Editor-Rashmi Sharma
जयपुर 11 जनवरी 2021 – दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल), नवंबर 2019 से भारत की नयी आईबीसी संहिता के तहत दिवालियापन के प्रस्ताव की प्रक्रिया से गुजर रहा हे।
यह देखते हुए कि यह कई मायने में ऐसी पहली वित्तीय सेवा कंपनी है, जो कि आईबीसी से गुजर रही है, यह न केवल इस क्षेत्र में आगे होने वाले अन्य प्रस्तावों के लिए प्रवृत्ति निर्धारित करेगी, बल्कि बेहद मुश्किल स्थिति से गुजर रहे वित्तीय क्षेत्र में भी इसका प्रभाव पड़ेगा। कानून के अनुसार, अन्य उद्योगों की कंपनियों के विपरीत, केवल आरबीआई ही वित्तीय सेवा कंपनियों को आईबीसी में ले जा सकता है, न कि वित्तीय या परिचालन लेनदार इसे आईबीसी में ला जायेंगे। आरबीआई ने डीएचएफएल के लिए एक प्रशासक नियुक्त किया है जो नवंबर 2019 से कंपनी का संचालन कर रहे हैं।
डीएचएफएल के कुल 87,000 करोड़ रु. का ऋण प्रस्ताव प्रक्रिया से गुजर रहा है। इसमें से, 58,000 करोड़ रु. सरकारी बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों का है। प्राइवेट संस्थानों (बैंकों, एमएफ, प्राइवेट बीमा कंपनियों आदि) का 10,000 करोड़ रु. है, और अन्य 10,000 करोड़ रु. विदेशी संस्थानों का है। डीएचएफएल में 55,000 से अधिक रिटेल ग्राहकों और संस्थानों का 5,400 करोड़ रु. फिक्स्ड डिपॉजिट है।
इस दिवालियापन की प्रक्रिया में पीरामल अग्रणी के रूप में उभरकर सामने आया है और निविदाओं के मूल्यांकन हेतु लेनदारों की समिति द्वारा तय मानक पर पीरामल को सर्वोच्च अंक प्राप्त है। ओकट्री कैपिटल दूसरे नंबर पर है। इन दोनों बोलीदाताओं द्वारा एफडी धारकों के साथ भिन्न तरह का व्यवहार किया जा रहा है।
बोली लगाने के शुरुआती चरण से, पीरामल ने आईबीसी प्रस्ताव के जरिए एफडी धारकों को दिये गये सीओसी ऑफर्स के अलावा अपनी बोली में उन्हें प्रस्ताव प्रक्रिया में अतिरिक्त राशि की पेशकश की है। पीरामल ने सीओसी भुगतानों के अलावा एफडी धारकों को 10 प्रतिशत अधिक भुगतान करने की पेशकश की है।
पीरामल ने अपने द्वारा दिये गये एक बयान में कहा कि हमारे प्रत्येक व्यवसाय में हमारे द्वारा दिये जाने वाले सामाजिक योगदान का महत्व, पीरामल के डीएनए का एक अभिन्न हिस्सा है। पीरामल ने आगे बताया कि डीएचएफएल के रिटेल फिक्स्ड डिपॉजिट खाताधारकों की संख्या 75,000 से अधिक है, जिनमें से अधिकांश ऐसी सामान्य पृष्ठभूमि से हैं जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे बचाकर छोटे-छोटे निवेश किये हैं।
पीरामल की ओर से कहा गया, ‘हमने हमारी निविदा में स्पष्ट रूप से कहा है कि लेनदार समिति द्वारा फिक्स्ड डिपॉजिट धारकों को की जाने वाली पेशकश के अलावा, हम उन्हें अतिरिक्त रूप से 10 प्रतिशत देंगे। हालांकि, हम ऐसा किसी नियम या प्रावधान के तहत नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम इस फ्रेंचाइजी के हट जाने से प्रभावित अधिकांश लोगों के दर्द को साझा करने की कोशिश करते हैं।’
आखिरी दौर की बिडिंग में, ओकट्री ने भी ऐसी ही पेशकश है, और दावा किया है कि वो अब तक पीरामल द्वारा वादा किये गये 150 करोड़ रु. के अलावा एफडी धारकों को अलग से 300 करोड़ रु. देंगे।
हालांकि, ओकट्री द्वारा दी जाने वाली भुगतान संरचना जटिल है। बोलीदाता ने डीएचएफएल की बीमा सहायक को बेचने से प्राप्त होने वाली किसी भी आय में से इस राशि का भुगतान करने का वादा किया है जो बिक्री में शामिल है। चूंकि ओकट्री एक विदेशी संस्थान है, वे बीमा व्यवसाय के स्वामित्व और बिक्री में गंभीर कानूनी चुनौतियों का सामना करते हैं जो पहले से ही 49% की अधिकतम स्वीकार्य विदेशी स्वामित्व सीमा पर है। इसलिए एफडी धारकों को बीमा कंपनी की लिंक की गई बिक्री आय से अतिरिक्त राशि का भुगतान करने का उनका प्रस्ताव बेहद अनिश्चित है। इसके विपरीत, पीरामल ने एफडी धारकों को अग्रिम रूप से 150 करोड़ रुपये का नकद भुगतान करने की पेशकश की है।
यह प्रशासक और उनके सलाहकारों द्वारा एसबीआई कैपिटल मार्केट्स में दो बोलियों के मूल्यांकन में स्वीकार किया गया है, क्योंकि उन्होंने एफडी धारकों के लिए 150 करोड़ रु. के पीरामल ऑफ़र के बारे में बताया है, और ओकट्री कैपिटल के ऑफर को शून्य मूल्य दिया है।