Editor-Ravi Mudgal
उदयपुर 23 जनवरी, 2021। अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तहत जैविक खेती पर राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार ‘‘कृषि में जैविक आदानों का उपयोग, गुणवत्ता एवं उद्यमिता प्रबंधन’’ पर आयोजित किया गया।
डॉ. एन. रविशंकर, राष्ट्रीय समन्वयक (जैविक खेती) एवं प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम, मेरठ (यू.पी.) ने मुख्य वक्ता के रूप में बताया कि जैविक आदान उत्पादन में किसान पद्धति, नवाचार तथा विज्ञान का समावेश कर किसान एवं उद्यमी जैविक खेती में ज्यादा फायदा ले सकते हैं। केवल पारंपरिक तरीके से जैविक उत्पादन करने से लागत ज्यादा आती है, उत्पादन कम होता है तथा मार्केट के अवसर कम मिलते है। उन्होंने बताया कि जैविक आदान उत्पादन में उत्पादन विधि के साथ-साथ स्टोरेज के दौरान गुणवत्ता बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि जैविक किसान, जैविक उत्पादक जैविक उद्यमी, जैविक निर्यातक तथा प्रमाणित जैविक किसान जैसे शब्द आजकल प्रचलित है लेकिन इनका अर्थ तथा उनकी कार्यशैली अलग-अलग होती है उन्होंने अखिल भारतीय जैविक खेती नेटवर्क परियोजना के तहत देश के 20 अनुसंधान केंद्रों पर चल रहे जैविक आदान, जैविक फसल तथा जैविक उत्पादन तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही उन्होंनेे कहा कि जैविक खेती में नाइट्रोजन प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण है पारंपरिक खेती में यूरिया के असंतुलित उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है जैविक खेती में यूरिया की जगह खाद कम्पोस्ट, खल तथा हरी खाद का उपयोग करना चाहिए लेकिन इनकी उपयुक्त मात्रा का निर्धारण खेत की मिट्टी में नत्रजन तथा कार्बन की मात्रा पर निर्भर करता है अतः जैविक उत्पादों को जैविक खेती में नाइट्रोजन आपूर्ति की योजना बनाना अति आवश्यक है।
डाॅ. विरेन्द्र नेपालिया, विशेषाधिकारी, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने माननीय कुलपति डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ का संदेश देते हुए बताया कि भारत में प्रचलित जैविक आदानों का प्रचलन विदेशों में बढ़ रहा है। हमारे गौमूत्र, गाया का गोबर, नीम उत्पाद, सिलिका वर्मीवाॅश आदि पर नवाचार कर पेटेन्ट लिए जा रहे है। अतः हमारे किसानों को नवाचार कर जैविक उद्यम स्थापित कर अधिक आय कमानी चाहिए। उन्होंने बताया कि भारत में जैविक बाजार लगभग 6,000 करोड़ का है जो बढ़कर 10,000 करोड़ हो जायेगा।
डाॅ. एस. के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान ने जैविक कृषि अनुसंधान एवं नवीन तकनीकों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर. के. वी. वाई.) के तहत प्रायोजित जैविक खेती अनुसंधान परियोजना के तहत 20 जैविक आदानों (दशपर्णी, पंचगव्य, वर्मीवाॅश, संवर्धित कम्पोस्ट, तीखा सत, वर्मीकम्पोस्ट, भभूत अमृत पानी, पारथेनियम संवर्धित खाद, पंचपर्णी, जीवामृत, बीजामृत, नीम पत्ती घोल इत्यादि) के तैयार करने की विधि एवं गुणों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत में विश्व के 30 प्रतिशत (11.4 लाख) जैविक उत्पादक हैं लेकिन विश्व के कुल जैविक क्षेत्रफल का मात्र 3.3 प्रतिशत हिस्सा ही भारत में है। भारत मेें 6000 से ज्यादा इकाईयाँ जैविक आदान उत्पादन का कार्य कर रही है लेकिन जैविक आदानों का कुल आदानों के मार्केट में हिस्सा बहुत कम है। देश में खाद्य सुरक्षा तथा पोषण सुरक्षा के लिए खेती में 25 से 50 प्रतिशत हिस्सा जैविक आदानों का सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने जैविक आदन रेगुलेशन के बारे में बताया।
श्री बरदी चन्द पटेल, प्रगतिशील किसान, बुझड़ा, उदयपुर (राज.) ने फोर्टीफाइड वर्मीकम्पोस्ट, प्रोम खाद निर्माण मशीन तथा नीम खल की मार्केटिंग के बारे में बताया।
श्री पवन टांक गोयल, ग्रामीण विकास संस्थान, कोटा (राज.) ने मिट्टी में कार्बन प्रबंधन, 50 सब्जियों की जैविक खेती, हरी खाद, फेमिली जैविक खेती, बायोडायनेमिक खाद, लिक्विड जैविक खाद, दो गाय प्रति हैक्टेयर से पोषक तत्व प्रबंधन, लाभकारी जीवाणुओं तथा पक्षियों की संख्या में वृद्वि, जैविक टमाटर, साॅस तथा चिप्स के बारे में बताया। उन्होंने जैविक फूलों की खेती, लोकी केन्डी तथा संेजना के उत्पाद के बारे में जानकारी दी।
श्री भेरूलाल जटिया, प्रगतिशील किसान, हरिओम कृषि फार्म चित्तौडगढ़़ (राज.) ने बताया कि परम्परागत कृषि के बजाय जैविक खेती अपनाने के फायदों के बारे में बताया। उन्होंने जैविक पपीता, जैविक टमाटर, दशपर्णी अर्क कीटनाशक (दस वनस्पति से) तथा जैविक खेती तकनीकों के लाभ तथा रोजगारों के लाभों के बारे में बताया।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. आर. एस. चैधरी, सहायक आचार्य एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. रोशन चैधरी, सहायक आचार्य एवं आयोजन प्रभारी ने दिया। इस कार्यक्रम में कुल 183 प्रतिभागियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।