Editor-Manish Mathur
जयपुर 05 मार्च 2021 – विश्व भर में अपनी छाप छोड़ने वाली कला और कारीगिरी को समुचित पहचान और बाजार मिले इसके लिए इन कलाओं से जुड़े कारीगरों को ग्लोबल इंडीकेटर्स अर्थात भौगोलिक उपदर्शन के प्रति सजग किया जा रहा है। इसी क्रम में राजस्थान के उद्योग विभाग और केंद्र सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ़ पटनेट्स, डिज़ाइन एंड ट्रेडमार्क्स द्वारा शुक्रवार को राजस्थान के उदयपुर जिले में एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद और उदयपुर के सैंकड़ों हस्त शिल्पियों और कारीगर सम्मलित हुए। यहाँ आये हस्त शिल्पियों और अन्य कारीगरों ने इस प्रक्रिया में उत्साह जताते हुए अपनी पारम्परिक कलाओं जैसे हथियारों पर होने वाली कोफ्तगारी, दाबू छपाई, पिछवाई चित्रकला और अन्य कलाओं का उपदर्शन करवाने के लिए रूचि व्यक्त कर कार्यक्रम में आये विशेषज्ञों से जानकारी मांगी।
ग्लोबल इंडीकेटर्स की प्रक्रिया किसी भी क्षेत्र के पारम्परिक उत्पाद, चाहें वो पारम्परिक कला हो या प्राकृतिक उत्पाद उन्हें खास पहचान दिलाता है। इसके पश्चात सिर्फ उक्त क्षेत्र और प्रक्रिया से उत्पन्न उत्पाद ही उस उपदर्शन का उपयोग कर सकते हैं। इस उपदर्शन से खरीदार यह सुनिश्चित कर सकता है के उसके द्वारा सही उत्पाद ख़रीदा जा रहा है और इसका लाभ उस कला और व्यवसाय से जुड़े कारीगरों को भी मिलता है। इसके आभाव में कई नकली या घटिया गुणवत्ता वाले उत्पाद बाजार हथिया कर खरीदार और कारीगरों से धोखा कर सकते हैं। राजस्थान से अब तक 15 उत्पाद जिनमे बीकानेर की भुजिया, कोटा का कोटा डोरिया, जयपुर की ब्लू पॉटरी और मकराना का मार्बल सम्मलित हैं।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल, पेटेंट, डिज़ाइन एंड ट्रेडमार्क्स श्री राजेंद्र रतनु ने कहा के राजस्थान का हर जिला इन पारम्परिक कलाओं और विरासत से भरपूर है और इन्हे समुचित पहचान मिले इसके लिए राजस्थान और केंद्र सरकार इन व्यवसायों से जुड़े लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास कर रही हैं। कार्यक्रम में देश भर से आये विशेषज्ञों ने यहाँ मौजूद कारीगरों को ग्लोबल इंडीकेटर्स के चिन्हीकरण, आवेदन और अन्य प्रक्रियाओं पर जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया के अगर कोई जी आई प्राप्त संसथान किसी योग्य कारीगर का पंजीकरण करने से मना करे तो वह कैसे अपने अधिकार प्राप्त कर सकता है।