Editor-Rashmi Sharma
जयपुर 13 अप्रैल 2021 -महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय उदयपुर द्वारा डिजिटल साॅइल साइंस: सम्भावनाएं एवं चुनौतियों पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन दिनांक 12 अप्रेल 2021 को किया गया। इस वेबिनार में देश के 1510 वरिष्ठ वैज्ञानिकों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ता एवं विद्यार्थियों ने सक्रिय भाग लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. नरेन्द्रसिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने मृदा के वर्तमान परिदृश्य पर जानकारी देते हुए बताया कि मृदा एक कीमती संसाधन है जो प्रयोगशाला अथवा अन्य किसी प्रकार से इसका निर्माण नहीं किया जा सकता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा बनती है जिसका रखरखाव अत्यन्त जरूरी है। डाॅ. राठौड़ ने परम्परागत मृदा नक्शों की बजाय डिजिटल मृदा नक्शे तैयार करने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि आज के परिदृश्य में विभिन्न तकनीकी जैसे रिमोट सेन्सिंग, जीआईएस, जीपीएस एवं विभिन्न प्रकार के साॅफ्टवेयरों का प्रयोग कर मृदा की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक विशेषताओं की सही जानकारी वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों एवं कृषकों तक पहुंचाई जा सकती है। इन तकनीकों के प्रयोग से ही मृदा स्वास्थ्य की माॅनिटरिंग की जा सकती है साथ ही उन्होंने बताया कि डिजिटल साॅइल मेपिंग तकनीकी द्वारा ही फसलों में उर्वरकों के प्रयोग की सिफारिश करनी चाहिए।
डाॅं0 राठौड़ ने डिजिटल साॅशल मेपिंग पर बल देते हुऐ मृदा के प्रकार, मृदाकणाकार, पोषक तत्व स्तर, कार्बनिक पदार्थो का स्तर, मृदा जल स्तर, मृदा उपयोग क्षमता आदि का डिजिटल मेपिंग कर माॅडल विकसित करने की आवश्यकता बताई, जिससे कृषि में उर्वरकों का आवश्यकता अनुसार प्रयोग करते हुऐ उनकी उपयोग क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, साथ ही मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा जो कि वर्तमान में चिन्ता का विषय है, का समुचित प्रबन्धन किया जा सकता है । डाॅं0 राठौड़ ने डिजिटल साॅशल साईन्स को एक विषय के रूप में विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की आवश्यकता बताई ।
कार्यक्रम में देश के विख्यात मृदा वैज्ञानिक डाॅ. अशोक कुमार पात्रा, निदेशक, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल ने देश में 2050 तक उपलब्ध कृषि योग्य भूमि एवं खाद्यान्न उत्पादन एवं मांग को समझाते हुए सघन कृषि की आवश्यकता बताई । डाॅ. पात्रा ने बताया कि मृदा के स्वास्थ्य पर ध्यान दिये बिना फसलों की पैदावार नहीं बढ़ायी जा सकती है। डाॅ. पात्रा ने जल एवं वायु द्वारा मृदा के क्षरण की जानकारी देते हुए मृदा में उत्पन्न विभिन्न विकार जैसे लवणीयता, क्षारीयता एवं अम्लीयता के साथ-साथ मृदा में पोषक तत्वों की कमी पर प्रकाश डाला। उन्होंने ने बताया कि भारतीय मृदाओं में नाइट्रोजन की उपलब्धता का स्तर नेगेटिव है जबकि कार्बनिक पदार्थों की भारी कमी है। मृदा की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक विशेषताओं पर जोर देते हुए उन्होंने डिजिटल साॅइल मेपिंग को आज की आवश्यकता बताया। उन्होंने बताया कि सेटेलाइट रिमोट सेन्सिंग, जीआईएस, जीपीस द्वारा मृदा में उपस्थित पोषक तत्वों, कार्बन की मात्रा, अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थों का प्रबन्धन, मृदा एवं जल प्रबन्धन आसानी से किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के सन्सरों एवं उपकरणों का प्रयोग करते हुए मृदा में आवश्यकतानुसार उर्वरक, सिंचाई एवं खरपतवारनाशियों का प्रयोग कर इनकी उपयोग क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने डिजिटल फार्मिंग पर जोर देते हुए ड्रोन एवं रोबोट का कृषि में उपयोग करने से कृषि आगतों का समुचित उपयोग किया जा सकता है, जिससे न सिर्फ खेती की लागत में कमी आयेगी बल्कि मृदा को स्वस्थ बनाये रखते हुए उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
कार्यक्रम में डाॅ. दिलीप सिंह, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए मृदा के महत्व के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्होंने मृदा की समस्त सूचनाओं का डिजिटीलाइजेशन करने पर विशेष बल देते हुए इसका विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों, कृषकों एवं नीति निर्धारकों द्वारा भविष्य में कार्य योजना, अनुसंधान कार्यों, उर्वरक सिफारिशों में इसके योगदान को शामिल कर सकेंगे। डाॅं0 स्रिंह ने डिजिटल साॅशल साईन्स समन्वित कृषि प्रणाली का अभिन्न अंग बताते हुऐ इसका व्यापक स्तर पर प्रयोग करने पर जोर दिया ।
वेबिनार के कार्यक्रम में डाॅ. शान्ति कुमार शर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि आज के परिदृश्य में हमें डिजिटल साॅइल मेपिंग, डिजिटल मृदा क्षरण नक्शा, पोषक तत्वों का स्तर, उर्वरकता स्तर आदि की नितांत आवश्यकता है। मृदा के डिजिटलाइजेशन से नये-नये अनुसंधान करने की प्रबल सम्भावनायें हैं।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. वीरेन्द्र नेपालिया, ओएसडी, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने किया। कार्यक्रम के सचिव एवं विभागाध्यक्ष डाॅ. रामहरि मीणा ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया।