Editor- Dinesh Bharadwaj
जयपुर। विश्व सीओपीडी दिवस के दिन कुछ महत्वपूर्ण और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के बारे में चौंकाने वाले तथ्य निम्नलिखित हैंः
- भारत विश्व की सीओपीडी राजधानी है; हमारे देश में सीओपीडी के मामलों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है।
- भारत में 30 वर्ष और उससे अधिक आयु की आबादी में सीओपीडी का 7 प्रतिशत प्रसार है।
- सीओपीडी से होने वाली मौतों में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
- एड्स, टीबी, मलेरिया, मधुमेह सभी को मिलाकर भी सीओपीडी अधिक मौतों का कारण बनता है।
इन परेशान करने वाले तथ्यों के बावजूद, सीओपीडी के बारे में जन जागरूकता खराब है, जिसके परिणामस्वरूप सीओपीडी के निदान में देरी हो सकती है। डायग्नोसिस में देरी से सीओपीडी का तेज होना या लंग-अटैक हो सकता है जो कि खराब सीओपीडी सब-ऑप्टीमल मैनेजमेंट का परिणाम हो सकता है। सीओपीडी जैसे रोग में सांस फूलना और खांसी काफी बढ़ जाती है। कभी-कभी टखनों में सूजन के साथ-साथ बेहद थकान भी महसूस होती है। लंग-अटैक के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लंग अटैक में हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ सकता है, आईसीयू में एडमिट होने के बाद यह और घातक हो सकता है। पहले से ही फेफड़ों के कार्य में गिरावट होने से स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
सीओपीडी आमतौर पर हानिकारक कणों या गैसों के महत्वपूर्ण संपर्क के कारण होता है। धूम्रपान करने वालों, पुरुषों और 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में यह आमतौर पर अधिक होता है। तम्बाकू एवं धूम्रपान सीओपीडी के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक के रूप में जाना जाता है। खाना पकाने के लिए (ग्रामीण गांवों में आम) चूल्हे या बायोगैस का उपयोग करने वाली महिलाओं में भी सीओपीडी का खतरा उच्च स्तर पर है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण और बार-बार फेफड़ों में संक्रमण से सीओपीडी का खतरा और भी बढ़ जाता है।
डॉ वीरेंद्र सिंह, अध्यक्ष, राजस्थान अस्पताल एवं निदेशक, अस्थमा भवन ने कहा कि, लगातार धुएं वाले कारको के संपर्क में आने से और बार-बार लंग संक्रमण के संपर्क से अंतर्निहित सीओपीडी बढ़ सकता है जिससे फेफड़े का दौरा पड़ता है। सीओपीडी पर जागरूकता की कमी की वजह से लोग डॉक्टर्स के पास नहीं जाते हैं जो कि इसके रोकथाम में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सीओपीडी के लक्षणों की पहचान करना और लंग-अटैक होने पर चिकित्सक से समय पर सहायता प्राप्त करना इस रोग की प्रगति को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। यदि धूम्रपान करने वालों को यह पता हो कि इससे लंग-अटैक हो सकता है तथा जिसके लिए तत्काल चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता होती है, वे समय से चिकिसकीय सहायता ले लेंगे । रोग के निदान के लिए नियमित रूप से फेफड़ों के कार्य की जाँच तथा सीओपीडी के जोखिम कारकों कि जांच आवश्यक है।
सिप्ला के वैश्विक मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ. जयदीप गोगटे ने कहा, सिप्ला में, हम मानते हैं कि सीओपीडी की जागरूकता लोगों को सीओपीडी के शीघ्र और सटीक निदान के महत्व को समझने में मदद करेगी और इस प्रकार फेफड़ों के अटैक को रोकने में मदद करेगी। भारत, जहां एशिया में सबसे अधिक सीओपीडी बोझ है, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विश्व सीओपीडी दिवस के अवसर पर, सिप्ला भारत में ‘स्पाइरोफी’ लॉन्च कर रहा है जो कि पहला न्यूमोटेक आधारित पोर्टेबल, वायरलेस और किफायती स्पाइरोमीटर होगा। सिप्ला की ‘स्पाइरोफी’ पूरे पांच वर्षों के इन-हाउस विकास का परिणाम है और इसका उद्देश्य भारत में ऑब्सट्रक्टिव एयरवे डिजीज (ओएडी) को समय पर डायग्नोसिस करना है। हमें उम्मीद है कि यह डिवाइस समय पर सटीक डायग्नोसिस कर लोगों की जान बचाने में सक्षम होगा।
फेफड़े के कार्य परीक्षण कि जांच स्पिरोमेट्री से करनी चाहिए जो कि सीओपीडी के निदान के लिए गोल्ड स्टैण्डर्ड है। हालांकि यह आमतौर पर नहीं जांचा जाता है और निदान काफी हद तक रोगी के इतिहास और लक्षणों पर आधारित होता है। स्पिरोमेट्री नहीं करने की वजह से सीओपीडी के बहुत से मामले जांच में छूट सकते हैं।
डायग्नोसिस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ वीरेंद्र सिंह ने बताया कि, प्रारंभिक स्क्रीनिंग और डायग्नोसिस फेफड़ों के अटैक के रोग के बोझ को कम करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्वसन रोग संबंधी लक्षणों वाली आबादी में स्पिरोमेट्री टेस्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गलत डायग्नोसिस से बचाती है और वायु प्रवाह सीमा की गंभीरता का मूल्यांकन करने में सहायता करती है। जबकि सांस की बीमारियों के कारण पूरी तरह से आपके नियंत्रण में नहीं हो सकते हैं फिर भी समय पर पता लगाने के लिए सतर्क और जागरूक रहना महत्वपूर्ण है।