मुंबई, भारत – 16 मार्च, 2024 – डीबीएस बैंक इंडिया ने क्रिसिल के सहयोग से ‘महिला और वित्त’ शीर्षक से अपने व्यापक अध्ययन की तीन रिपोर्टों में से दूसरी रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट भारत के 10 शहरों में 800 से अधिक वेतनभोगी और स्व-रोज़गार से जुड़ी महिलाओं के सर्वेक्षण पर आधारित है और उनकी पेशेवर आकांक्षाओं और व्यक्तिगत जीवनशैली की प्राथमिकताओं के बीच अंतर्संबंध दिखाने के लिए तैयार की गई है।
जनवरी 2024 में जारी रिपोर्ट के पहले हिस्से के बाद आई यह दूसरी रिपोर्ट, कार्यबल में महिलाओं की अनूठी परिस्थितियों में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जिसमें उनकी पेशेवर आकांक्षाएं, आदतें और उनके सामने आने वाली बाधाएं शामिल हैं। इसमें इस बात की पड़ताल की गई है कि उम्र, आय, वैवाहिक स्थिति और स्थान जैसे कारक उनकी प्राथमिकताओं को कैसे प्रभावित करते हैं।
उल्लेखनीय रूप से 69% वेतनभोगी महिलाओं ने नौकरी का चयन करते समय वेतन और करियर में प्रगति को सर्वोच्च कारकों के रूप में स्थान दिया, वहीं 42% स्व-रोज़गार से जुड़ी महिलाओं ने स्वतंत्रता और लचीली कामकाजी अवधि को प्राथमिकता दी। दिलचस्प बात यह है कि वेतनभोगी महिलाओं के बीच दूर से काम करना (रिमोट वर्किंग) उच्च प्राथमिकता नहीं है, केवल 3% ही इसे आवश्यक मानती हैं।
वेतनभोगी महिलाओं की चुनौतियां और कार्यस्थल से जुड़ी बारीकियां
निष्कर्ष कार्यस्थल में लगातार लैंगिक असमानताओं पर उद्योग के विचारों की पुष्टि करते हैं, जिससे पता चलता है कि वेतनभोगी महिलाओं के बीच अखिल भारतीय स्तर पर लैंगिक आधार पर कथित वेतन में फर्क 23% रहा, जबकि 16% को लैंगिक पूर्वाग्रह का अहसास हुआ। अर्ध-संपन्न महिलाएं, जिनका वेतन 10 से 25 लाख रुपये सालान के बीच है, और संपन्न महिलाएं, जिनकी आय 41 से 55 लाख रुपये प्रति वर्ष है, उनका दृष्टिकोण लैंगिक आधार पर वेतन के अंतर के बारे में अलग-अलग है। संपन्न महिलाओं के वर्ग में 30% ने लैंगिक आधार पर वेतन में फर्क की बात कही, जबकि अर्ध-संपन्न महिलाओं में यह आंकड़ा 18% रहा। इसी तरह की प्रवृत्ति कार्यस्थल पर लैंगिक पूर्वाग्रह की धारणा के संबंध में भी दिखी, जिसमें 30% संपन्न महिलाओं ने दावा किया कि उन्हें इसका अहसास हुआ, जो अर्ध-संपन्न समूह की 12% महिलाओं की तुलना में काफी अधिक है, जिन्हें वैसे ही पूर्वाग्रह का अहसास हुआ।
महानगरों में 42% वेतनभोगी महिलाएँ वेतन के बारे में संवाद (नेगोशिएट) करते समय चुनौतियों का सामना करती हैं। भारत के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों के अनुभव अलग-अलग हैं। कोलकाता में, 96% वेतनभोगी महिलाओं को अपने वेतन के बारे में संवाद करते समय किसी भी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है, जबकि अहमदाबाद में यह आकड़ा केवल 33% है। दक्षिण भारत में भी विरोधाभासी दृष्टिकोण देखने को मिलते है। चेन्नई में, 77% महिलाओं को वेतन के बारे में संवाद करते समय चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता है, जबकि हैदराबाद में यह आंकड़ा 41% है।
डीबीएस बैंक इंडिया के प्रबंध निदेशक, और कंट्री हेड – मानव संसाधन, किशोर पोडुरी ने कहा, “कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और वित्तीय निर्णय लेने में स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि विभिन्न संगठनों को महिलाओं की आकांक्षाओं को बेहतर तरीके से समझने और उनकी प्राथमिकताओं के अनुरूप रणनीतियां तैयार करने में मदद कर सकते हैं। इससे महिलाओं के लिए करियर अधिक संतुष्टिदायक बन सकता है, कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ सकती है और उनके संभावित योगदान को अधिकतम किया जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “डीबीएस एक अलग तरह का बैंक है, और ‘महिला और वित्त’ अध्ययन इस भावना का विस्तार है। हमारे वैश्विक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 50% है और भारत में हमारे कर्मचारियों की कुल तादाद में इनकी भागीदारी~30% है। इस अध्ययन के कुछ निष्कर्षों का लाभ उठाकर, हम उनकी विविध ज़रूरतों को बेहतर तरीके से पूरा कर सकते हैं और उन्हें व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करने के लिए सहायता प्रदान कर सकते हैं।“
वेतनभोगी महिलाओं की पसंदीदा नीतियां और पहलें
वेतनभोगी अविवाहित महिलाएं अपने विवाहित समकक्षों की तुलना में मार्गदर्शन (मेंटरशिप) और कैरियर विकास के अवसरों के प्रति अधिक कद्र करती हैं| विशेष रूप से, 26% अविवाहित महिलाएं इस प्रकार के कार्यक्रमों के लिए समर्थन व्यक्त करती हैं, जबकि विवाहित महिलाओं में यह आकडा केवल 16% है।
क्षेत्रीय विविधता इस समझ का दायरा और बढ़ाती है। उदाहरण के लिए, कोलकाता में, 46% वेतनभोगी महिलाएं मेंटरशिप और करियर विकास कार्यक्रमों को सबसे मूल्यवान मानती हैं, जो की राष्ट्रीय औसत 19% से अधिक है। इसी तरह, दिल्ली में 33% वेतनभोगी महिलाएं विभिन्न संगठनों द्वारा दी जाने वाली चाइल्डकेयर जैसी सुविधाओं को महत्व देती हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 11% है। चेन्नई की महिलाओं में, 32% विस्तारित मातृत्व लाभ को सबसे अधिक महत्व देती हैं, जो राष्ट्रीय औसत 19% से अधिक है। यह डीबीएस बैंक इंडिया के कर्मचारियों में परिलक्षित व्यवहार के अनुरूप है। हाल ही के एक आंतरिक सर्वेक्षण में, महिला कर्मचारियों ने मेंटरशिप और कैरियर उन्नति के अवसरों (19%) और गर्भवती महिलाओं के समर्थन (16%) को शीर्ष पहलुओं के रूप में सबसे मूल्यवान पाया।
ये निष्कर्ष विभिन्न संगठनों को परिवार-अनुकूल नीतियों को लागू करने की ज़रूरत पर भी रोशनी डालते हैं और इससे उन वेतनभोगी महिलाओं के लिए काम तथा जीवन के बीच संतुलन बढ़ाता है जिनके ऊपर परिवार के देखभाल की ज़िम्मेदारी होती है। पुणे में, 35% महिलाएं सबैटिकल की नीतियों को सबसे मूल्यवान मानती हैं, जो राष्ट्रीय औसत 5% से काफी अधिक है।
जीवनशैली संबंधी प्राथमिकताएं
यह रिपोर्ट कार्यस्थल की बारीकियों के अलावा, महिलाओं की बहुमुखी जीवनशैली प्राथमिकताओं पर रोशनी डालती है और स्वास्थ्य तथा कल्याण, भोजन तथा पर्यटन पर उनके खर्च की प्राथमिकताओं और आदतों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। अध्ययन से पता चलता है कि भारत के महानगरों में कमाने वाली महिलाएं अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती हैं, जिनमें से 66% ने पिछले वर्ष व्यापक स्वास्थ्य जांच कराई है। इसी तरह की प्रवृत्ति डीबीएस बैंक इंडिया में महिलाओं के बीच देखी गई, जहां एक आंतरिक सर्वेक्षण में 57% उत्तरदाताओं ने बताया कि इसी अवधि के दौरान उन्होंने व्यापक स्वास्थ्य जांच कराई थी।
केवल 32% महिलाएं सप्ताह में एक बार से अधिक बाहर भोजन करती हैं या खाना ऑर्डर करती हैं, जबकि केवल 24% महिलाएं नॉन-ऑफिस स्क्रीन टाइम पर प्रतिदिन चार घंटे से अधिक समय बिताती हैं। यह विभिन्न संगठनों के लिए इस जनांकिकी के लिए समग्र कल्याण को बढ़ावा देने वाली पहलों को प्राथमिकता देते हुए, अपनी पेशकशों को बढ़ाने का अवसर रेखांकित करता है।
रिपोर्ट के मुताबिक 32% विवाहित महिलाएं, पिछले साल 3-5 बार पर्यटन के लिए बाहर गईं, जो उनके अविवाहित समकक्षों की तुलना में दोगुना है और यह इस मिथक को चुनौती देता है कि विवाहित महिलाएं, अविवाहित महिलाओं की तुलना में कम छुट्टियों पर जाती हैं। सर्वेक्षण में शामिल लगभग आधी महिलाएं (47%) उदारता खर्च करने वाली थीं, जो अपनी आय का 70% से अधिक खर्च करती हैं। सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि इस क्षेत्र की 39% महिलाएं यात्रा और खरीदारी जैसे विवेकाधीन श्रेणियों में क्रेडिट कार्ड से बहुत अधिक खर्च करती हैं, जबकि पूरे भारत में यह औसत 33% है।
डीबीएस 1994 से भारत का अभिन्न अंग रहा है, और यह करीब 350 स्थानों पर 530 शाखाओं के साथ शाखा की मौजूदगी के लिहाज़ से देश का सबसे बड़ा विदेशी बैंक है। यह अपने समाधानों के ज़रिये बैंकिंग में सरलता और निर्बाधता लाता है और छोटे, मध्यम तथा बड़े व्यवसायों के साथ-साथ खुदरा ग्राहकों के लिए एक विश्वसनीय भागीदार है। “लिव मोर, बैंक लेस” के अपने ब्रांड वादे को मज़बूत करते हुए, डीबीएस बैंक का उद्देश्य है, इंडिया महिला और वित्त अध्ययन से मिली समझ के आधार पर महिलाओं के लिए समग्र वित्तीय प्रबंधन में मदद करना।