हैं दुनिया में समस्याएं बहुत
बढ़ जाती हैं हर साल और कुछ
जलवायु परिवर्तन हुआ।
महामारी भी जमकर आई।
असमानता है भयानक बहुत
और शायद है बढ़ती जा रही, अब भी
और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद
दुनिया को पड़ा है सहना
कमॉडिटी में अप्रत्याशित उछाल
ये खतरे लगातार रहते हैं मंडराते बहुत।
कुछ देशों ने हैं टेके इस सब झटके के सामने घुटने।
लेकिन हम हैं बेहतर राह पर!
और कमॉडिटी की कीमतों में गिरावट के साथ
होने चाहिए मुद्रास्फीति के आंकड़े ठीक।
हमें पता ही है हम बच निकलेंगे।
और अब आशा है कि हम सफल होंगे।
हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है तेजी से
और बढ़ती ही रहेगी, हैं संकेत ऐसे।
अब भारत है ’76 का
दूंढ सकते हैं हल कुछ लम्बी समस्याओं का।
हालांकि, खुश होने की वजहें हैं कई
पर आज के भारत में मुझे कभी-कभी लगता है डर
कहीं हासिल न पाए जो चाहते हम।
जिनकी आकांक्षा है, ऐसी है बहुत सी चीज़।
क्या हम कर सकते हैं समावेशी पहल?
ऐसी अर्थव्यवस्था के साथ जो सभी के लिए हो सफल।
परस्पर संवाद वाला लोकतंत्र
जिसमें हो सबकी हिस्सेदारी।
और चर्चा हो स्वतंत्र और विनम्र।
जहां सुनें हम औरों की और उपेक्षा से करें इनकार।
दरअसल, अच्छा होता है अगर नेता हों मज़बूत
लेकिन सुनिश्चित हो कि कुछ भी न हो गलत
अच्छी प्रतिक्रिया ही है कुंजी!
प्रतिक्रिया हो अच्छी और मुफ़्त।
समय कठिन है, लेकिन हम हैं खड़े डटकर।
हमें रहें सावधान, ऐसा न हो कि हम जाएं गिर।
हम हैं यदि सजग और बुद्धिमान
निश्चित है भारत का उत्थान।
-नादिर गोदरेज