जयपुर, 21 सितंबर, 2021- अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) इकाई अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन (एसीएफ) ने एटीई चंद्रा फाउंडेशन के सहयोग से राजस्थान के पाली जिले और महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त चंद्रपुर जिले में पारंपरिक जल निकायों को फिर से जीवंत करने के प्रयास किए हैं। दोनों जिलों के 50 गांवों में सामुदायिक तालाबों से मिट्टी का मलबा निकालने से 166 मिलियन लीटर अतिरिक्त जल भंडारण क्षमता का निर्माण सुनिश्चित होगा।
इस प्रयास में जल निकायों के चयन से लेकर उनके कायाकल्प की पूरी प्रक्रिया की निगरानी तक, स्थानीय समुदाय की शानदार भागीदारी भी देखी गई, बल्कि यह भागीदारी सर्वकालिक उच्च स्तर पर रही। इसके अतिरिक्त, परियोजना लागत का 75 प्रतिशत खर्च स्थानीय समुदायों द्वारा वहन किया जाता है, जिनमें से कुछ तालाबों से गाद निकालने के लिए उत्खनन मशीनें और ट्रैक्टर लाते हैं और गाद को विभिन्न ग्राम विकास कार्यों के लिए आस-पास के क्षेत्रों में ले जाया जाता है।
कुल मिलाकर, राजस्थान में 1,42,000 क्यूबिक मीटर मलबा हटाया गया और 9 ग्राम पंचायतों में 17 जल निकायों में फैले चंद्रपुर से 24,000 क्यूबिक मीटर गाद निकाली गई। अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड के एमडी और सीईओ नीरज अखौरी ने कहा, ‘‘हम सभी इस तथ्य को बेहतर जानते हैं कि धरती पर मानव जीवन को बनाए रखने के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है। अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड में, हम यह सुनिश्चित करने पर महत्वपूर्ण जोर देते हैं कि ग्रामीण समुदायों की इस बहुमूल्य संसाधन तक पहुंच हो। भारत भर में पानी की कमी वाले क्षेत्रों में इस तरह के प्रयास स्थानीय समुदायों की बुनियादी आवश्यकताओं का समर्थन करने के हमारे निरंतर प्रयासों को प्रदर्शित करते हैं।’’
इस तरह के प्रयासों के तहत गाद निकालने से आसपास के क्षेत्रों में 550 नलकूपों में जल स्तर में वृद्धि हुई है, दूसरी तरफ खुदाई की गई गाद मिट्टी की उपयोगिता भी सर्वविदित है। यह मिट्टी नमी और फसल उत्पादकता में सुधार के लिए अत्यधिक फायदेमंद मानी जाती है।
अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के डायरेक्टर और सीईओ पर्ल तिवारी ने कहा, ‘‘एसीएफ ने पानी के संरक्षण और समुदायों में जल स्तर को बढ़ाने के लिए हमेशा एक नए और अनूठे विजन को अपनाया है और इस दिशा में पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया है। एटीई चंद्रा फाउंडेशन के साथ हमारे इन प्रयासों से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और साथ ही भूजल पुनर्भरण भी सुनिश्चित होगा।’’
एटीई चंद्रा फाउंडेशन के अलावा, केयरिंग फ्रेंड्स, सज्जन इंडस्ट्रीज और अविनाश (इंदिरा फाउंडेशन) जैसे अन्य संगठनों ने भी राबरियावास और चंद्रपुर में कई तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए सहयोग किया है।
जैतारण के प्रधान मेघाराम ने कहा, ‘‘एसीएफ पिछले 18 वर्षों से हमारे क्षेत्रों में जल संरक्षण पर काम कर रहा है। समान विचारधारा वाले संगठनों और समुदाय के सदस्यों की इस संयुक्त साझेदारी के कारण इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है और इससे स्थानीय समुदायों को भी लाभ हुआ है।’’
2000 के दशक की शुरुआत से एसीएफ ने पानी की कमी वाले क्षेत्रों में नए निर्माण करने के बजाय पहले से मौजूद जल संरचनाओं की मरम्मत और रखरखाव को प्राथमिकता दी है। यह दृष्टिकोण आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस तरह भूमि और श्रम सहित नई संरचनाओं के निर्माण से जुड़ी लागत से बचा जा सकता है। ऐसी संरचनाओं की निरंतर निगरानी भी की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रिसाव की गाद निकालने और प्लगिंग के काम को पूरा किया जा सके।
ग्रामीण भारत में पानी की उपलब्धता के प्रबंधन के लिए पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों को पुनर्जीवित करना एक प्रभावी तरीका हो सकता है। समान विचारधारा वाले भागीदारों और समुदायों के साथ लगन से काम करके और खराब जल संरचनाओं की पहचान और मरम्मत के लिए लोगों के संस्थानों का निर्माण करके, इन ग्रामीण समुदायों के लिए स्थायी तरीके से जल सुरक्षा हासिल की जा सकती है।