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सेकेन्डरी एग्रिकल्चर से कृषको की आय बढ़ेगी – डॉ. राठोड़

Editor-Rashmi Sharma

जयपुर 12 अप्रैल 2021  – अप्रैल महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर में “कृषि आय में वृद्धि हेतु सेकेन्डरी एग्रिकल्चर” विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन उद्यानिकी विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर द्वारा किया गया । वेबीनार के मुख्य अतिथि डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया की प्राथमिक कृषि उत्पाद का मूल्य संवर्धन एवं उपयोग हेतु उपयुक्त अवस्था  में उपभोक्ता तक पहुंचाना तथा उत्पादक को अधिक लाभ पहुंचाने वाली क्रियाये ही सेकेंडरी एग्रीकल्चर क्रियाएं हैं। माननीय कुलपति ने कहा कि प्रोसेसिंग एवं मूल्य संवर्धन सेकेंडरी एग्रीकल्चर का मात्र एक पहलू है जबकि उत्पादन प्रणाली को ग्रामीण एवं नगरीय स्तर पर समन्वित कृषि प्रणाली के रूप में कृषक की आय बढ़ाने के लिए विकसित करना इसका विस्तृत व वास्तविक रूप है । उन्होंने कहा कि पशुपालन, मुर्गी पालन, विदेशी सब्जियों का उत्पादन आदि सभी आयामों का सम्मिलित रूप से क्रियान्वयन कृषक की सकल आए बढ़ाने में सफल सिद्ध हो सकता है। कुलपति ने “वेस्ट टू वेल्थ” व “वेस्ट टू एनर्जी” को वर्तमान समय मे समाज व राष्ट्र की महत्ती आवश्यकता बताया ।  उन्होने कहा कि इस कांसेप्ट को हमें अपनाने की जरूरत है जिससे कि कृषि उत्पादन प्रणाली में जो वेस्ट उत्पाद है उनका अन्य सार्थक उपयोग कर कृषक की आय बढ़ाई जा सकती है साथ ही इन वेस्ट उत्पादों का उपयुक्त निस्तारण, जो कि एक बड़ी समस्या है उसे भी सरलता से निबटा जा सकता है । वेबीनार के मुख्य वक्ता डॉक्टर ए के सिंह, उप महानिदेशक, आईसीएआर, उध्यान विज्ञान ने बताया की सेकेंडरी एग्रीकल्चर में किसान की व राष्ट्र की आय बढ़ाने की संपूर्ण संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी उत्पाद के अधिक उत्पादन पर हम उसका निर्यात व मूल्य संवर्धन कर अधिक आय अर्जित कर सकते हैं।  उत्पाद का किसी भी अवस्था में नुकसान या उपयोग में नहीं आना राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी हानी सिद्ध होती है।

डॉ सिंह ने सोया प्रोटीन फिल्म, न्यूट्रेंट फ्रूट बार, कल्परस, गोल्डन मिल्क, कटहल नर्सरी, मधुमक्खी पालन जैसी नई तकनीकीयों पर प्रकाश डाला।  उन्होने दक्षिणी भारत के एक किसान का उदाहरण देते हुऐ बताया कि कटहल के फल से चिप्स, ज्यूस, विवरेज, चपाती ईत्यादी के उत्पाद बनाकर प्रति हैक्टर 13 लाख रूपया प्रति वर्ष की कमाई की जा सकती है । इसी प्रकार देश में कटहल के पौधों की सम्भावित मॉंग 80 करोड़ पौधों की है, जिसकी पूर्ति किसान तथा कृषि स्नातक नर्सरी लगाकर कर सकते है । इसी प्रकार मधुमक्खी पालन की खुबी बताते हुऐ कहा कि शहद उत्पादन के अलावा मधुमक्खी पालन से फसलों में प्राकृतिक परागण सुधार कर फसल के स्वाद के साथ-साथ 20 से 25 प्रतिशत उपज में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है । कोविड-19 महामारी में हल्दी के सक्रिय तत्व कुरकुमीन के शरीर में अधिक अवशोषण के लिए नैनो कुरकुमीन बनाने की तकनीक पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने अनार, कटहल, अंगूर, कसावा व अन्य कंदीय फसलों के विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पाद पर विस्तृत चर्चा की एवं इन उत्पादों से कृषक की कुल आय बढ़ाने पर जोर दिया। कार्यक्रम के शुरुआत में डॉ. दिलीप सिंह, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, ने सेकेंडरी एग्रीकल्चर के विषय पर प्रकाश डाला एवं अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया । डॉ. एस. के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान, ने वेबीनार में हुए व्यक्तव्यों का सारांश व सार्थकता प्रस्तुत की । कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव एवं विभागाध्यक्ष डॉ. एस. एस. लखावत ने अतिथियों व वक्तागण व प्रतिभागियों का धन्यवाद प्रेषीत किया। इस वेबिनार में देश के विभिन्न क्षेत्रों एवं राष्ट्रीय संस्थानों से कुल 1578 प्रतिभागियों ने पंजीकरण करवाया तथा 1039 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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