1932 में हरियाणा के नालवा गांव में जन्मे डॉ. जिंदल का प्राकृतिक चिकित्सा का कार्य विश्वविद्यालय के दिनों से ही शुरू हो गया था, जब उन्हें पेट की टीबी से जूझना पड़ा था। ऐसा लग रहा था उनकी समस्या का कोई इलाज नहीं है, फिर उन्होंने एक छोटे-से प्राकृतिक चिकित्सा क्लीनिक में शरण ली। उपवास रखने, एनीमा और दूसरे अपारंपरिक तरीकों से उन्हें आराम महसूस होने लगा। इस बदलावकारी अनुभव की वजह से प्राकृतिक चिकित्सा और योग पर उनका गहरा विश्वास हो गया।
एक व्यापक नैचुरोपैथी और योग अस्पताल खोलने की सोच से प्रेरित होकर डॉ. जिंदल ने साल 1977-79 में बेंगलुरू के बाहरी इलाके में एक बड़ी जमीन खरीदी। यहां से जेएनआई की नींव पड़ी, जोकि अनुसंधान विंग से परिपूर्ण था। इसे जिंदल एल्युमिनियम लिमिटेड (जेएएल) से काफी ज्यादा आर्थिक सहायता मिलती थी। इससे डॉ.जिंदल की प्राकृतिक चिकित्सा को एक नई ऊंचाइयों तक ले जाने की प्रतिबद्धता झलकती है।
उस समय प्रचलित पारंपरिक प्राकृतिक चिकित्सा से उलट, डॉ. जिंदल ने इस विज्ञान को आधुनिक तथा नया बनाने के मिशन की शुरूआत की। पुरानी रूढ़ियों में बंधे प्राकृतिक चिकित्सा के तौर-तरीकों में उत्साह तथा विकास की कमी को पहचानते हुए, वे दवारहित थैरेपीज को ऊपर उठाने और आगे बढ़ाने में जुट गए। 1969 में स्थापित एसजे फाउंडेशन उनके परोपकारी अभियानों के लिए एक आर्थिक स्तंभ बन गया। बिना किसी सरकारी या व्यक्तिगत सहयोग के यह पूरी तरह से जेएएल के योगदान पर निर्भर हो गया।
जेएनआई के साथ-साथ डॉ. जिंदल ने कई सारे परोपकारी कार्यों को पूरा किया है, जोकि सामाजिक उत्थान के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। इसके अंतर्गत एलोपैथी अस्पतालों, स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण, गांवों के विकास से जुड़ी पहल, स्वास्थ्यसेवा एवं शिक्षा के लिए गांवों को गोद लेना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम कर रहे विभिन्न एनजीओ को सहायता पहुंचाना शामिल है।
डॉ. जिंदल के लोकोपकारी प्रयास, प्राकृतिक चिकित्सा से भी कहीं आगे है, जिसमें अपने पैतृक गांव नालवा में आठ चैरिटेबल इकाईयों का निर्माण शामिल है। इससे आस-पास के इलाकों के काफी सारे लोगों को लाभ मिल रहा है। गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के माध्यम से सहयोग देना और स्वास्थ्यसेवा तथा शिक्षा के क्षेत्र में सेवारत एनजीओ को आर्थिक मदद पहुंचाना, सामाजिक कार्यों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
डॉ. जिंदल के कार्यों का प्रभाव जेएनआई की चारदीवारी से बाहर भी है। नैचुरोपैथी तथा योग पर जोर देने वाले, स्वास्थ्य को लेकर उनके व्यापक तरीके ने दुनियाभर में लाखों लोगों की जिंदगियों को बदल दिया। सुरक्षात्मक देखभाल और दवाओं के साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी देने की उनकी प्रतिबद्धता, प्राकृतिक चिकित्सका पर उनकी आस्था के अनुरूप है। जिसमें उनका मानना है कि प्राकृतिक चिकित्सा एलोपैथिक अस्पतालों से बोझ को काफी कम कर सकती है।
अपने इस पूरे सफर में, डॉ. जिंदल, स्वास्थ्य समस्याओं के लिए काफी सारे नवाचार और थैरेपीज लेकर आए। पेट के सामान्य पैक से लेकर हर्बल टी, स्पाइनल बाथ टब और ठंडा तथा गर्म रिफ्लेक्सोलॉजी ट्रैक, जैसे उनके योगदान ने प्राकृतिक उपचार के खजाने को और भरने का काम किया।
अपने दूरदर्शी नेतृत्व व अनेक योगदान के लिए, डॉ. जिंदल को अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, आई.के. गुजराल, एच.डी देवे गौड़ा जैसे प्रधानमंत्रियों सहित, उपप्रधानमंत्री देवी लाल और कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े जैसी जानी-मानी हस्तियों की ओर से तारीफें मिली हैं।
समाज की भलाई के लिए डॉ. जिंदल के अथक प्रयास, स्वास्थ्यसेवा से परे है। वे कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के पुरजोर समर्थक रहे हैं। वे उद्योगपतियों से गुजारिश करते आए हैं कि गरीबी मिटाने के लिए अपने फायदे का एक हिस्सा खर्च करें। सीएसआर के अनिवार्य प्रतिशत को बढ़ाने के लिए सरकार से उनका मौजूदा संघर्ष, सामाजिक कल्याण के प्रति उनके अटूट संकल्प को दर्शाता है।
डॉ. सीताराम जिंदल की जिंदगी और उनके कार्य, व्यापारिक सफलता तथा मानवता के प्रति कृपालु सेवा का एक सुसंगत मेल है। प्राकृतिक चिकित्सा और लोकोपकार के प्रति उनके समर्पण ने स्वास्थ्यसेवा और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में एक अद्भत छाप छोड़ी है। यही बात उन्हें पद्मभूषण पाने के योग्य बनाती है।
और अधिक जानकारी के लिए:
info@jindalnaturecure.org/ dr.babina@jindalnaturecure.org
https://jindalnaturecure.in/ https://www.sitaramjindalfoundation.org/
प्रमुख हस्तियों ने क्या कहा
1.श्री अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री: जिंदल इंस्टीट्यूट ऑफ नैचुरोपैथी में बिताए गए 10 दिन मेरी यादों के कैनवास का सबसे चमकीला सितारा है। नेचरक्योर, मेडिसिन की बाकी शाखाओं की तुलना में सबसे बेहतर तंत्र माना जा सकता है, क्योंकि इसमें रोग दूर करने के लिए दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मैं डॉ. सीताराम जिंदल को इस संस्थान की स्थापना के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं।
2.श्री चंद्रशेखर, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री: मैं अपने मित्र वीरेन शाह का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे और पिल्लू मोदी को इस संस्थान में आने के लिए कहा, जहां हमने अपनी आंखों से मानवता की सेवा में बेहतरीन कार्य होते हुए देखा है। मुझे खुशी है कि श्री सीताराम जिंदल ने इस प्रोजेक्ट को अपने हाथों में लिया। वे हमारे बधाई के पात्र हैं। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।
3.श्री आई.के गुजराल, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री: मैंने और मेरी पत्नी ने यहां बेहद ही यादगार 3 हफ्ते बिताए। इससे रोजमर्रा के जीवन में नैचुरोपैथी और योग को लागू करने की हमारी सोच ही बदल गई। हमारा यहां रुकना काफी अच्छा रहा। श्री एस.आर. जिंदल ने इस संस्थान के रूप में देश को एक तोहफा दिया है। इससे उनकी दूरदर्शी सोच, लगन और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का पता चलता है।
4.श्री एच.डी. देवेगौड़ा, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री: मैं डॉ. सीताराम जिंदल को दो दशकों से भी ज्यादा वक्त से जानता हूं। एक उद्योगपति और लोकोपकारी के रूप में गरीब ग्रामीणों के लिए बहुत ही महान काम कर रहे हैं। उनकी सेवाओं को व्यापक रूप से गांववालों ने सम्मान दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने के पानी की आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में उनके कार्यों को लेकर वे आभारी हैं। बेंगलुरू में एक आधुनिक दवारहित प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान खोलकर उन्होंने और भी आगे कदम बढ़ाया है। साथ ही कई सारे परोपकारी इकाईयों का भी निर्माण किया है।
5.श्री देवी लाल, भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री: हरे-भरे खूबसूरत वातावरण में स्थित, नैचुरोपैथी का यह संस्थान, शरीर और मन दोनों को ही बेहद जरूरी शांति देता है। यहां 15 दिन रहने के दौरान मुझे काफी फायदा मिला था। श्री सीतारामजी मानवता की भलाई के लिए महान सेवा कर रहे हैं।
6.श्री रामकृष्ण हेगड़े, कनार्टक के पूर्व मुख्यमंत्री: मैं इस संस्थान में नियमित रूप से आता हूं और 10 दिनों के लिए रुकता हूं। मैं पिछले ग्यारह वर्षों से ऐसा करता आ रहा हूं। यह दुनिया के किसी भी संस्थान से बेहतर है। एक आदर्श माहौल में स्थित, यहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं- पारंपरिक और आधुनिक दोनों ही प्रकार के । इस अनूठे संस्थान का निर्माण करने वाले श्री सीताराम जिंदल प्रशंसा के योग्य हैं।