचस्पी नहीं है। बेशक, मैं फैन्स की प्रतिक्रिया का सम्मान करता हूं लेकिन समीक्षाएं मुझे ज्यादा आकर्षित करती हैं। मुझे ‘तांडव’ को लेकर विश्वास है और मुझे उम्मीद है कि लोग इसे पसंद करेंगे।
आपने ‘तांडव’ के अपने किरदार की तैयारी कैसे की?
आप जब कुछ करते हैं और किसी खास किरदार की तैयारी करते हैं तो आपके सामने काफी सारी प्रभावित करने वाली चीजें आती हैं। मेरा किरदार एक राजनेता का है, जोकि सार्वजनिक जगहों पर ज्यादा बोलता है और इसलिये मुझे समर के किरदार के लिये संस्कृत युक्त हिन्दी भाषणों की तैयारी करनी पड़ी। यहां सबसे मजेदार बात यह है कि मुझे संस्कृत बोलना बहुत पसंद है। कभी ऐसा होता था कि शूटिंग का भारी-भरकम दिन होता था तो कभी काफी हल्का-फुलका दिन रहता था। इस शो में मुझे हर दिन कम से कम 4 संस्कृत भाषण बोलने होते हैं, इसलिये मुझे मुश्किल लाइनों को काफी रटना पड़ता था।
जब इस शो के मेकर्स ने पटौदी पैलेस में ‘तांडव’ की शूटिंग के बारे में सोचा तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? पैलेस में शूटिंग करना आपके लिये कितना आसान था?
हमने पटौदी पैलेस में इस शो के काफी सारे सीक्वेंस फिल्माये हैं। मैंने दुनिया के किसी भी जगह से ज्यादा इस पैलेस में वक्त बिताया है। यह मेरा घर है, इसलिये वहां शूटिंग करना मेरे लिये काफी आसान था। मैं कभी भी इसे शूटिंग के लिये देने में संकोच नहीं करूंगा, खासकर जबकि मैं किसी ऐसे प्रोजेक्ट में काम करूं। 340 दिन यह पैलेस यूं ही पड़ा रहता है। मैं इसे कामर्शियल प्रॉपर्टी के रूप में विचार करूंगा और इसे किराये पर देने में मुझे खुशी होगी। लेकिन जब क्रू अंदर आया तो मुझे थोड़ी बहुत घबराहट महसूस हुई थी। वहां रहना बहुत ही अच्छा अनुभव था। डिंपल जी भी वहां हमारे साथ रुकी थीं। शो की बाकी शूटिंग दिल्ली के इम्पीरियल होटल में हुई थी। यह मेरी अब तक की सबसे सुकूनभरी शूटिंग रही है।
क्या आपको लगता है कि ओटीटी के इस कारवां में शामिल होना और इस नये ट्रेंड का हिस्सा बनना आश्वस्त करने वाला है और आपके आगे आने वाले कॅरियर के लिये एक बेहद सुरक्षित रास्ता है?
कैमरे के सामने होना सौभाग्य की बात है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह लंबा चलने वाला शो है या कोई फिल्म। यदि आप इसे गंभीरता से लेते हैं तो यह एक गंभीर काम बन जाता है। कहने का मेरा मतलब है कि सबसे बेहतरीन डायरेक्टर इसे डायरेक्ट कर रहे हैं, यदि प्रोडक्श्ान वैल्यू पर पैसे लगाये गये हैं और आप अपनी काबिलियत दिखाने के लिये जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं तो फॉर्मेट में कोई फर्क नहीं है। कोई भी माध्यम दूसरे से बेहतर नहीं हो सकता, सिर्फ कोशिश ही मायने रखती है। दोनों ही कैमरे आपके जज्बे को कैद करते हैं। मैंने कभी नहीं सोचा कि इसमें खतरा है, बल्कि मैंने तो इसे एक अवसर के तौर पर लिया कि इस नये फॉर्मेट में मुझे प्रयोग करने का मौका मिल रहा है।
जब कोई एक्टर इस तरह के दमदार राजनेता का किरदार निभाता है तो अक्सर उसमें कई परतें होती हैं और कई बार तो उसमें थोड़े ग्रे शेड्स भी होते हैं। एक राजेनता का किरदार निभाने के बारे में आपकी क्या राय है? क्या आपको राजनेता का किरदार जोखिमभरा लगता है?
मैंने ग्रे शेड्स वाली कुछ भूमिकाएं निभायी हैं और मुझे उन्हें करने में काफी मजा भी आया। मुझे लगता है कि एक बेदाग किरदार निभाने से ज्यादा ऐसे किरदार दिलचस्प और प्रयोगवादी होते हैं। मुझे बेहद खुशी है कि मुझे समर जैसे थोड़े कमजोर, गुस्सैल, दबंग और नेक इंसान की भूमिका निभाने का मौका मिला। यह ऐसा था जैसे आप अपनी ही अलग-अलग ऊर्जा को चैनेलाइज करने की कोशिश कर रहे हैं। सबसे जरूरी बात कि मुझे नहीं लगता एक राजनेता की भूमिका निभाना कोई जोखिमभरा काम है। ‘तांडव’ कोई डॉक्यूमेंटरी नहीं है, एक काल्पनिक कहानी है।
‘तांडव’ एक ऐसा पॉलिटिकल ड्रामा है, जैसा दर्शकों ने अभी तक नहीं देखा। एक ऐसी थीम पर एक शो बनाने में हमें इतना वक्त लगा, जिस पर सबसे ज्यादा चर्चाएं होती हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?
इसमें कोई शक नहीं कि भारत में राजनीति पर सबसे ज्यादा चर्चाएं होती हैं और हम दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। इस काल्पनिक राजनीतिक कहानी को लेकर आना और उसे प्रस्तुत करना काफी रोमांचक अनुभव है। इसका सबसे मुश्किल पक्ष होता है जब आप वास्तविक चीजों पर आधारित कुछ बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह पूरी तरह वास्तविक नहीं है। ‘तांडव’ के साथ हमने मुद्दे को थोड़ा कॉमर्शियल रूप से आगे बढ़ाया है और दर्शकों के लिये उसे ज्यादा प्रभावी बनाने की कोशिश की है।
चाहे फिल्में हों या फिर वेब-शोज़ अपना प्रोजेक्ट चुनने के दौरान आपके दिमाग में सबसे पहली चीज क्या होती है? परदे पर आप कितनी देर के लिये हैं यह मायने रखता है या फिर किरदार? ‘तांडव’ के लिये हां कहने की क्या वजह रही?
मैं जो कर रहा होता हूं उसमें किरदार का महत्व होता है। इसका मतलब है कि मुख्य किरदार मुझे आकर्षित करते हैं। कई बार परदे पर आप कितनी देर हैं वह मायने नहीं रखता है। कई बार तो परदे पर कम देर तक होना ज्यादा अच्छा होता है। आमतौर पर, किरदार महत्वपूर्ण होता है और यही चीज मैं अपनी भूमिकाओं को चुनने के दौरान ध्यान में रखता हूं।
एक्टर और डायरेक्टर अली अब्बास ज़फर के साथ काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?
किसी भी तरह के काम में जिसमें आप अपना सबसे बेहतर दे रहे हैं, वह दिलचस्प होना चाहिये। जब मुझे पता चला कि अली कुछ लंबे फॉर्मेट वाली चीज करने में दिलचस्पी ले रहे हैं तो मुझे पूरा विश्वास था कि कहानीकार के रूप में उनकी काबिलियत नज़र आयेगी। इस फॉर्मेट में अली के कहानी कहने का हुनर और भी बेहतर तरीके से उभरकर आया है। इसलिये, उनके साथ जुड़ना बहुत ही बेहतरीन चीज थी। उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि लोगों से जुड़ी फिल्म बनाने में कहानी को एक अलग तरह से गढ़ने की जरूरत होती है। कुछ जगहों पर उसे हल्के और अलग हाथों से गढ़ना होता है और मुझे खुशी है कि इन बातों का पूरा ध्यान रखा गया है। वह सबसे बेहतरीन निर्देशकों में से एक हैं, जिनके पास कमाल की सिनेमैटिक नज़र है।
मैं ‘टशन’ के समय से ही अली को जानता हूं और हम साथ में क्रिकेट भी खेलते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब दो लोग साथ में क्रिकेट खेलते हैं तो अच्छे मित्र होते हैं। शूटिंग में उनके साथ काम करने के दौरान बड़ा-छोटा जैसा कोई क्रम नहीं था। ‘तांडव’ में अली सही मायने में एक नवाब हैं मैं नहीं। मैं तो बस कम पैसे में काम करने वाला एक एक्टर हूं।