Editor-Rashmi Sharma
जयपुर, 17 फरवरी, 2021 मृत्यु के उपरांत अंगदान को लेकर जागरूकता को बढ़ावा देने और इसके रास्ते में आ रही चुनौतियों से निपटने की योजना बनाने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन एंड लॉ (आईएमएल) ने बुधवार को ‘मोड-मेक ऑर्गन डोनेशन ईजी’ कार्यक्रम का आयोजन किया और अंग दान पर एक श्वेत पत्र जारी किया। इस आयोजन में श्वेत पत्र की सिफारिशों पर काफी दिलचस्प पैनल परिचर्चा आयोजित की गई और देश में अंग दान का एक व्यवस्थित ढांचे के अभाव को दूर करने की बात कही गई।
इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया जिनमें सीके बिरला हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजिस्ट/रेनल स्पेशलिस्ट डॉ. आलोक जैन, पीडीयू गर्वन्मेंट कॉलेज की फैकल्टी मेंबर डॉ. उपासना चौधरी, फोर्टिस एस्कोर्ट हॉस्पिटल के यूरोलॉजी, एंड्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी विशेषज्ञ डॉ. संदीप गुप्ता, फोर्टिस हॉस्पिटल मेडिकल डायरेक्टर राजस्थान, गुजरात और मुंबई डॉ. श्रीकांत स्वामी, एमएफजेसीएफ की संयोजक श्रीमती भावना जगवानी, एनजीओ अमर गांधी फाउंडेशन के श्री समीर हालादी, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन एंड लॉ के माननीय निदेशक महेंद्र कुमार बाजपेयी उपस्थित थे।
इस अवसर पर जारी श्वेत पत्र में मेडिसिन एंड लॉ पर आयोजित 5वें राष्ट्रीय सम्मेलन की बातों को शामिल किया गया जिसमें कैडेवर डोनेशन (मृत्यु उपरांत अंगदान) के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया गया था। इसमें डॉक्टर्स के सामने आने वाले चुनौतियों (ग्रीफ काउंसलिंग, अल्टरनेटिव टेस्ट्स), अंगदान के लिए इंतजार कर रहे मरीजों और देखभाल करने वालों, अंगदान को व्यवस्थित और आसान बनाने और केंद्र एवं राज्य स्तर पर अंग प्रत्यारोपण संबंधी मुद्दों पर चर्चा की गई। साथ ही मृत्यु के उपरांत अंगदान करने की प्रक्रिया में सरकार की भूमिका को भी कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया।
इस चर्चा के चिकित्सीय पहलुओं का जिक्र करते हुए सीके बिरला हॉस्पिटल के डायरेक्टर नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांटेशन डॉ. आलोक जैन ने कहा, ‘राजस्थान में वर्ष 2016 से अब तक हम 2000 से 2200 अंग प्रत्यारोपण और 41 मृत्यु उपरांत अंगदान (136 अंग) करवा चुके हैं। हमारे राज्य में किडनी के लंबी अवधि वाले मरीजों की संख्या को देखते हुए हमें ज्यादा किडनी प्रत्यारोपण (जीवित या मृत अंगदाता) की आवश्यकता है और यह लक्ष्य हम लोगों और स्वास्थ्य कर्मियों में अंगदान के प्रति जागरूकता और अंगदान की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में राज्य सरकार के सहयोग से ही कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण तो लोगों में जागरूकता लाना है ताकि अंगदान को लेकर सामाजिक वर्जनाओं को दूर किया जा सके।’
इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता, दि मेडलीगल अटॉर्नीज एडिटर, मेडिकल लॉ केसेज-फॉर डायरेक्टर्स और इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन एंड लॉ के निदेशक श्री महेंद्र कुमार बाजपेयी ने कहा, ‘देश को ऐसे केंद्रीय कानून की आवश्यकता है जो मृत्यु को परिभाषित करे। कई देश इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं। जन्म, मृत्यु पंजीकरण अधिनियम इस समय संशोधन के दौर में है और इसमें ब्रेन डेथ को भी मृत्यु में शामिल किया जाना चाहिए। अंगदान का निर्णय लेने वालों को भारतीय समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखना चाहिए। इसके संबंध में सूची व्यापक होनी चाहिए और प्राथमिकताओं को स्पष्ट क्रम में लिखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, अंगदान प्रक्रिया की रिपोर्टिंग, पालना और निदेर्शों में प्रक्रिया में प्राधिकरण में एकरूपता होनी चाहिए।’
एमएफजेसीएफ की समन्वयक श्रीमती भावना जगवानी ने कहा, ‘अंगदान लोगों के लिए अपने जीवन को समृद्ध बनाने का एक अवसर होता है जो दूसरों को स्वस्थ जीवन जीने का अवसर देते हैं। मेरा मानना है कि ब्रेन डेथ और अंगदान को अंगदान से अलग करके देखने की जरूरत है। मानव अंगों के प्रत्यारोपण में मरीज को ब्रेन डेड केवल अंगदान के लिए ही घोषित किया जाता है जो मरीज के परिवारों के साथ बहुत समस्या पैदा करता है और वे अंगदान के लिए राजी नहीं होते हैं। मरीज के ब्रेन डेड होने पर भी डॉक्टर्स वेंटिलेटर बंद करने और उसको मृत घोषित करने में अनिच्छुक हाते हैं।’
श्रीमती जगवानी ने आगे कहा, ‘मैंने अंगदान कार्यक्रमों/समितियों आदि से कानूनी और अनिवार्य रूप से जुड़े जानेमाने गैर-सरकारी संगठनों को सलाह दी है कि वे सिस्टम में पारदर्शिता लाएं और अंगदान करने वालों और अंगदान प्राप्त करने वालों में विश्वास पैदा किया जा सके।’
पीडीयू राजकीय महाविद्यालय की फैकल्टी मेंबर डॉ. उपासना चौधरी ने कहा, ‘अंग प्रत्यारोपण की बढ़ती मांग को देखते हुए मेरा मानना है देश में अंगदान के मौजूदा प्रतिशत को बढ़ाने के लिए जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। हम कई तरह के मिथकों में विश्वास करते हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिली हूं जो अंग दान के प्रति जागरूक हैं, लेकिन प्रक्रिया नहीं जानते। यदि अंग दान के लिए दस्तावेजीकरण को सरल किया जाए तो उम्मीद है कि ज्यादा लोग अंग दान के लिए प्रेरित होंगे। मैं स्वस्थ लोगों से भी अपील करूंगी कि इस नेक कार्य के लिए आगे आएं। मृत्य के बाद अंग दान की उनकी शपथ कम से कम 8 लोगों को जीवन दे सकती है।’
कार्यक्रम में मरीजों ने भी हिस्सा लिया और अंग प्रत्यारोपण के लिए अंग दान का का इंतजार करने के कड़वे अनुभवों को साझा किया।