बेंगलुरु, 29 अप्रैल: कर्नाटक हाईकोर्ट ने इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन और अन्य के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने शिकायत को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार दिया और शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
16 अप्रैल को आदेश पारित करने वाले जज हेमंत चंदनगौदर ने कहा कि यह शिकायत “याचिकाकर्ताओं को परेशान करने का एक कष्टप्रद प्रयास” है। यह एफआईआर भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के पूर्व संकाय सदस्य डी. सन्ना दुर्गाप्पा द्वारा दर्ज की गई निजी शिकायत पर आधारित थी, जिन्हें यौन उत्पीड़न के आरोपों की आंतरिक जांच के बाद 2014 में बर्खास्त कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि 2015 में हाईकोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद बर्खास्तगी को इस्तीफे में बदल दिया गया था। उस समय समझौते के तहत दुर्गाप्पा ने संस्था और उसके प्रतिनिधियों के खिलाफ सभी शिकायतें और कानूनी कार्यवाही वापस लेने पर सहमति व्यक्त की थी।
इसके बावजूद, उन्होंने दो और एफआईआर दर्ज कीं, जिनमें से दोनों को 2022 और 2023 में रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान एफआईआर में भी इसी तरह के आरोप हैं और यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए क्रिस गोपालकृष्णन ने कहा, “मुझे हमारी कोर्ट और न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा है। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग के लिए निष्पक्ष और न्यायपूर्ण प्रणाली में कोई जगह नहीं है। मैं आभारी हूं कि माननीय हाईकोर्ट ने झूठ को पहचाना और सच्चाई को बरकरार रखा।”
कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपों में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कोई अपराध शामिल नहीं है, तथा यह इंगित किया कि मामला मूलतः दीवानी प्रकृति का था, लेकिन इसे गलत तरीके से आपराधिक रंग दे दिया गया।
हाईकोर्ट ने क्रिस गोपालकृष्णन और अन्य याचिकाकर्ताओं को दुर्गाप्पा के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति के लिए महाधिवक्ता से संपर्क करने की भी अनुमति दी है।