बर्ड वॉचिंग में स्थानीय बर्ड वॉचरों की भूमिका महत्वपूर्ण: चटर्जी

Editor-Dinesh Bhardwaj
जयपुर, 16 मार्च 2021 –  पक्षी विशेषज्ञ श्री सुजन चटर्जी ने कहा है कि राजस्थान के बर्ड वॉचिंग क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या हाल के वर्षों में बढ़ी है। इसे देखते हुए स्थानीय बर्ड वॉचर्स की भूमिका को बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि स्थानीय बर्ड वॉचर्स इस कार्य को आगे बढ़ाने में सहायक हैं। श्री चटर्जी सोमवार को राजस्थान वानिकी एवं वन्य जीव प्रशिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित ‘असेसमेंट ऑफ बर्ड डायवर्सिटी’ विषयक कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
इससे पूर्व कार्यशाला की शुरुआत में वन विभाग की प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) श्रीमती श्रुति शर्मा ने कहा कि वन विभाग में काम करने का सबसे बड़ा रिवॉर्ड तब मिलता है, जब पशु-पक्षियों द्वारा वन क्षेत्र को अपने बसेरे के रूप में अपनाया जाता है। उन्होंने कहा कि विभाग जब पौधरोपण करता है तो पक्षियों के साथ-साथ तितलियां, रैपटर्स आदि जीव भी उसका इस्तेमाल करते हैं। यह पर्यावरण में इन सभी जीवों की समान भागीदारी और महत्व को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से पक्षी विविधता के मुद्दे पर नए तरीके से सोचने-समझने का दृष्टिकोण विकसित होगा।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) डॉ.  डीएन पाण्डेय ने पर्यावरण में चिड़ियां के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इंसान की जान बचाने में पक्षी भी सहायक रहे हैं। पूर्व के समय में खदानों से कोयला निकालते समय मज़दूर खास किस्म की चिड़िया को अपने साथ रखते थे। उन्होंने कहा कि इको सिस्टम में प्रत्येक प्राणी की भांति चिड़ियां का भी समान महत्व है। चिड़ियां की मौजूदगी से उस जगह पर लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। इसलिए ह्यूमन हेल्थ के साथ-साथ बर्ड्स हेल्थ पर भी काम करने की आवश्यकता है।
बतौर मुख्य वक्ता कार्यशाला में उपस्थितजनों को संबोधित करते हुए श्री सुजन चटर्जी ने कहा कि टाइगर, लेपर्ड और रेतीले टिब्बों के अलावा राजस्थान अलग-अलग प्रजातियों की चिड़ियां और पक्षियों के लिए भी प्रसिद्ध है। राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में विदेशों से आने वाले पक्षियों की कई तरह की प्रजातियां देखी जा सकती हैं। इनमें अलग-अलग रंगों और किस्मों की चिड़ियां शामिल हैं। भरतपुर का  केवलादेव अभ्यारण्य तो पक्षियों की शरणस्थली के रूप में वैश्विक स्तर तक प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि अन्य क्षेत्रों की भांति राजस्थान में भी पक्षी प्रेमियों और पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। इसके मद्देनजर स्थानीय बर्ड वॉचरों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि कुछ दिनों के बाद पर्यटक तो चले जाते हैं, लेकिन स्थानीय बर्ड वॉचर लगातार उसी क्षेत्र में रहकर चिड़ियां की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। इससे चिड़ियां और पक्षियों की नई-नई प्रजातियों के बारे में जानकारी मिलने में आसानी रहेगी। उनके अनुसार राजस्थान में पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियां हैं। इसलिये पक्षियों से जुड़ी विभिन्न तरह की जानकारी को वेबसाइट ‘ई-बर्ड्स’ पर डिजिटलाइज किया गया है ताकि बाहर से आने वाले पर्यटकों को स्थान विशेष के पक्षियों और उन्हें देखने के बारे में जानकारी मिल सके।
बेंगलुरु के एनसीएफ की प्रोजेक्ट मैनेजर मित्तल गाला ने भी माना कि बर्ड वॉचिंग का शौक पूरी दुनिया में बढ़ रहा है। पुरानी चित्रकलाओं, कहानियों और पौराणिक कथाओं में भी पक्षियों का जिक्र मिलता है। पक्षी आकलन तकनीक और नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर जानकारी देते हुए गाला ने कहा कि पहले बर्ड वॉचर अलग-अलग जगह पर देखी गई चिड़ियां के बारे में जानकारी एकत्रित करते थे। अब सभी जानकारी को ई-बर्ड्स पर इकट्ठा किया जा रहा है ताकि दूसरे पक्षी प्रेमियों को भी अलग-अलग प्रजाति के बारे में जानकारी मिल सके। इस वेबसाइट के अलावा ‘ई-बर्डस इंडिया’ ऐप से भी उपयोगी जानकारी मिल सकती है।
कार्यशाला के दौरान पक्षी दर्शन, पहचान और उसका आकलन करने में उपयोगी उपकरणों की जानकारी जायस इंडिया के श्री उमेन्द्र शाह ने दी। अंत में सभी स्टाफर्स को क्षेत्र भ्रमण करवाया गया। संभागीय को बरखेड़ा बांध क्षेत्र में बार हेडेड गीज चिड़िया का अवलोकन करवाने के बाद उन्हें ई बर्ड एप पर अपलोड करने की हैंड्स ऑन प्रैक्टिस भी मौके पर ही करवाई गई। कार्यशाला के दौरान अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (सिल्विकल्चर) श्री अरिजीत बनर्जी, पूर्व हॉफ श्री जीवी रेड्डी, राजस्थान वानिकी एवं वन्य जीव संस्थान के डायरेक्टर श्री केसीए अरुण प्रसाद, वन संरक्षक श्रीमती शैलजा देवल सहित अन्य मौजूद रहे। मंच संचालन प्रशिक्षण संस्थान के डीसीएफ श्री नरेशचंद्र शर्मा ने किया।

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