‘‘आम बजट विकास के साथ-साथ नौकरियों के सृजन को संतुलित करते हुए विवेकपूर्ण व्यापक आर्थिक सुधारों के आर्थिक एजेंडे को मजबूत करता है। सरकार ने 10 ट्रिलियन रुपए के पूंजीगत परिव्यय का एलान किया है, जो वित्त वर्ष 2009 में व्यय की गई राशि से 11 गुना अधिक है। इस निर्णय से रोजगार सृजित करने और विभिन्न चक्रों को चैनलाइज़ करने के लिए बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाने के काम में तेजी आएगी और इस तरह जांचे-परखे केनेसियन सिद्धांत से अर्थव्यवस्था को बेहद फायदा होगा। पूंजीगत व्यय में 33 प्रतिशत की वृद्धि महत्व रखती है क्योंकि अमृत काल के विजन को साकार करने के लिए भारत को अपने सकल स्थिर पूंजी निर्माण को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 5 प्रतिशत अंकों से बढ़ाकर 33 प्रतिशत करने की आवश्यकता है। व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, यह उल्लेखनीय है कि सरकार वित्त वर्ष 26 तक अपने राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत से कम करने के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
बजट ऐसे समय में पेश किया गया है जब भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है और कामकाजी उम्र के लोगों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। इस जनसांख्यिकीय रुझान का लाभ उठाने के लिए हमारे कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इसलिए ग्रामीण महिलाओं द्वारा गठित 8 मिलियन स्वयं सहायता समूहों को पेशेवर रूप से प्रबंधित बड़े उत्पादक उद्यमों के गठन के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण के अगले चरण तक पहुँचाने का उद्देश्य एक सराहनीय कदम है। इससे भारत को अपनी महिला श्रम बल भागीदारी दर को वर्तमान में 22 फीसदी से बढ़ाकर पूर्व वैश्विक वित्तीय संकट के औसत 32 प्रतिशत तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान की अवधारणा और कम से कम 50 पर्यटन स्थलों के विकास से नई नौकरियों के सृजन में मदद मिलेगी और श्रम शक्ति में होने वाली बढ़ोतरी को इसमें एडजस्ट किया जा सकेगा।
म्यूनिसिपल बॉण्ड्स के लिहाज से अपनी ऋण पात्रता में सुधार करने के लिए शहरों को प्रोत्साहित करने से अधिक वित्तीय स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त होगा। वर्तमान में, ब्रिक्स देशों (भारत को छोड़कर) में 39 प्रतिशत के औसत की तुलना में सामान्य सरकारी व्यय के प्रतिशत के रूप में स्थानीय सरकार का व्यय भारत में मात्र 3 फीसदी है। नए फैसले से सेवा वितरण स्तर में सुधार होगा क्योंकि नगर पालिकाओं को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त होगी, जिससे बढ़ती शहरी आबादी को जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्रदान की जा सकेगी।
एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी योजना के कोष में 90 बिलियन रुपए के निवेश से लेनदारों के विश्वास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे हायर लोन डिस्बर्समेंट संभव होगा और धन की लागत कम हो जाएगी। यह एमएसएमई की कार्यशील पूंजी की बाधाओं को कम करेगा, जो पिछली आधी शताब्दी की मौद्रिक नीति के सख्त होने और क्रेडिट मानकों को कड़ा करने से संबंधित स्थितियों के बीच में फंस गए हैं। माइक्रो एंटरप्राइजेज के लिए कराधान का लाभ 20 मिलियन रुपए से बढ़ाकर 30 मिलियन रुपए करने के लिए ऊपरी सीमा में वृद्धि, जो भारत में सभी इकाइयों का 95 प्राितशत हिस्सा है, अनुपालन संबंधी दायित्व को कम करने और कारोबारी माहौल को आसान बनाने की दिशा में एक कदम है।’’