जयपुर, 23 जनवरी: फेस्टिवल का चौथा दिन, रविवार की सुबह हलकी ठंड और पेंजे बैंड के सुमधुर संगीत के साथ हुई| भारतीय और पश्चिमी संगीतकारों वाला ये बैंड अपने सुरों के माध्यम से इस सम्मिलन के जादू को जगाने में कामयाब रहा| फेस्टिवल के चौथे दिन विवेकानंद के ज्ञान, हरिप्रसाद चौरसिया की विरासत, जाति प्रथा के दंश, आज़ादी की कीमत और कला के विविध रूपों पर विस्तार से बात हुई|
रविवार की सुस्ती को झटकते हुए पहले सत्र ‘कास्ट मैटर’ ने श्रोताओं को समाज की वास्तविकता से रूबरू कराया| सत्र सूरज येंग्ड़े की किताब, कास्ट मैटर पर आधारित था, जिसमें सूरज से बात की वरिष्ठ अकादमिक सुरेंदर एस. जोधका ने| सत्र की शुरुआत करते हुए जोधका ने भारत में जातिवाद के इतिहास पर रौशनी डालते हुए कहा, “2023 में आज भी हमें जातिवाद पर बात करनी पड़ रही है| भारत को आज़ाद हुए 75 साल हो गए हैं, हालाँकि आज जाति के बारे में जो बात हो रही है वो 70 और 80 के दशक से अलग है|” उन्होंने मंडल मिशन के माध्यम हरिजन, ओबीसी और दलितों के संघर्ष को व्यक्त किया|
लम्बे समय जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लेखक और विचारक सूरज येंग्ड़े ने विजय सिंह पथिक सहित उन सभी विचारकों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस दिशा में काफी काम किया है| फिर जातिवाद की जमीनी हकीकत के बारे में कहा, “कुछ लोगों के लिए ये गर्व की बात है, पर अधिकांश लोगों के लिए शर्मिंदगी है| ये शर्मिंदगी ही उन्हें हिंसा के लिए मजबूर करती है| वे इस नए रिपब्लिक का हिस्सा नहीं बन पाते|” हालाँकि उन्होंने माना कि भारत की प्रत्येक विचारधारा ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, फिर वो चाहे बौद्ध हों, नाथपंथी, कबीरदास या तुलसीदास… सभी ने इसके खिलाफ बीड़ा उठाया है|
‘अज्ञेय, निर्मल वर्मा’ पर आधारित एक अन्य सत्र में, अक्षय मुकुल और विनीत गिल से संवाद किया प्रज्ञा तिवारी ने| अक्षय मुकुल ने साहित्यकार अज्ञेय साहित्य पर गहन शोध की है और उनकी कई किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया है| विनीत गिल ने साहित्यकार निर्मल वर्मा पर गहन कार्य किया है| सत्र की शुरुआत में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विद्या शाह ने अज्ञेय की कविता, ‘चले चलो ऊधो’ को अपनी सम्मोहक आवाज़ में प्रस्तुत किया|
अज्ञेय के बारे में बात करते हुए अक्षय मुकुल ने कहा, “अज्ञेय में बेचैनी थी… उन्होंने प्रेमचंद से लेकर सभी महान साहित्यकारों को पढ़ा और सराहा था, लेकिन उन्हें कुछ और कहना था| उनकी ये बेचैनी उनके उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ में व्यक्त होती है|” तार-सप्तक के माध्यम से अज्ञेय ने कविता के नए स्वरुप को पेश करने का बीड़ा उठाया|
निर्मल वर्मा के लेखन के बारे में बात करते हुए, विनीत गिल ने कहा, “वर्मा ‘आधुनिकीकरण’ से प्रभावित थे| अपने समकालीन साहित्यकार अज्ञेय से वे सहमत नहीं थे| वो ‘नई कहानी’ के प्रति आकर्षित थे|” अज्ञेय और निर्मल वर्मा के साहित्य में सबसे बड़ा फर्क था कि अज्ञेय का फोकस जहाँ ‘आदर्शवादी यथार्थ’ पर था, वहीं वर्मा ‘आंतरिक यथार्थवाद’ के पक्षधर थे|
पुरस्कृत लेखिका चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी ने लेखिका और मौखिक इतिहासकार आँचल मल्होत्रा से ‘इंडिपेंडेंस’ सत्र में संवाद किया| ये सत्र चित्रा के हालिया प्रकाशित उपन्यास, इंडिपेंडेंस पर आधारित था| उपन्यास के बारे में बात करते हुए चित्रा ने कहा, “अगर हमें राष्ट्र निर्माण की कहानी ही याद नहीं रहेगी, तो हम आज़ादी का मतलब कैसे समझ पाएंगे| ये दुखद है कि अब हम इसके बारे में नहीं पढ़ते|” महिला आधारित उपन्यास लिखने की बात पर उन्होंने कहा, “एक महिला होने के नाते महिलाओं की कहानी लिखना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| मैं उन महिलाओं की बात कहना चाहती हूँ जिन्होंने आज़ादी, विभाजन, हिंसा और अपमान को झेला… हर महिला असाधारण है और हर कहानी खास और मौलिक है|” इस किताब का आयोजन फेस्टिवल में सुधा मूर्ति ने किया|
‘समाज, सरकार, बाज़ार’ सत्र में सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर लेखिका और लोक-कल्याणकारी रोहिणी निलेकनी ने बताया कि नागरिकों को समाज, सरकार और बाज़ार के प्रति क्या नजरिया रखना चाहिए| रोहिणी अपने फाउंडेशन के माध्यम से कई परोपकारी कार्य करती हैं| सत्र में रोहिणी से संवाद किया जाने-माने लेखक और आलोचक वीर सांघवी ने| रोहिणी ने बताया कि उनका पालन-पोषण मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ और सादगी से जीने वाले उनके परिवार में संसाधनों को वरीयता दी जाती थी| इनफ़ोसिस और उसके बाद के बदलावों के बारे में उन्होंने कहा, “पैसा आने के बाद मुझे उससे जुड़ी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ… और मैंने छोटे-छोटे बदलावों की तरफ ध्यान दिया जैसे रोड सेफ्टी, साफ़ पानी… ” उन्होंने कहा समग्र रूप से भारतीय आशावादी हैं, और वो हर समय बुराई करने की बजाय, कुछ करने की कोशिश में लगे रहते हैं| “हम बैठकर सिर्फ अच्छे शासन की उम्मीद नहीं कर सकते… एक नागरिक के तौर पर हमें भी अच्छे शासन में योगदान देना ही होगा|” समाज, सरकार, बाज़ार: ए सिटीजन फर्स्ट अप्रोच रोहिणी की किताब है|
‘गुरु टू द वर्ल्ड’ सत्र में अमेरिकी इतिहासकार और अकादमिक रुथ हैरिस ने पश्चिम पर पड़े विवेकानंद के प्रभाव को बताया| सत्र रुथ की किताब गुरु टू द वर्ल्ड: द लाइफ एंड लीगेसी ऑफ़ विवेकानंद पर आधारित था| सत्र शुरू करते हुए भारतीय इतिहासकार और पत्रकार हिंडोल सेनगुप्ता ने कहा कि विवेकानंद के बारे में जितना भी कहा जाए उतना कम है| रुथ ने कहा कि लगभग एक ही समय में भारत से स्वामी विवेकानंद और महात्मा गाँधी पश्चिम गए और अपने कार्यों से वहां के मन-मस्तिष्क को हिला दिया| “मैं पश्चिमी लोगों पर भारत विचारों के प्रभाव से हैरान हुई|” स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी लोगों को आध्यात्मिकता का नया अर्थ समझाया|
‘ब्रीथ ऑफ़ गोल्ड’ सत्र में महान बांसुरीवादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने अपने जीवन से जुड़े मज़ेदार किस्से सुनाए| 84 वर्षीय संगीतकार का जीवन किसी भी तरह एक रोमांचक फिल्म से कम नहीं रहा| उनके जीवन पर लेखिका सत्या सरन की लिखी किताब, ब्रीथ ऑफ़ गोल्ड पर आयोजित इस किताब में पंडितजी और सत्या सरन से संवाद किया फेस्टिवल के प्रोडूसर संजॉय के. रॉय ने| पंडितजी ने बताया कि कैसे उनके पहलवान पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रूचि उसमें ज़रा भी नहीं थी| उन्होंने बीटल जॉर्ज हैरिसन से जुड़ा दिलचस्प किस्सा भी बताया कि कैसे वो उनके दरवाजे पर आकार खड़े हो गए थे और फिर उन दोनों ने साथ में खूब बजाया| जॉर्ज उन्हें लन्दन में अपने घर भी ले गए थे| उनके जीवन के सफ़र में रेडिओ में बांसुरी बजाने से लेकर के रॉयल एल्बर्ट हॉल की परफोर्मेंस सहित कई कामयाब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुकाम शामिल हैं| पंडितजी ने अन्नपूर्णा देवी के बारे में भी विस्तार से बताया| वो पंडितजी की गुरु रहीं, लेकिन अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक रूप उन्हें कभी अपना शिष्य नहीं माना| इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि अन्नपूर्णा जी मैहर से थीं, वहां गाँव के माहौल और खुद मान के संकोच के कारण वो कभी स्वीकार नहीं कर पाईं| पंडितजी को पद्म भूषण, पद्म विभूषण सहित सभी बड़े सम्मानों से सम्मानित किया गया है|
फेस्टिवल के चौथे दिन, आमेर फोर्ट जयपुर, के गणेश पोल में एक यादगार हैरिटेज इवनिंग का आयोजन किया गया। इतिहास और संस्कृति के सम्मिश्रण का गवाह बनी ये शाम कई मायनों में श्रोताओं के लिए एक न भूलने वाला अनुभव होता है।
इस साल हैरिटेज इवनिंग में परफॉर्म करने वाले कलाकार थे, नृत्यग्राम और चित्रसेना डांसर्स… उन्होंने “आहुति” नामक प्रस्तुति में ओडिसी और कांडयान नृत्य प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। नृत्य से पूर्व “शेयर्ड ड्रीम्स” के हरप्रीत और जॉर्ज ब्रुक्स ने उस हसीन शाम को अपनी शायरी और संगीत से सजाया।