जयपुर, 14 सितंबर 2021 –
हाल के दौर में कोविड-19 महामारी से उपजे हालात के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है और लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन और भय के माहौल के बीच अपना जीवन गुजारना पड़ा। नौकरी जाने और आमदनी में कटौती होने से लोगों की मुश्किलें और बढ़ गईं और वे गहरी अनिश्चितता के साथ जीवन यापन करते रहे। वैश्विक महामारी से उत्पन्न अनिश्चित स्थिति के प्रभावों से कोई भी अछूता नहीं रहा और ऐसे दौर में ही मानसिक अस्वस्थता के मामले बड़े पैमाने पर सामने आए। इनमें हल्की-फुल्की चिंता से लेकर आत्महत्या की प्रवृत्ति के बढ़ने जैसे चरम मामले भी शामिल हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करने के लिए, एसडी गुप्ता स्कूल अफ पब्लिक हेल्थ, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने एक वेबिनार का आयोजन किया। ‘सुसाइड बिहेवियर प्रिवेंशन इन कोविड-19 सिनेरियो – क्रिएटिंग होप थ्रू एक्शन’ थीम पर आयोजित यह वेबिनार सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण चर्चा श्रृंखला के तहत तीसरा था और इसका आयोजन 10 सितंबर 2021 को वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे के अवसर पर किया गया।
वेबिनार में सार्वजनिक स्वास्थ्य और इससे संबंधित क्षेत्रों से जुड़े प्रतिष्ठित वैश्विक विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किए। इनमें प्रमुख नाम हैं- जन्स हपकिन्स इंटरनेशनल इंजरी रिसर्च यूनिट, जेएचएसपीएच, बाल्टीमोर, यूएसए के फेकल्टी आॅफ इंटरनेशनल हेल्थ और डायरेक्टर ड अब्दुल गफूर एम. बचानी, सेंटर फर इंजरी पलिसी एंड प्रिवेंशन रिसर्च, हनोई स्कूल अफ पब्लिक हेल्थ, हनोई, वियतनाम के डायरेक्टर ड कुओंग फाम वियत, स्कूल आॅफ हेल्थ साइंसेज के प्रोफेसर आॅफ सोशल साइकिएट्री और सेंटर फाॅर मेंटल हेल्थ एंड सोसायटी, बांगोर यूनिवर्सिटी के को-डायरेक्टर प्रो रब पूले और एसडी गुप्ता स्कूल अफ पब्लिक हेल्थ, आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सलाहकार ड डीके मंगल।
अपने स्वागत भाषण में आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंट ड पी आर सोडानी ने कहा, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक दबाव सार्वजनिक स्वास्थ्य के सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है और आत्महत्या एक बड़ा जटिल मुद्दा बन गया है, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद। लेकिन अनेक स्तरों पर आत्महत्या की रोकथाम के लिए आशा और अवसर मौजूद हैं। आईआईएचएमआर विश्वविद्यालय सड़क यातायात के दौरान लगने वाली चोटों से संबंधित अनुसंधान परियोजना में लगा हुआ है और अब आत्महत्या की रोकथाम और अपने आपको नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति से संबंधित अनुसंधान की दिशा में भी काम कर रहा है।’’
ड. अब्दुल गफूर एम. बचानी ने चोटों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करते हुए समस्या की भयावहता को परिभाषित किया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि 3.16 मिलियन चोटें अनजाने में और 1.25 मिलियन जानबूझकर लगाई जाती हैं। इसके अलावा, परिणाम भले ही घातक नहीं हों, लेकिन परिवारों, समुदायों और समाजों को इनके लिए एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक लागत वहन करना पड़ती है। उन्होंने बताया कि हर साल 10-29 वर्ष की आयु के 2,00,000 लड़के आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं। साथ ही, हाल के दौर में जो अनपेक्षित प्रतिबंध लागू किए गए हैं, वे दुनिया भर में अलगाव, भय और चिंता की भावना पैदा करते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आत्महत्याओं के मामलों पर वैश्विक तौर पर ध्यान दिया जाए और मुश्किलों में फंसे युवाओं की मदद करते हुए सतत विकास लक्ष्यों को पेश किया जाना चाहिए। उन्होंने समझाया कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए बहुक्षेत्रीय रणनीतियों की आवश्यकता होगी, साथ ही समुदाय और जनसंख्या आधारित ष्टिकोणों का विकास और मूल्यांकन करना, उच्च जोखिम वाले समूहों के साथ जोखिम और सुरक्षात्मक कारकों की पहचान करना भी जरूरी है। उन्होंने बिग डेटा की शक्ति का उपयोग करने की जरूरत भी बताई और किशोरों की चोट और हिंसा की रोकथाम के लिए एआई की उपयोगिता को भी रेखांकित किया।
सेंटर फर इंजरी पलिसी एंड प्रिवेंशन रिसर्च, हनोई स्कूल अफ पब्लिक हेल्थ, हनोई, वियतनाम के डायरेक्टर ड कुओंग फाम वियत ने हाई स्कूल के छात्रों के बीच आत्महत्या के विचार और अवसाद पर व्यक्तिगत और स्कूल-स्तर के प्रभावों की व्याख्या की। उन्होंने उल्लेख किया कि कोविड महामारी के बाद उपजे हालात में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ पारिवारिक हिंसा में वृद्धि हुई और सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कोविड-19 की रोकथाम और इलाज को प्राथमिकता दी जा रही है, लेकिन चोटों और हिंसा को रोकने की दिशा में ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
प्रो रब पूले ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आत्महत्या की घटनाओं को टाला जा सकता है और इससे होने वाली मौतों की संख्या को भी कम किया जा सकता है। उन्होंने कोविड के बाद उपजे अवसाद और निराशा के माहौल को दूर करने के लिए स्कूली शिक्षकों, स्कूल नर्सों और किसी भी स्कूल स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता की सेवाओं का उपयोग करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि किशोरों के साथ संपर्क करने से उनके मन में सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा मिलेेगा और नकारात्मक विचार दूर होंगे।
हर साल 8,00,000 से अधिक लोग आत्महत्या करते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। खुदकुशी की दर में पिछले 40 वर्षों के दौरान 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हर साल जितने लोगों की हत्या की जाती है, उससे कहीं अधिक लोग आत्महत्या करते हैं। हर खुदकुशी दरअसल समाज के लिए एक त्रासदी है। इसकी कीमत परिवारों और समाजों को चुकानी पड़ती है। महामारी के दौरान और उसके बाद मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए, देशों को आगे की कार्रवाई करने के लिए केस रजिस्ट्री की एक मजबूत प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।