जयपुर 9 मार्च 2019 मोबाइल युग की जब से शुरवात हुई है। तब में और आज में बहुत फरक है। हम मोबाइल को पहले ये सोच कर काम में ले रहे थे। जिन लोगो से हम साल में एक या दोबार मिलते है। उन से रोज बात कर सकते है। लेकिन फिर स्मार्ट फ़ोन का जमाना आ गया। और हम जिस फ़ोन को केवल एक दूसरे से बात करने का माध्यम मानते थे।वो बदल गया।जहा मोबाइल को दिन में एक दो बार ही हाथ में लिया जाता था।अब उस मोबाइल के बिना एक मिनट भी नहीं रहा जाता है।
डॉ शर्मीला अटोलिया बताती है की आज जिस समाज को हम देख रहे है वो धीरे – धीरे पूरी तरह से रिश्ते – नातो से कही दूर हो गया है। जब हम छोटे थे तब पापा-मम्मी, दादा-दादी, नाना-नानी यहाँ तक की आस पड़ोस के सभी लोग हम से बहुत प्यार से बात करते थे। यहाँ तक हमारे साथ खेलते भी थे।हमें बहुत अछि परवरिश मिली।लेकिन अब हम अपने बच्चो को वैसी परवरिश नहीं दे पा रहे है । इस की एक वजह मोबाइल भी है।
नन्हे – नन्हे पैर लड़खड़ाते हुए कब खुद समल जाते है, पता ही नहीं चलता। हर माँ-बाप के लिए यह एक सुखद अहसास होता है। अपने बच्चों को यूँ आत्मनिर्भर होते देखना, लेकिन समय के साथ-साथ उनकी मानसिक जरूरतें भी तेजी से बढ़ने लगती हैं वो किसी तनाव में न रहे इस लिए उन की समय समय पर उन के साथ दोस्तों के जैसा बर्ताव करना चहिये । उनके मन में कई तरह के सवाल पैदा होते, जिनको जानना उनके लिए जरूरी होता है। ऐसे में माँ-बाप मोबाइल को छोड़ कर अपने बच्चों के सच्चे दोस्त और मार्गदर्शक बनकर उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान करा सकते हैं।
अक्सर हम देखते है की हमारे आस पास सभी लोग मोबाइल में इतने व्यस्त है।उनको इतना भी पता नहीं है।उनके आस पास क्या हो रहा है। इसी प्रकार हमने देखा की आजकल सामूहिक परिवार में कोई नहीं रहता है।और अक्सर ऐसा देखा गया है की जो लोग सामूहिक परिवार में नहीं रहते है तो उन लोगो को बच्चो की परवरिश में बहुत कठनाई उठानी पड़ती है। अभी एक सर्वे में पाया गया की माता पिता मोबाइल पर सब से ज्यादा समय बिताते है।और बच्चो के साथ बहुत कम इस से बच्चे के जीवन में बहुत बुरा असर पड़ता है। इस लिए हम सब को मोबाइल को लिमिटेड काम में लेना चाइये।