Editor-Ravi Mudgal
जयपुर, 25 मार्च, 2021: जयपुर के एक 61 वर्षीय व्यक्ति जिनका नाम सैयद जलाल हुसैन है, को पिछले छह महीनों से चलने के दौरान दोनों पैरों में बहुत दर्द हो रहा था। उनको परिधीय संवहनी रोग (पेरिफेरल वॉस्क्युलर डिसीज़) थी, वह 2012 में ही बलून एंजियोप्लॉस्टी और स्टेंट लगवा चुके थे। ये उन धमनियों (रक्त नलिकाओं) में होता है, जो शरीर को ऑक्सीजनयुक्त रक्त की आपूर्ति करती हैं। मधुमेह से पीड़ित होने के कारण उन्हें इस बीमारी का खतरा अधिक था। जांच में निचले पैर की धमनियों में कई ब्लॉकेज दिखाई दिए। इन ब्लॉकेज/रूकावटों को दूर करने के लिए कई उपचार को एकसाथ करने का निर्णय लिया गया, जिसने श्री हुसैन को एक नया दर्द मुक्त जीवन जीने का अवसर दिया।
पेरिफेरल वॉस्क्युलर डिसीज़, एक रक्त परिसंचरण विकार है, जिसमें मस्तिष्क और हृदय के बाहर रक्त वाहिकाओं में रूकावट, ऐंठन या संकीर्णता के कारण लुमेन (अवकाशिका) में कमी आ जाती है। भारत में लगभग एक करोड़ लोग इस स्वास्थ समस्या से पीड़ित हैं।
जयपुर स्थित राजस्थान अस्पताल के आरएचएल हार्ट सेंटर के अध्यक्ष, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रविंदर सिंह राव ने कहा, “यह एक लेख में प्रकाशित हुआ है, पेरिफेरल वॉस्क्युलर डिसीज़ (पीवीडी) सामान्य रूप से 45 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखा जाता है। यह एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन जाएगी, जब आने वाले वर्षों में भारत युवा आबादी वाले देश से बुजुर्ग आबादी वाले देश में बदल जाएगा। एथेरोस्क्लेरोसिस, जिसे आमतौर पर वसा के निक्षेपण/जमाव के रूप में जाना जाता है, मुख्यरूप से बड़ी रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करता है। और यह भी देखा गया है कि जिन मरीजों को हृदय वाहिकाओं के ब्लॉकेज़ की समस्या है, उन्हें परिधीय रक्त वाहिकाओं के ब्लॉकेज़ की समस्या भी होती है।”
कारणों और जोखिम कारकों पर बात करते हुए डॉ. राव ने कहा, “परिधीय संवहनी रोग मुख्यरूप से दो प्रकार के होते हैं: कार्यात्मक – जिसमें रक्त वाहिकाओं को कोई क्षति नहीं होती है, और दूसरा ऑर्गेनिक/कार्बनिक/जैविक – जिसमें रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। भावनात्मक तनाव और अत्यधिक कम तापमान कार्यात्मक पीवीडी के प्रमुख कारण माने जाते हैं। धुम्रपान, मधुमेह मेलिटस, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर, उच्च रक्तदाब और मोटापा, आर्गेनिक पीवीडी के प्रमुख जोखिम कारक हैं। पीवीडी के सामान्य लक्षणों में सम्मिलित हैं; काम करने पर दर्द और थकान होना, जो आराम करने के साथ बेहतर हो जाए, पैरों में बालों का विकास कम होना, ऐंठन, त्वचा का पीला पड़ जाना, सुन्नपन और मांसपेशियों की कमजोरी।”
डॉ. राव ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “श्री हुसैन को पीवीडी के साथ दो महत्वपूर्ण जोखिम कारक – डायबिटीज मेलिटिस और उच्च रक्तदाब भी थे। उन्होंने 2012 में ही अपना उपचार करा लिया था; उनकी एंजियोप्लॉस्टी की गई थी और उन्हें दो स्टेंट लगाए गए थे। इस बार जब वो हमारे पास आए, तो उनके पैरों की कई धमनियों में रूकावट/अवरोध (ब्लॉकेज) विकसित हो गए थे। उनके उपचार के लिए हमने डायरेक्शनल/दिशात्मक एथेरेक्टोमी और बलून एंजियोप्लास्टी के विकल्प चुने और उन्हें सफलतापूर्वक पूरा किया गया।”
डायरेक्शनल एथेरेक्टोमी एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें रक्त नलिकाओं से प्लॉक को हटा दिया जाता है। बलून थेरेपी के विपरीत इसमें प्लॉक को पुनर्व्यवस्थित/रि-अरेंज नहीं किया जाता है, बल्कि इसे पूरी तरह हटा देते हैं। इस तकनीक के द्वारा कैल्शियम के जमाव को हटाना/निकालना भी संभव है। इस तकनीक ने पीवीडी के उपचार के लिए मिनिमली इनवेसिव उपचार का विकल्प दिया है।
जलाल हुसैन ने बताया, “मुझे पिछले छह महीनों से चलने में बहुत दर्द हो रहा था, मेरे लिए थोड़ी सी भी दूर चल पाना मुश्किल था। मैंने कुछ वर्षों पहले उपचार कराया था, लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि ब्लॉकेज़ फिर से विकसित हो जाएंगे। डॉक्टरों की टीम ने मुझे आश्वस्त किया कि ब्लॉकेजों का मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से उपचार किया जा सकता है और अब उपचार के पश्चात मुझे बहुत राहत महसूस हो रही है। दर्द दूर हो गया है, और मुझे खुशी है कि मैं फिर से सामान्य जीवन जी सकता हूं।”