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दुर्लभ रोगों पर राष्‍ट्रीय नीति निराशाजनक

Editor-Manish Mathur

जयपुर 03 अप्रैल 2021  – पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप्‍स (पीएजी) के सदस्यों ने दुर्लभ रोगों के लिए राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2021 में जानलेवा, दुर्लभ, आनुवांशिक विकारों से पीड़ित रोगियों के लिए फंडिंग सहायता न दिये जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। सदस्‍यों ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने ग्रुप 3 विकारों से पीड़ित मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।

पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप्‍स ने यह कहते हुए गंभीर चिंता जाहिर की है कि ग्रुप 3 बीमारियों से पीड़ितों के लिए फंडिंग सहायता न दिया जाना अनगिनत जिंदगियों के लिए मौत का बिगुल

राष्ट्रीय नीति के अनुसार, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) जैसी बीमारियाँ, जिनके लिए निश्चित उपचार उपलब्ध है, लेकिन लाभ के लिए उचित रोगी चयन करने की चुनौतियाँ हैं, और जिनका उपचार बहुत खर्चीला एवं आजीवन चलने वाला है, ग्रुप 3 के रूप में वर्गीकृत की गयी हैं।

लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मंजीत सिंह के अनुसार, लंबे समय से उपचार की आस लगाये मरीजों के लिए नई नीति में कोई सहायता नहीं दी गयी है, क्योंकि दुर्लभ रोगों के उपचार हेतु पूर्व की राष्‍ट्रीय नीति 2017 को यथावत रखा गया। जीवन रक्षक उपचारों के लिए कोई भी फंडिंग सहायता नहीं दिये जाने के चलते, लगभग 130 से अधिक असामान्‍य रोगियों को उनके भाग्‍य के भरोसे छोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा कि अंतरिम अवधि में कई मरीजों जिनमें ज्यादातर बच्चे शामिल हैं, अपनी जान गंवा चुके हैं क्योंकि पहले की नीति को स्‍थगित रखा गया था। ग्रुप 1 और ग्रुप 2 के विपरीत, ग्रुप 3 विकारों से प्रभावित मरीजों को लगातार उपचार की आवश्‍यकता होती है।

जहां स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सीमित संसाधनों के मद्देनज़र जन स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं की प्रतिस्पर्धात्मक प्राथमिकताओं को संतुलित करने की आवश्यकता का हवाला दिया, वहीं आईआईएम-अहमदाबाद के स्वास्थ्य अर्थशास्त्री प्रोफेसर विश्वनाथ पिंगली ने कहा कि उपचार-योग्‍य विकारों के शिकार 130-असामान्‍य रोगियों की तत्काल उपचार आवश्‍यकताओं को पूरा करने हेतु सक्रिय प्रतिक्रिया की कमी हैरान करने वाली है, जबकि ड्रग्‍स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के अनुसार संबंधित विकारों के लिए उपचार देश में पहले से ही उपलब्‍ध हैं।

उन्‍होंने कहा, ”दुर्लभ बीमारियों के शिकार ऐसे मरीजों जिन्‍हें संबंधित राज्य तकनीकी समितियों द्वारा पात्र पाया गया है, की संख्‍या को देखते हुए, निदानित रोगियों के तत्काल उपचार हेतु सालाना 80-100 करोड़ रु. से अधिक की आवश्‍यकता नहीं होती। यदि समग्र रूप से देखा जाये, तो इसमें केंद्र सरकार द्वारा 40 – 50 करोड़ रु. दिये जाने से काम चल जाता, अगर केंद्र सरकार राज्‍य सरकारों को लोड-शेयरिंग मॉडल पर सहयोग देने के लिए राजी कर ले, चूंकि केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे कुछ राज्‍य इसका पहले ही संकेत दे चुके हैं।”

मरीजों और उनके हिमायती समूहों ने नीति को अधिसूचित किये जाने से पहले हाल ही में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय को लिखकर निम्‍नलिखित मांगें की थी:

  • राष्‍ट्रीय नीति लाने के साथ 80-100 करोड़ रु. की त्‍वरित सीड-फंडिंग बनाएं, जिससे कि उपचार-योग्‍य ग्रुप 3 विकारों जैसे कि लाइसोसोमल स्‍टोरेज डिसऑर्डर जिसके लिए डीसीजीआई अनुमोदित उपचार उपलब्‍ध है, से पीड़ित सभी रोगियों को जीवन-रक्षक उपचार उपलब्‍ध कराया जा सके, ताकि औरों को जान से हाथ न धोना पड़े
  • राष्‍ट्रीय नीति को अधिसूचित किये जाने के बाद 100-दिन का रोल-आउट प्‍लान डिजाइन करें एवं उसे क्रियान्वित करें, जिससे कि देश में दुर्लभ बीमारियों के शिकार सभी पात्र रोगियों जिनकी संख्‍या लगभग 130 है, के उपचार की प्राथमिकता तय हो सके
  • देश में दुर्लभ बीमारी के रोगियों को जीवन रक्षक चिकित्सा उपलब्ध कराने में प्रूफ ऑफ कंसेप्‍ट प्रदर्शित करने वाले राज्‍यों को बराबरी का अनुदान देकर प्रोत्साहित करें और उनकी प्राथमिकता का निर्धारण करें। तीन राज्य – कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु – पहले ही केंद्र से अनुरोध कर चुके हैं कि वो अधिक पात्र रोगियों को उपचार उपलब्‍ध कराने हेतु तत्काल बराबरी अनुदान प्रदान करे। ऐसा करने से, निदान और उपचार की प्रक्रिया भी राज्यों के साथ विकेन्द्रीकृत हो जाएगी, ताकि दुर्लभ रोग के रोगियों के पक्ष में निर्णय लिया जा सके।

 

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