Editor-Manish Mathur
जयपुर 14 मार्च 2022, फेस्टिवल के चौथे दिन, Hotel Clarks, Amer, में वक्ताओं और श्रोताओं का तांता लगा रहा| पिछले दिन समाप्त हुए सत्रों में, मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट और बेस्टसेलिंग लेखक, शशि थरूर से संवाद किया पत्रकार, लेखक और स्तंभकार वीर सांघवी ने| थरूर शब्दों के जादूगर हैं, जो बहुप्रशंसित 20 किताबें लिख चुके हैं| चर्चा के दौरान, थरूर ने किताबें पढ़ने के अपने प्रेम के बारे बताया| भारत की विविधता पर बात करते हुए, थरूर ने कहा, “वो भारत जो किसी एक को ठुकराता है, वो हम सबको ठुकरा देता है|” एक सत्र, ‘एन्शिएंट इंडिया: कल्चर ऑफ़ कोंट्राडिक्शन’, में जानी-मानी प्रोफेसर और लेखिका उपिन्दर सिंह से इतिहासकार, लेखक और फेस्टिवल के को-डायरेक्टर, विलियम डेलरिम्पल ने संवाद किया| उपिन्दर सिंह ने प्राचीन भारत, राजनैतिक हिंसा इत्यादि पर काफी लिखा है| सत्र के दौरान, सिंह ने अपनी नई किताब, द आईडिया ऑफ़ एन्शियंट इंडिया पर चर्चा की|
फेस्टिवल के चौथे दिन की शुरुआत, फ्रंट लॉन में न्यूट्रीशन कंसल्ट और योग टीचर, शिखा मेहरा के योग सत्र के साथ हुई| मेहरा ने अभ्यास की शुरुआत श्वास सम्बन्धी अभ्यास से कराई, और तन-मन में मौजूद जकड़न और तनाव को दूर किया| प्राणायाम के अभ्यास के साथ सत्र की समाप्ति हुई| सुबह की इस ऊर्जा को आगे बढ़ाया ‘द आह्वान प्रोजेक्ट’ ने| ‘आह्वान’ ने अपने नाम के अनुरूप ही, कबीर के दर्शन को पावरफुल संगीत में पिरोकर, ओज और सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान (आमंत्रित) किया| बैंड में शामिल संगीतकार थे: सुमित बालाकृष्णन, अनिर्बान घोष, वेदी सिन्हा, वरुण गुप्ता और निखिल वासुदेवन|
आज के आकर्षण:
• एक सत्र में मौजूद वक्ता थे: वायलिन वादक अम्बी सुब्रमण्यम; गीतकार और गायक, शेखर राव्जीअनी; संगीतकार अयान अली बंगश; और शोधकर्ता लेखिका और क्यूरेटर साधना राव ने ‘राग’ के अर्थ और उससे जुड़ी अपनी समझ और अनुभव साझा किये| राग अपनी प्रकृति से रचना की अमरता, अभिव्यक्ति और आज़ादी की बात करते हैं| रागों की प्राचीन और असमानांतर प्रणाली में हर रंग और रस की अभिव्यक्ति होती थी| जेएलएफ 2022 में शास्त्रीय और समकालीन संगीत के विशेषज्ञों ने एक मंच पर एकत्र होकर अपनी बात रखी| चर्चा के दौरान, शेखर ने कहा कि वो अपने आप को खुशकिस्मत मानते हैं कि वो संगीत से जुड़े हैं| इस प्रक्रिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “…मेरे लिए राग एक भाव है… जब मैं किसी धुन पर काम करता हूँ, तो मेरे दिमाग में एक धुन बज रही होती है, अब वो राग का क्या नाम है, मुझे नहीं पता, जब बनाता हूँ उसके लोग कहते हैं कि – ये गाना तो बहार से लिया गया है…”
• हमारे जीवन में धरती माँ, वन्यजीवन, प्राकृतिक संरक्षण, साहित्य और हीलिंग की महत्ता पर आधारित एक सत्र में, पुरस्कृत ब्रिटिश कवयित्री रुथ पडेल और पर्यावरणवादी जैवविज्ञानी, लेखिका और स्तंभकार नेहा सिन्हा से संवाद किया लेखिका वंदना सिंह-लाल ने| सत्र में पडेल ने अपनी किताब, वेयर द सर्पेंट लिव्स के बारे में बात की और कुछ अंश पढ़े, जबकि सिन्हा ने अपनी किताब, वाइल्ड एंड विल्फुल से अंश पढ़े| मनुष्य को कैसे वनों के साथ जुड़ा रहना चाहिए, इस पर सिन्हा ने कहा, “जंगल के बारे में डरने की यही बात है… अगर आप अपनी सीमा में रहते हैं, तो पशु भी आपका सम्मान करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि लोग हमेशा सीमाओं का पालन नहीं करते… इंसानों की यही सबसे बड़ी कमी है, कि हम हर सीमा को पार करना चाहते हैं|”
• फिल्म समीक्षक और लेखिका अनुपमा चोपड़ा की किताब, ए प्लेस इन माय हार्ट सिनेमा के जादू और सिने-प्रेमियों का खूबसूरत दस्तावेज है| लेखिका शुनाली खुल्लर श्रॉफ से संवाद में, चोपड़ा ने अपने काम, साधना और फिल्मों के बारे में विस्तार से चर्चा की| चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, करण जौहर और ज़ोया अख्तर जैसी हस्तियों के बारे में भी बात की| सिनेमा पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, “…मैं सिनेमा में किसी भी प्रकार के नियमों के खिलाफ हूँ…”
• हान मिचल्सकी फाउंडेशन बैठक में, डिज़ाइन डायरेक्शन प्रा. लिमिटेड के मालिक सतीश गोखले से आर्च कॉलेज ऑफ़ डिजाइन की फाउंडर व डायरेक्टर, अर्चना सुराना ने संवाद किया| सत्र भविष्य में मनुष्य और पर्यावरण के सोहार्द्र की रूपरेखा पर आधारित था| भविष्य के बिजनेस मॉडल को हर लिहाज से प्रकृति को ध्यान में रखना होगा|
• एक सत्र भाषा और उसकी संभावनाओं पर आधारित था| मंच पर उपस्थित लोकप्रिय लेखकों दिव्य प्रकाश दुबे और निशांत जैन से प्रकाशक व संपादक अदिति महेश्वरी गोयल ने बात की| हिंदी भाषा के बदलते स्वरुप पर सत्र में दिलचस्प बात हुई| हिंदी भाषा नई पीढ़ी के लिए ‘कूल’ बन गई है| नए डिजिटल मीडियम ने न सिर्फ हिंदी से प्यार करने वालों, बल्कि हिंदी के माध्यम से कमाने वालों को भी एक नया मंच प्रदान किया है| कभी एक मुश्किल भाषा समझी जाने वाली हिंदी अचानक से युवा पीढ़ी की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई| इस बदलाव के पीछे की कहानी और उसके भविष्य लेखकों ने बेहद सार्थक विचार रखे|
• एक अन्य सत्र में, संसद सदस्य और बेस्टसेलिंग लेखक शशि थरूर; रिटायर्ड जज मदन बी. लोकुर; पत्रकार, रिपोर्टर और स्तंभकार स्वाति चतुर्वेदी और उद्यमी और इन्वेस्टर मोहित सत्यानंद ने चर्चा में — स्टेट सर्विलेंस पर प्रकाश डाला| राज्य द्वारा की जाने वाली निगरानी पर बात करते हुए, सत्यानंद ने कहा, “मैं इसे फासीवादी निगरानी कहूँगा|” थरूर ने कहा कि वो फासीवाद शब्द का इस्तेमाल इतनी सहजता से नहीं करना चाहते क्योंकि अब यह शब्द किसी आंकलन के बजाय एक गाली बनता जा रहा है, लेकिन उन्होंने कहा, “राज्यों की निगरानी बढ़ी जरूर है…” सत्र चर्चा डिजिटल युग पर आधारित थी|
• फेस्टिवल के एक सत्र में, भारतीय राजनेता और भूतपूर्व टीवी अभिनेत्री और प्रोडूसर, स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने अपनी नई किताब, लाल सलाम पर चर्चा की| किताब अप्रैल 2010 में दांतेवाडा में मारे गए 76 CRPF जवानों की बात करती है| ये हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में ड्यूटी देते हुए जवानों के साहस और लचीलेपन की कहानी है| पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ संवाद में, ईरानी ने बताया कि किस प्रेरणा से वो इतनी विचारोत्तेजक किताब लिखने को तैयार हुई| चर्चा के दौरान, ईरानी ने अपनी एक दशक की शोध और किताब मिलने पर संजॉय (टीमववर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर) की विनम्र प्रतिक्रिया के बारे में बताया| उन्होंने कहा, “अगर आप संजॉय को जानते हैं, तो ये भी जानते हैं कि कैसे वो एक नज़र में कुछ विशेष और असाधारण विचार दे जाते हैं| मेरे लिए ये किताब उन बहुत से लोगों के बलिदान को एक श्रृद्धांजलि है, जिन्होंने इस देश के संविधान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी|”