नीरज अखौरी-सीईओ इंडिया होलसिम ग्रुप और एमडी और सीईओ, अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड
भारत में निर्माण क्षेत्र को हरित बनाने के लिए सीमेंट, स्टील और बिजली जैसे कई क्षेत्र आगे बढ़कर भूमिकाएं निभा रहे हैं।
बात जब इकोलॉजी और सस्टनेबिलिटी की होती है तो निर्माण क्षेत्र पर बहुत कम ध्यान जाता है। अक्सर हमारे दिमाग में सबसे पहले ऑटोमोटिव, यूटिलिटी, स्टील या माइनिंग जैसे सेक्टर आते हैं। हालांकि, सीमेंट और स्टील जैसे कई अन्य बड़े क्षेत्रों से सामग्री लेने वाला निर्माण जैसा ’कम्पोजिट’ उद्योग वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 40 फीसदी का जिम्मेदार है।
हम घर, कार्यालय और कारखाने सहित बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं वाले निर्माण क्षेत्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसमें सड़क, हवाई अड्डे, बांध, पुल और टियर 1 और टियर 2 शहरों में मेट्रो रेल का एक देशव्यापी नेटवर्क शामिल है। सबसे नवीनतम केंद्रीय बजट ने बुनियादी ढांचे के पूंजीगत व्यय के लिए आवंटन को बढ़ाकर 5.54 लाख करोड़ रुपए या 2020-21 में आवंटित किए गए धन से लगभग 34 प्रतिशत से अधिक किया गया है जो कि ज्यादातर सड़क और रेल परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा। इस साल सार्वजनिक आवास परियोजनाओं पर 55,000 करोड़ रुपए और खर्च किए जाने हैं।
विकास के दृष्टिकोण से, यह सब निश्चित रूप से निर्माण क्षेत्र के लिए बहुत अच्छी खबर है लेकिन इसका मतलब यह भी है कि पर्यावरण पर दबाव उसी अनुपात में बढ़ने वाला है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के 2010 के अनुमान के अनुसार शहरी भारत में जनसंख्या लगभग 250 मिलियन तक बढ़ जाएगी जिसके लिए 700-900 मिलियन वर्ग मीटर नए आवासीय और वाणिज्यिक जगह की आवश्यकता होगी।
अच्छी खबर यह है कि इस्पात, बिजली और सीमेंट सहित निर्माण क्षेत्र बनाने वाले प्रमुख क्षेत्र और बड़े निर्माण सामग्री क्षेत्र आदि ने उत्पादों और निर्माण प्रक्रिया दोनों के मामले में हरित विकल्पों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है।
अधिक टिकाऊ निर्माण क्षेत्र बनाने की गुंजाइश काफी अधिक है और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री का उपयोग इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन क्षेत्रों में स्थिरता की पहल का केंद्र बिंदु काफी हद तक एक अपेक्षाकृत नए विचार से प्रेरित है जिसे सर्कुलर इकोनॉमी कहा जाता है जो 3आर पर आधारित है, यानी रीड्यूज, रीयूज और रीसाइकल।
निर्माण क्षेत्र के भीतर सर्कुलर इकोनॉमी का विचार भी पुनर्नवीनीकरण निर्माण सामग्री के बढ़ते उपयोग के माध्यम से बड़े पैमाने पर पकड़ बना रहा है। यानी अधिक टिकाऊ प्रक्रिया जो हमें पानी, ऊर्जा इत्यादि सहित कम सामग्री के साथ अधिक निर्माण करने की अनुमति देती है। निर्माण सामग्री में विज्ञान आधारित दृष्टिकोण भी भारत में अधिक टिकाऊ निर्माण सामग्री बनाने पर जोर दे रहा है जो निर्माताओं को परिणाम-संचालित साझेदारी के साथ काम करने के लिए प्रेरित कर रही है। स्टील और सीमेंट सेक्टर यहां सबसे आगे चल रहे हैं।
विकास की इस कहानी का उपभोक्ता पक्ष भी उतना ही आकर्षक है। आज के उपभोक्ता, आवासीय और व्यावसायिक दोनों जगहों पर यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं कि कार्बन फुटपिं्रट में उनका योगदान भी न्यूनतम हो। नेट मीटरिंग सिस्टम द्वारा समर्थित रूफटॉप सोलर जैसे नए समाधान घरेलू, कारखानों और वाणिज्यिक भवनों सहित विभिन्न उपयोगकर्ता समूहों में तेजी से पकड़ बना रहे हैं। हाल के वर्षों में हरित भवनों की मांग भी बहुत तेज हो रही है। नई सहस्राब्दी के मोड़ पर बिंदु बराबर शुरुआत से बढ़कर यह 7.5 बिलियन वर्ग फुट से अधिक हो गया है। यह आज भारत को दुनिया भर में हरित भवनों के लिए सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बना रहा है। इंडियन ग्रीन बिलिं्डग काउंसिल को अगले साल भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर 10 अरब वर्ग फुट का लक्ष्य पाने की उम्मीद है।
पूर्वानुमान बहुत उत्साहजनक लग रहा है। समय बीतते-बीततरे हरित निर्माण पूरी तरह से मुख्यधारा में आ जाएगा और बड़े पैमाने पर बाजारों के लिए सस्ता भी हो जाएगी। भारत में अवसरों के पैमाने को देखते हुए हमें वैश्विक तौर पर हरित निर्माण में नंबर-1 की भूमिका में आना पड़ेगा।