फैबइंडिया उपभोक्ताओं की जीवन शैली से जुड़ा एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसकी 62 साल की प्रामाणिक विरासत अधिकृत और सस्टेनेबल भारतीय पारंपरिक जीवन शैली उत्पादों पर केंद्रित है। फैबइंडिया ने लगभग 64 प्रतिशत महिला कारीगरों के साथ 50,000 से अधिक कारीगरों को सशक्त बनाया है जो आज अपने समुदायों में दूसरों को सशक्तिकरण का मार्ग दिखा रहे हैं। कंपनी सस्टेनेबल कृषि पद्धतियों को आगे बढ़ाने के लिए 2,200 से अधिक किसानों और सहयोगियों के माध्यम से 10,300 से अधिक किसानों के साथ भी काम करती है।
फैबइंडिया को हाल ही में ई4एम ‘प्राइड ऑफ इंडिया ब्रांड्स – द बेस्ट ऑफ भारत’ कॉन्फ्रेंस और पुरस्कार 2022 के उद्घाटन संस्करण में ‘बेस्ट ऑफ भारत’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पुरस्कारों का उद्घाटन संस्करण मुंबई में आयोजित किया गया था, जो भारत में, भारत के लिए ब्रांड बनाने वाले उद्यमियों की कामयाबी का जश्न मनाने और उन्हें सम्मानित करने के लिए आयोजित किया गया था।
पुरस्कार समारोह में विभिन्न ब्रांड्स को उनके प्रोडक्ट्स, प्रोसेस और मार्केटिंग संबंधी नीतियों में इनोवेशन और एक्सीलैंस के नए स्टैंडर्ड कायम करने के लिए मान्यता दी गई और उनकी सफलता का जश्न मनाया गया।
फैबइंडिया का कारीगर परिवारों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े रहने और उन्हें संरक्षण देने और उनके विकास के मार्ग में सहायक बनने का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास रहा है। 62 वर्षों से अधिक समय से, कंपनी ने पूरे भारत में कारीगर समुदायों के लिए बाजार और निरंतर आजीविका के अवसर निर्मित करने के लिए काम किया है।
2011 में, फैबइंडिया ने उत्तर प्रदेश राज्य के तीन गांवों खुर्रमपुर, शरणपुर और करोंदा में महिलाओं के लिए एक माइक्रो-एंटरप्रिन्यूरियल प्रोजेक्ट शुरू किया। इस दौरान प्रोजेक्ट के एक हिस्से के रूप में, महिला कारीगरों को पारंपरिक शिल्प कौशल का उपयोग करके बेहतर आजीविका कमाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इस कार्यक्रम ने 152 महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष रूप से और लगभग 760 महिलाओं के लिए अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका का सृजन किया। समय के साथ, कुशल महिला कारीगरों ने बुनाई से लेकर सिलाई और अन्य उत्पादों को विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाए और इस तरह अपनी आमदनी का दायरा बढ़ाया।
इस परियोजना की सफलता ने फैबइंडिया को 2016 में कारीगरों के लिए क्राफ्ट क्लस्टर डेवलपमेंट एंड लाइवलीहुड इम्पैक्ट (सीडीएलआई) कार्यक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से कारीगरों की दक्षता को और बढ़ावा देने और उनके लिए आजीविका सृजन के और अधिक प्रयास किए गए। क्लस्टर आम तौर पर एक विशेष गांव में कारीगरों का एक समूह होता है और कभी-कभी इनमें हथकरघा बुनकर सहकारी समितियां भी शामिल होती हैं।
सीडीएलआई कार्यक्रम गुणवत्ता को प्रभावित किए बिना बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए कारीगरों के ज्ञान और कौशल आधार को बढ़ाने पर केंद्रित है। आज, सीडीएलआई पूरे उत्तरी भारत में 17 समूहों के साथ काम करता है, जिनमें 345 कारीगर शामिल हैं। इनमें से 80 प्रतिशत महिलाएं हैं। कंपनी का लक्ष्य अगले दो वर्षों में प्रत्येक क्लस्टर में कम से कम 200 कारीगरों को रोजगार देना है।
ऐसा ही एक उदाहरण प्रहलाद का है, जिसका परिवार जयपुर के पास एक छोटे से गाँव जाघ में तीन से चार प्रिंटिंग टेबल के साथ कपड़े की छपाई का व्यवसाय चलाता था। अपनी मदद के लिए उसने गाँव की दो महिलाओं को भी अपने साथ जोड़ रखा था। आज प्रहलाद के पास 18 टेबल हैं, जिनमें सात से ग्यारह महिलाएं और पांच पुरुष कारीगर हैं जो प्रति माह 12,000 से 15,000 मीटर कपड़े का उत्पादन करते हैं। फैबइंडिया के क्लस्टर डेवलपमेंट एंड लाइवलीहुड इनिशिएटिव (सीडीएलआई) कार्यक्रम की बदौलत प्रहलाद का व्यवसाय कई गुना बढ़ गया है, जिसके कारण अब नए प्रशिक्षित कारीगर भी मिलने लगे हैं, जिससे उन्हें कार्य संचालन का विस्तार करने में मदद मिली।
कुछ अन्य सफलतापूर्वक चलने वाले क्लस्टर उत्पादों में पश्चिम बंगाल और असम की साड़ियां शामिल हैं, जो साड़ियों में विशिष्ट हैं, पूर्वी समूहों में विकसित प्राकृतिक फाइबर उत्पाद, बर्दवान क्लस्टर में विकसित कांथा कुशन कवर शामिल हैं।
सीडीएलआई ने कई कारीगरों को संरक्षण देते हुए उन्हें प्रशिक्षित किया है और वर्षों से नए शिल्प क्षेत्रों की पहचान करते हुए उन्हें अपना सपोर्ट दिया है। इसकी स्थापना के बाद से, चार समूहों को फैबइंडिया की आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत किया गया है, और कई कारीगर अपने स्वयं के क्लस्टर स्थापित करने वाले ‘मास्टर कारीगर’/‘वरिष्ठ कारीगर’ बन गए हैं।