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एसोसिएशन ऑफ फिज़िशियन्स ऑफ इंडिया ने भारत के लिए अभी तक का पहला वयस्क प्रतिरक्षण अनुशंसाएँ पेश किए

Editor-Manish Mathur

जयपुर, 23 अप्रैल, 2021: एसोसिएशन ऑफ फिज़िशियन्स ऑफ इंडिया (एपीआई) ने एबॅट के साथ भागीदारी में भारत के लिए अभी तक का पहला  एडल्‍ट इम्‍यूनाइजेशन अनुशंसाएं जारी की हैं। स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा तैयार किए गए अनुशंसाओं का एक विस्तृत समूह उन फिज़िशियन के समर्थन में सशक्त, साक्ष्य-आधारित जानकारी उपलब्ध कराता है, जो टाइफॉइड, इन्फ्लुएंज़ा और विभिन्न प्रकार की अन्य बीमारियों के खिलाफ वयस्कों में टीकाकरण किए जाने की सिफारिश करते हैं। ये अनुशंसाएँ फिज़िशियनों को टीके संबंधी डाटा के साथ लैस करने की एक बहुत बड़ी जरूरत को पूरा करती हैं जिनमें शामिल है खुराक, संकेतक, डिलीवर किए जाने की बारंबारता और इसे लगाना, जिससे फिजिशियन्स संपूर्ण भारत में वयस्कों में टीकाकरण के ज्यादा कवरेज को आगे बढ़ा सकते हैं।

भारत में इन्फ्लुएंज़ा, हेपेटाइटिस ए और बी, टाइफॉइड बुखार और अन्य जैसे टीके से रोके जा सकने वाली बीमारियाँ (वीपीडी) में उनके प्रचलन की पद्धति, प्रभावित आयु समूह और संक्रामक रोगों की संभावना की दृष्टि से बड़ा बदलाव आया है। उदाहरण के लिए इन्फ्लुएंज़ा एक बेहद  प्रचलित श्वसनसंबंधी रोग है और राजस्‍थान में मौसमी इन्फ्लुएंज़ा के मामले उल्लेखनीय रूप से बढ़े हैं, साल 2012 में यह संख्या 343 थी जो साल 2019 में बढ़कर 5,092 तक पहुँच गई। उसी तरह साल 2016 में भारत में 6.6 मिलियन टाइफॉइड के मामले दर्ज किए गए ( 499 मामले प्रति 100,000 की जनसंख्या में), जिसमें से 15 वर्ष से अधिक की उम्र वाले व्यक्तियों में मृत्यु दर 44% रही है। राजस्‍थान में साल 2018 में 87,751 मामले थे, जो भारत के कुल बोझ का 3.80% था।

तेजी से बढ़ते वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा की बढ़ी हुई फ्रिक्वेंसी जैसे कारक वयस्कों के वीपीडी से ग्रस्त होने की लगातार बढ़ रही संभावना में योगदान देने का काम करते हैं। यह बीमारियाँ मौजूदा सहरुग्णता की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं और ये उच्च रुग्णता और मृत्यु दर से जुड़े हुए हैं।

जबकि लंबी अवधि तक इम्‍युनिटी बनाए रखने के लिए टीकाकरण सबसे प्रभावी रोकथाम रणनीति बनी हुई है, लेकिन फिर भी वयस्कों में इम्‍यूनाइजेशन को नज़रअंदाज़ किया गया है। अपर्याप्त जागरुकता, स्थापित संस्थाओं द्वारा अधिकृत सिफारिशों की कमी और टीका लगवाने में हिचकिचाहट के कारण संपूर्ण भारतीय वयस्क जनसंख्या में वैक्सीन कवरेज में कमी आई है।

एपीआई द्वारा प्रस्तुत किए गए वयस्क टीकाकरण संबंधी अनुशंसाओं से हेल्थकेयर प्रैक्टीशनर्स को वयस्क टीकों के संबंध में प्रभावी रुप से जानकारी आधारित निर्णय लेने और सिफारिश करने के लिए सक्षम बनायेगी।[1]  वे वयस्कों के लिए एक महत्वपूर्ण निवारक युक्ति और स्वास्थ्य प्रबंधन के साधन के रूप में वैक्सीन की व्याख्या करते हैं। इनमें इन्फ्लुएंज़ा, टाइफॉइड, जापानी एन्सीफिलाइटिस और हेपेटाइटिस ए और बी जैसी अन्य बीमारियों सहित वीपीडी के कारणों, लक्षणों और इससे जुड़ी समस्याओं पर जानकारी शामिल है, और वयस्कों के लिए उपलब्ध टीकों के बारे में क्लिनिकल डाटा उपलब्ध कराया गया है। इस डाटा में संकेत, खुराक, बारंबारता, कार्यक्रम और कैच-अप वैक्सीनेशन के लिए समयावधि शामिल है। इन अनुशंसाओं में जोखिम वाले लोगों को टीका दिए जाने की बढी हुई आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है जिनमें शामिल हैं सहरुग्णता से पीड़ित लोग, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता, अधिक यात्रा करने वाले लोग, वृद्धावस्था से जुड़े रोगों से पीड़ित और गर्भवती महिलाएँ।

 इन अनुशंसाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए पद्म भूषण प्रोफेसर निर्मल कुमार गांगुली, पूर्व महानिदेशक, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा कि, “भारत में वयस्क टीकाकरण कवरेज में बढ़ोतरी करने की क्षमता है। इन साक्ष्य आधारित दिशा निर्देशों को विकसित करने के लिए हमने ऐसे स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों का एक पैनल तैयार किया जो हृदय रोग विज्ञान, पल्मोनोलॉजी, गाईनेकोलॉजी से लेकर किडनी रोग विज्ञान (नेफ्रोलॉजी) विशेषज्ञ सेवाओं में कार्यरत हैं। इसका परिणाम है एक विस्तृत जानकारी जो भारत में एडल्‍ट इम्‍यूनाइजेशन से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों और विश्वसनीय जानकारी को रेखांकित करती है। इन अनुशंसाओं के माध्यम से हम एक बड़े बदलाव को लाने की उम्मीद करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके एडल्‍ट इम्‍यूनाइजेशन की ज़्यादा से ज़्यादा सिफारिश हो और इसे अपनाया जाए।

 स्वास्थ्य नतीजों में सुधार लाने के लिए यह गाइडलाइंस जो भूमिका निभा सकती हैं, उस पर प्रकाश डालते हुए डॉ. श्रीरूपा दास, मेडिकल डायरेक्टर, एबॅट इंडिया ने कहा कि, “जबकि टीकों से संक्रामक रोगों की रोकथाम होती है, जीवन की गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है और इसमें सुधार आता है, लेकिन फिर भी एडल्‍ट इम्‍यूनाइजेशन पर बहुत कम ज़ोर दिया जाता है। यह अनुशंसाएँ जागरुकता बढ़ाने में मदद करते हैं और टीकों की सिफारिश करने और उन्हें देने में मार्गदर्शन करने के लिए हेल्थकेयर प्रैक्टीशनर्स को साक्ष्य आधारित जानकारी उपलब्ध कराते हैं। एबॅट में हमारा लक्ष्य लोगों में जागरुकता बढ़ाना जारी रखना है जिससे उन्हें उन रोगों से सुरक्षित किया जा सके जिसे टीकों की मदद से रोका जा सकता है ताकि वे लंबी और सेहतमंद जिंदगी जी सकें।“

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