Editor-Ravi Mudgal
जयपुर 03 फरवरी 2021 – इडिया जस्टिस रिपोर्ट का दूसरा संस्करण लोगों तक न्याय की पहुंच सुनिश्चित करने में प्रत्येक राज्य की संरचनात्मक और वित्तीय क्षमता में वृद्धि और गिरावट की तुलना करने और ट्रैकिंग करने से संबधित है। नवीनतम उपलब्ध सरकारी आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए पहली बार रैंकिंग नवंबर 2019 में जारी की गई थी। यह रैंकिंग 1 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार वाले राज्यों और 7 छोटे राज्यों में बजट, मानव संसाधन, बुनियादी ढांचे, वर्कलोड, पुलिस बलो में विविधता, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता के लेकर परिमाणात्मक माप (क्वांटिटेटिव मीजरमेंट्स) पर आधारित है। 7 केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) और 4 अन्य अनरैंक्ड राज्यों का डेटा भी उपलब्ध कराया गया है। विशिष्ट रूप से, IJR 2020 न सिर्फ एक दूसरे की तुलना करते हुए राज्यों के बीच पिलर और थीमवाइज तुलना उपलब्ध कराता है, बल्कि यह भी समझने की कोशिश करता है कि IJR 2019 से अबतक और 5 वर्षों से अधिक समय से अब तक प्रत्येक राज्य के अपने पिलर्स और थीम में क्या प्रगति हुई है और क्या कमी आई है। ये स्पष्ट रुझान और दिशाओं को बयां करते हैं।
ज्यादातर बड़े और मध्यम आकार के राज्यों ने पुलिसिंग पर अपने कुल बजट का 3% से 5% के बीच खर्च किया। जबकि अपनी विशेष परिस्थितियों की वजह से, कुछ राज्यों ने 6-13% के बीच खर्च किए। वित्त वर्ष 2015-16 और 2017-18 के बीच, पुलिस और जेलों पर सरकारी खर्च में गिरावट देखने को मिली है। वहीं दूसरी तरफ, न्यायपालिका पर व्यय 0.56% से बढ़कर 0.58% और विधिक सहायता पर 0.011% से 0.014% तक हो गया।
जैसा कि IJR 2019 में दिखाया गया है, अधिकांश राज्यों में, न्याय के इन स्तंभों पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी समग्र राज्य व्यय में होने वाली वृद्धि के अनुरूप नहीं है। 2013-14 और 2017-18 के बीच, रैंक वाले राज्यों में से, सिर्फ 7 ने राज्य पर होने वाले समग्र खर्च के अनुपात में अपने पुलिस पर होने वाले व्यय में वृद्धि की। पिछली रिपोर्ट में 13 राज्यों ने ऐसा किया था। न्यायपालिका पर होने वाले खर्च में IJR 2019- की तुलना में 4 राज्यों में सुधार देखने को मिला। अब 8 राज्यों में न्यायपालिका पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी समग्र राज्य व्यय में होने वाली वृद्धि के अनुपात में अधिक है। जबकि किसी भी बड़े राज्य द्वारा पुलिस, जेल और न्यायपालिका पर किये जाने वाले खर्च में वृद्धि समग्र राज्य व्यय में होने वाली वृद्धि की तुलना कम था, छोटे राज्यों के बीच मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में यही ट्रेंड देखने को मिला।
उदाहरण के लिए, पिछले 5 साल के दौरान बिहार में पुलिस पर होने वाले खर्च में औसत वृद्धि दर 11.93% रही, जबकि समग्र राज्य व्यय में होने वाली वृद्धि दर 15.66% रही। दोनों के बीच -3.63 प्रतिशत का अंतर था।
भारत विधिक सहायता पर प्रति व्यक्ति ₹ 1 खर्च करता है
भारत की 1.3 बिलियन से अधिक आबादी के लगभग 80 प्रतिशत लोग नि:शुल्क कानूनी सहायता के लिए पात्र है, फिर भी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत विधिक सहायता पर प्रति व्यक्ति सिर्फ ₹1 खर्च करता है। ये टाटा ट्रस्ट समर्थित नवीनतम इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के कुछ निष्कर्ष हैं।
फंड्स का असमान इस्तेमाल
2017 की तुलना में 2019-20 में पुलिस आधुनिकीकरण फंड के औसत इस्तेमाल में समग्र गिरावट आई है – यह 75% से गिरकर 41% तक रह गया है। सिर्फ पश्चिम बंगाल, मिजोरम और नागालैंड ही 100% फंड का उपयोग कर सके। ओडिशा (10%) और त्रिपुरा (2%) ने 10% या उससे कम फंड का इस्तेमाल किया जबकि मणिपुर, मेघालय, पंजाब, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश ने उसका कोई उपयोग नहीं किया।
आबंटित धन का उपयोग 100 प्रतिशत से ज्यादा (तेलंगाना) से लेकर 50% (मेघालय) के बीच किया गया। कुल मिलाकर, हालांकि, तीन साल की अवधि में इन राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों ने फंड के उपयोग के मामले में बदतर प्रदर्शन किया है: गुजरात में यह 95% से गिरकर 80% रह गया; उत्तर प्रदेश में 94% से गिरकर 83%; और मेघालय 88% से 50% रह गया। इसके विपरीत, तेलंगाना (92% से बढ़कर 103%) और त्रिपुरा (75% से बढ़कर 99%) उन राज्यों में हैं जिन्होंने अपने फंड के उपयोग में सुधार किया है।
विधिक सहायता के मद में, राष्ट्रीय स्तर पर, फंड का उपयोग 70.7% से बढ़कर 94.07% हो गया। 18 बड़े और मध्यम आकार वाले राज्यों में फंड का उपयोग 77.13% से बढ़कर 96.02% तक हो गया, वहीं इनमें से 8 राज्यों ने इस केंद्रीय निधि का कम से कम 90% का इस्तेमाल किया। उत्तर प्रदेश ने अपने फंड के लगभग 100% का उपयोग किया। मेघालय, एकमात्र राज्य था जिसने आवंटित धन का केवल चौथाई भाग इस्तेमाल किया। हालाँकि, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का अपना बजट 2018-2019 के लिए 150 करोड़ से गिरकर 2020-2021 में 100 करोड़ रह गया।
एक साल पहले के मुकाबले 2019–20 में, सभी राज्यों ने विधिक सेवाओं पर अधिक खर्च किया है, जबकि 11 अन्य ने अपना हिस्सा बढ़ाया है। विधिक सहायता की मद में और अधिक खर्च करने की बढ़ती इच्छा इस सर्विस के बढ़ते महत्व की ओर इशारा करती है। सात राज्यों में, यह हिस्सा 80% से ऊपर चला गया है; IJR 2019 में, केवल आंध्र प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश ने इतनी राशि खर्च की। राज्यों को अधिक धनराशि मिलने की वजह से इसके उपयोग में भी वृद्धि हुई है।
पुलिस प्रशिक्षण पर कम खर्च
पुलिसिंग पर होने वाले कुल राष्ट्रीय खर्च का मात्र 1.13% प्रशिक्षण पर खर्च होता है, मतलब लगभग ₹8,000 प्रति पुलिस स्टेशन। यह एक राज्य से दूसरे राज्य में बहुत अलग-अलग होता है। मिजोरम में 5,406 से अधिक कर्मियों की क्षमता के साथ, प्रति व्यक्ति ₹32,310 रुपये खर्च करता है जो सबसे अधिक है। इसके बाद दिल्ली (₹24,809) और बिहार (₹15,745) खर्च करते हैं। बीपीआरएंडडी के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 53,000 कर्मियों के साथ, केरल कुछ भी खर्च नहीं करता है, जबकि तमिलनाडु ₹2 खर्च करता है। छोटे राज्यों में हिमाचल प्रदेश सबसे कम (₹511) खर्च करता है।
कैदियों पर होने वाले खर्च में हुई है बढ़ोतरी
राष्ट्रीय स्तर पर, प्रति कैदी औसत खर्च लगभग 45 प्रतिशत बढ़ा है। 106 जेलों में 7,500 से अधिक कैदियों के लिए ₹2,00,000 के साथ आंध्र प्रदेश सबसे अधिक वार्षिक खर्च करता है। छत्तीस राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में से पंद्रह ने 2016-17 की तुलना में 2019-20 में कैदियों पर कम खर्च किया।
2019-20 में, सत्रह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने सालाना ₹35,000 से कम या प्रति व्यक्ति ₹100 प्रति दिन से कम खर्च किया। लेकिन प्रति कैदी सबसे कम खर्च का आंकड़ा और नीचे गिर गया है: 2016-17 में राजस्थान में प्रति कैदी ₹14,700 खर्च किया गया जो सबसे कम था, लेकिन वर्तमान में, मेघालय प्रति कैदी सिर्फ ₹11,000 खर्च करता है जो सबसे कम है।