साल 2022 में निर्माण सामग्री के उद्योग में ज़बरदस्त बदलाव आए। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में तेज़ी से के चलते रियल एस्टेट उद्योग में तेज़ी से उछाल आया। निर्माण सामग्री का उद्योग तेज़ी से उछाल के बाद कोविड से पहले वाले स्तर तक पहुंच गया। सेक्टर ने 2022 में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की। अब हम 2023 की ओर रूख कर रहे हैं, इस बीच विकास की गति धीमी होने के कोई संकेत नहीं हैं, इसके बजाए तीव्र विकास की पूरी संभावनाएं हैं। निर्माण सामग्री के सेक्टर में विकास, अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह हमारे देश के जीडीपी में लगभग 9 फीसदी योगदान देता है और 51 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
सांख्यिकी एवं प्रोग्राम कार्यान्वयन मंत्रालय के इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग डिविज़न के अनुसार 1 मई 2022 को देश में रु 26.7 ट्रिलियन (352.3 बिलियन डॉलर) की 1559 परियोजनाएं पाईपलाईन मेें थी। इनमें से कुछ परियोजनाएं तकरीबन पूरी हो गई हैं, हालांकि कुछ बड़ी परियोजनाओं का काम अभी बाकी है, ऐसे में निर्माण सामग्री के उद्योग में विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसके अलावा रिहायशी एवं कमर्शियल रियल एस्टेट का विकास भी इस उद्योग को तेज़ी दे रहा है। उम्मीद है कि 2023 में देश भर में नई परियोजनाओं के विकास में तेज़ी आएगी, जिसके चलते निर्माण सामग्री की मांग बढ़ेगी। आज के युवा अपने घर को प्राथमिकता दे रहे है, क्योंकि यह उन्हें लम्बे समय के लिए सुरक्षा देता है। महामारी के बाद लक्ज़री होम के बाज़ार में निवेश बढ़ा है। इन सब पहलुओं को देखते हुए गुणवत्तापूर्ण निर्माण सामग्री की मांग बढ़ेगी। इसके अलावा कॉर्पोरेट्स एवं व्यक्तिगत स्तर पर लोग जीवन के हरित तरीकों को अपना रहे हैं, जिससे सेक्टर को प्रोत्साहन मिल रहा है। उम्मीद है कि उद्योग जगत 2023 में दो अंकों में बढ़ोतरी दर्ज करेगा।
श्री अश्विन रेड्डी, मैनेजिंग डायरेक्टर, अपर्णा एंटरप्राइज़ेज़ ने कहा, ‘‘सरकार द्वारा देश को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के दृष्टिकोण और इसके लिए किए गए निवेश को देखते हुए सेक्टर में तेज़ी से विकास हो रहा है। नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाईपलाईन हो या प्रधानमंत्री गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान; निर्माण सामग्री के उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव के संकेत दिखाई देते हैं। उपक्षेत्र के नज़रिए से देखा जाए तो आरएमसी, यूपीवीसी विंडो एवं डोर सिस्टम, टाईल एवं मैनुफैक्चर्ड सैण्ड में विकास की पूरी संभावनाएं हैं। ज़्यादा से ज़्यादा उपभोक्ता चाह रहे हैं कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम से कम किया जाए, इसके लिए वे हरित विकल्पों को अपनाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, मैनुफैक्चर्ड सैण्ड या रोबो सैण्ड, नदी की मिट्टी के अच्छे विकल्प हैं, जिसे अपनाकर खनन के द्वारा प्रकृति पर दबाव को कम किया जा सकता है। इसी तरह यूपीवीसी विंडो एवं डोर सिस्टम, लकड़ी की खिड़कियों और दरवाज़ों के अच्छे विकल्प हैं।
उपरोक्त पहलुओं को देखते हुए बाज़ार में अपार संभावनाएं हैं, हालांकि इन अवसरों का लाभ उठाने के लिए सरकार सहित सभी हितधारकों को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। भारत में आरएमसी का बाज़ार वर्तमान में 25 बिलियन डॉलर पर है, उम्मीद है कि अगले चार सालों में ये 15 फीसदी से अधिक विकास दर्ज करेगा। यूपीवीसी भी पीछे नहीं है, इसकी मांग 11 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रही है, यह 2025 तक 7.3 बिलियन डॉलर के आंकड़े तक पहुंच जाएगा। एक महत्वपूर्ण पहलु यह है कि मुद्रास्फीती पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आपूर्ति श्रृंखला में डिसरप्शन एवं राज्य सरकार द्वारा निर्माण सामग्री पर कर भी बड़ी समस्याएं हैं। सरकार को नैचुरल गैस और पेट्रोलियम सहित कर को तर्कसंगत बनाना होगा, निर्माण सामग्री जैसे सीमेंट पर कर की दर में कमी लानी होगी, जिस पर अभी सबसे ज़्यादा 28 फीसदी कर लगाया जा रहा है। इन सब तरीकों से उद्योग जगत पर मुद्रास्फीती के असर को कम किया जा सकता है। मुद्रास्फीती के परिणामस्वरूप श्रम एवं कच्चे माल की लागत बढ़ रही है। इस पर नियन्त्रण लगाकर सामग्री को किफ़ायती बनाया जा सकता है और स्थिति पर पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। दूसरा ब्याज की दरें भी इस सेगमेन्ट को प्रभावित करती हैं, इसलिए सरकार को ब्याज दरों में भी कमी जानी चाहिए। इसके अलावा ज़रूरी निर्माण सामग्री के निर्माण पर ब्याज में छूट भी देनी चाहिए, ताकि उत्पादन की अप्रत्याशित रूप से बढ़ती लागत पर लगाम लगाई जा सके। तीसरा कुशल मैनपावर की कमी एक बड़ी समस्या है। स्टेटिस्टा के मुताबिक 2022 में निर्माण उद्योग में श्रम में तकरीबन 85 फीसदी कमी थी। ऐसे में कार्यबल को कुशल बनाने के लिए उचित योजना बनाने की आवश्यकता है। अंत में रियल एस्टेट परियोजनाओं में कई अनुमोदन चाहिए होते हैं, जो इस क्षेत्र के प्लेयर्स के लिए चुनौती बन जाते हैं।
हालांकि पिछले 2-3 सालों में सरकार ने निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं, किंतु इस क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियां हैं, बेहतर भविष्य के लिए इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।