Editor-Ravi Mudgal
जयपुर 10 मार्च 2021 – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्ªीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती आदान एवं उत्पादन तकनीकें पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन 10 मार्च, 2021 को अनुसंधान निदेशालय में किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उदयपुर संभाग के 35 कृषि अधिकारी एवं कृषि पर्यवेक्षक ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि हमारा देश खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर बन चुका है लेकिन खाद्य गुणवŸाा की दृष्टि से हम काफी पीछे हैं। जैविक सलाद, जैविक मुर्गीपालन एवं पशुपालन की की बाजार में मांग बढ़ रही है। साथ ही उन्होंने बताया कि पंजाब राज्य के किसान राजस्थान से गेंहूँ मंगवाकर खा रहे है, क्योंकि राजस्थान में रसायनों का उपयोग कम है। उन्होंने मिट्टी में जैविक कार्बन की बढ़ती कमी पर चिंता प्रकट की। उन्होंने बताया कि जैविक कृषि में सफलता के लिए जैविक तकनीकें, प्रमाणीकरण तथा जैविक बाजार की जानकारी की आवश्यकता होती हैं।
डाॅ. एस. के. शर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि कृषि अनुसंधान में स्वास्थ्यवर्धक खाद्यों एवं मृदा उत्पादकता को टिकाऊ बनाने वाले उपायों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि वर्तमान परिदृश्य में खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, फलों, सब्जियाँ एवं बीजीय मसालों में 60 से ज्यादा कीटनाशी अवशेषों का पाया जाना, पर्यावरण प्रदूषण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होना एक चिंता का विषय हैं। अतः जैविक खेती मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
डाॅ. दिलीप सिंह, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय ने बताया कि विश्व तथा भारत में परम्परागत कम आदान वाली खेती, प्रगतिशील किसानों की रूचि तथा बाजार में जैविक उत्पादन की बढ़ती मांग की जानकारी दी तथा साथ ही उन्होंने बताया कि जैविक खेती में व्यवसायिक स्तर पर आदानों का उत्पादन किया जा रहा है जिनमें कीटनाशक रसायनों व उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण व भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्यस हो रहा है, साथ ही फल, सब्जी व अनाज की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है इसलिए जैविक खेती वर्तमान समय की आवश्यकता है।
डाॅ. रेखा व्यास, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान ने बताया कि जैविक कृषि में नवाचार जैसे कि फार्म अवशेष पुर्नचक्रण, जैविक खरपतवार नियंत्रण तथा उत्पादन पश्चात् प्रसंस्करण की नई तकनीकों को जैविक खेती में शामिल कर उत्पादन लागत को कम करना होगा। उन्होंनेे जैविक खेती के समन्वित कृषि पद्वति माॅडल को किसानों द्वारा अपनाने पर बल दिया।
डाॅ. रोशन चैधरी, प्रशिक्षण प्रभारी ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को आॅर्गेनिक फूड की गुणवŸाा बनाए रखने के लिए जैविक आदानों (वर्मीवाश, वर्मीकम्पोस्ट, पंचगव्य, प्रोम, हर्बल जैव अर्क, बायोपेस्टीसाइड, तरल जैव उर्वरक, नीम उत्पाद, देशी अर्क तथा गौमूत्र आधारित जैव पेस्टीसाइड) को तैयार करने की विधि तथा गुणों की जानकारी दी
डाॅ. गजानन्द जाट, सहायक प्रोफेसर ने तरल एवं ठोस जैव उर्वरकों का जैविक खेती में उपयोग आदि के बारे में बताया तथा साथ ही प्रशिक्षण कार्यक्रम में जैविक खेती में काम आने वाले जैविक उत्पाद, उत्पादन एवं उनकी गुणवŸाा की प्रायौगिक जानकारी दी।
कार्यक्रम में डाॅ. एस.एस. लखावत एवं डाॅ. हरि सिंह ने भी अपने विचारों से प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। डाॅ. रोशन चैधरी, प्रशिक्षण सह-प्रभारी ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा डाॅ. आर. एस. चैधरी ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित दिया।