डॉ. मुकुल ने आगे कहा “जब ‘विकलांग’ शब्द सुनते हैं तो लोग किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचते हैं, जो चल नहीं सकता या बात नहीं कर सकता या फिर ऐसा जो कार्य करने में असमर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति को लोग अधिक महत्व नहीं देते। लेकिन मेरा मानना है कि समाज में किसी व्यक्ति को उसकी सीमाओं में देखने से अधिक बड़ी और कोई विकलांगता नहीं है। मैं अपने पैशेंट्स और यहां मधु को एक हीरो के रूप में देखती हूं, जिनमें अदम्य साहस है और जिनमें भारी बाधाओं के बावजूद दृढ़ता एवं सहन शक्ति हैं।”
घुटने से ऊपर तक बायां कृत्रिम पैर लगाने के साथ ही मधु की रिहैबिलिटेशन प्रक्रिया शुरू की गई। मधु की लंबाई मापने, उसे खड़ा करने के लिए सर्वप्रथम यह प्रक्रिया अपनाई गई, ताकि उसे दूसरा पैर लगाया जा सके। फिर उसके दोनों कृत्रिम हाथ लगाए गए। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने पर मधु 1.5 वर्ष में पहली बार खड़ा हो पाया। आरंभ में हुई थोड़ी असुविधा होने के बाद, मधु ने धीरे-धीरे आत्मविश्वास और संतुलन हासिल किया और अपने नए अंगों का उपयोग करने में सफल हो गया।
जयपुर फुट रिहैबिलिटेशन सेंटर के बारे में-
जयपुर फुट रिहैबिलिटेशन सेंटर जनवरी 2009 में आर्थोपेडिक, न्यूरोलॉजिकल, पीडिएट्रिक्स और जीरिएट्रिक्स रिहैबिलिटेशन प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। सेंटर में फिजिकल चैलेंजेज से लड़ रहे लोगों के जीवन की कमियों को दूर करने के लिए तकनीकी रूप से उन्नत एवं अभिनव ब्रेसिज़ और कृत्रिम अंगों को डिजाइन, कस्टम फिट तथा मैन्युफैक्चर किया जाता है। केंद्र में प्रत्येक माह लगभग 5-6 रोगियों का रिहैबिलिटेशन होता है।