Editor-Manish Mathur
जयपुर 03 फरवरी 2021 – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्ªीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के तहत तिलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु तकनीकें पर दो दिवसीय प्रशिक्षण का आरंभ आज 03 फरवरी, 2021 को अनुसंधान निदेशालय में किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रायोजक कृषि विभाग, राजस्थान सरकार है तथा इस में कृषि विभाग, उदयपुर जिले के 20 कृषि पर्यवेक्षक भाग ले रहे हैं।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ. एस. के. शर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि तिलहनी फसलों का अधिक उत्पादन एवं उत्पादकता से देश को वनस्पति तेलों में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। सरकार ने 2022-23 तक तिलहनी फसलों का उत्पादन 45.64 मिलियन टन यानि 2016-17 के उत्पादन से 15.58 मिलियन टन अधिक करने का निर्णय लिया है जिससे वनस्पति तेलों का घरेलू उत्पादन 7.0 मिलियन टन से बढ़कर 13.69 मिलियन टन हो सके। अभी हमारा देश में 60 प्रतिशत तेल का आयात कर रहा है। साथ ही यह भी बताया कि तिलहनी फसलों में सल्फर और जिंक पोषक तत्वों का अधिक महŸव है। इन पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए मृदा का परीक्षण कर उसके आधार पर तिलहनी फसलों में उर्वरकों का प्रयोग करें। उन्होंने प्रशिक्षार्णियों को सलाह दी कि जब भी वे अपने क्षेत्र में जाए तो एक डायरी साथ रखे जिसमें अपने क्षेत्र की सभी जानकारियाँ लिख कर रखें ताकि क्षेत्र में कौन-सी तकनीकियांे की आवश्यकता है की जानकारी मिल सके और वह कृषकों तक पहुंचाई जा सके।
प्रशिक्षण प्रभारी तथा क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डाॅ. रेखा व्यास ने सभी अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया और बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की शुरूआत सन् 2007 में केन्द्र सरकार द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य गेहूँ, चावल व दालों की उत्पादन व उत्पादन बढ़ा कर देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना था और वर्ष 2014-15 में तिलहन और पाम आयल को भी इस मिशन में शामिल कर लिया गया ताकि देश में वनस्पति तेलों का उत्पादन बढ़ा कर आयात में 2022 तक 15 प्रतिशत की कमी लाई जा सके इससे देश को लगभग रू. 15000 करोड़ की बचत होगी। एक व्यक्ति को प्रति वर्ष 12-13 किलो खाद्य तेल की आवश्यकता होती है और भारत में यह मात्रा 18 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है जो एक अनुमान के अनुसार 2022 में 22 किलो तक पहुंच जाएगी। इस हेतु घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है और यह तभी संभव है जब तिलहन का उत्पादन क्षेत्र बढ़ाया जाए। इस हेतु कृषकों को उत्पादन की नई तकनीकें, उन्नत किस्में, उन्नत प्रौद्योगिकी की जानकारी पहुंचाना आवश्यक है।
सह-अनुसंधान निदेशक डाॅ. अरविन्द वर्मा ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय मुख्य रूप से तीन घटकों (शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार) के रूप में कार्य रहा है। उन्होंने बताया कि देश में मध्यप्रदेश राज्य तिलहन के क्षेत्रफल और उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है और राजस्थान राज्य का दूसरा स्थान है। साथ ही उन्होंने ने बताया कि फसलों में खरपतवारों द्वारा उत्पादन का 37 प्रतिशत नुकसान होता है तथा इसके रोकथाम के लिए समन्वित खरपतवार प्रबन्धन करें।
डाॅ. अभय दशोरा, सहायक आचार्य ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा सभी आगन्तुओं का धन्यवाद डाॅ. बी. जी. छीपा, सहायक आचार्य ने ज्ञापित दिया एवं कार्यक्रम के संयोजन में डाॅ. गजानन्द जाट, सहायक आचार्य ने सहयोग किया।