29 जून 2018 बाड़मेर – कुछ दिन पूर्व बाड़मेर जिले के उनरोड गांव में 7 वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया जाता है और उसे जान से मार दिया जाता बच्ची के मरने के बाद भी उसके साथ दुष्कर्म किया जाता है। बाड़मेर देश के पश्चिमी सरहद का बॉर्डर जिला है यहां के रहवासी इतनी हैवानियत भरी घटना कैसे कर सकते हैं इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
प्रदेश में बाड़मेर जिला अपनायत के लिए अपनी साख जमाये हुए था लेकिन ऐसी हैवानियत भरी घटनाओं को देखकर हर इंसान के दिल में ख़ौफ़ पैदा हो गया है। यहां के इंसान हमेशा एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले लोग हैं लेकिन यहां पर इस तरीके की घटना होना बहुत से चीजों पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाती है ।
इस घटना को लेकर पूरे जिले में विभिन्न स्तर पर ज्ञापन दिए जा रहे हैं, इंसाफ हेतु कैंडल मार्च किये जा रहे है, परिवार को सांत्वना दी जा रही है क्योंकि इस प्रकार की घटना इंसान को झकझोर कर रख देती है और आम इंसान को डर, खौफ और हैवानियत की नज़रे सता रही है की आखिर हमारी बेटियां सुरक्षित कैसे रहे?
जब से घटना हुई है सोचने को मजबुर हुँ की जहाँ बेटी के साथ इस तरह की घिनोनी घटना हुई है उसके परिवार के साथ क्या बीत रही होगी और इस प्रकार की घटना किसी के साथ भी हो सकती है।
सवाल यह है कि इस तरह की घटनाओं पर काबु करने के लिए या इनसे बचने के लिये क्या उपाय किये जा सकते है क्योकि ऐसे सिरफिरे लोगो को तो फाँसी की सजा भी कम है।
आरोपी स्वीकार भी करता है कि मैंने इस तरह का कुकर्म किया क्योकि मुझे नशे में होने के कारण होश नही था फिर तो नशे में कोई कुछ भी कर सकता है लेकिन बात यह है कि यहां पर नीयत का सवाल है जब नियत खराब होती है तभी इस प्रकार की सोच दिमाग में आती है।
हर माता-पिता अपने बच्चे के साथ हर समय साथ में नहीं रह सकते हैं क्योकि बच्चो को विद्यालय भी जाना होता है, उसे ट्यूशन भी जाना होता है, या मित्र के वहां भी जाना होता है अगर इस तरीके की घटनाएं लगातार बढ़ती रही तो हम हमारी बच्चियों को सुरक्षित कैसे रख पाएंगे ?
पोक्सो एक्ट में हुए संशोधन में फांसी की सजा तक का प्रावधान किया गया है इससे जरूर कुछ हद तक घटनाओं पर रोक लगेगी लेकिन पूर्ण रोक कैसे लगे ?
पूर्णतः रोक लगाने हेतु हमे ही सावधान होना पड़ेगा हमारे विचार सही हो, ऐसी गंदी सोच हमारे दिमाग में ना आए उसके लिए हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए सकारात्मक सोचना चाहिए, परिवार में सकारात्मक बातें होनी चाहिए, हमारे आसपास का माहौल भी सकारात्मक होना चाहिए जिससे कि हम सकारात्मक सोच सके और ऐसा व्यवहार करें कि किसी के साथ इस तरीके की बात नहीं हो।
हम अपने स्तर पर ही प्रयास कर सकते हैं कि हमारे आसपास, हमारे घर में इस तरीके का सकारात्मक वातावरण हो और अपने बच्चों को इतना शिक्षित करें कि आप दूसरे किसी अनजान व्यक्ति या किसी अन्य अपरिचित व्यक्ति से बात ना करें, उसकी नजरों पर ध्यान दें, उसकी हरकतों पर ध्यान दें, इस तरीके का व्यवहार हमें अपनाना होगा और हमारे बच्चों को इस तरीके की शिक्षा देनी होगी और अवेयर रखना पड़ेगा उसी से हमे इस प्रकार की घटनाओं से निजात मिल सकती है।
इस घटना में बाड़मेर पुलिस ने भी अपना साहस दिखाया और घटना घटित होने के मात्र कुछ घंटों में मुलजिम को हिरासत में ले लिया। हमें पुर्ण विश्वास है कि जल्द ही चालान पेश कर मुलजिम को फाँसी की सजा मिले।
इस मामले में बाड़मेर अधिवक्ता संघ के वरिष्ट अधिवक्ताओं ने अपील करते हुए कहा है कि बाड़मेर के अधिवक्ता इस मामले में मुलजिम की पैरोकारी न करे और पीड़िता का मुकदमा बिना फ़ीस लड़ने का निर्णय किया है । वकील का पेशा मुकदमा लड़ना होता है चाहे कैसा भी हो लेकिन बाड़मेर के वकीलों ने इंसानियत का यह अनोखा उदाहरण पेश किया है ।
इस प्रकार के मामलों में आगे आना आज भी यह दर्शाता है कि अभी इंसानियत जिंदा है।
बाड़मेर जिले की खास बात हुआ करती थी की आज से दस वर्ष पूर्व यहां पर साधनों की कमी हुआ करती थी, तो लोग पड़ोसी के साथ अपनी बहन बेटी को भेज दिया करते थे उसे ससुराल पहुंचाना हो, या वहाँ से लाना हो।
इस तरीके का प्रेम भाव यहां हुआ करता था क्योकि विश्वास था, अपनापन था, प्रेम था, प्रेम की भावना थी लेकिन आज यह सब खत्म सा होता जा रहा है। इसे जिंदा रखने के लिए हम सबको मिल कर प्रयास करने पड़ेंगे। राजस्थानी में ग्वाला एक शब्द है जो गाय चराता है वो वर्षा ऋतु में महीनों पशुओं के साथ बाहर रहता था लेकिन रास्ते में उसे अपरिचित लोग उसे मेहमान की तरह घर में रखकर भोजन करवाते थे। फिर भी विश्वास था अपनापन था आज वो सब खत्म होता जा रहा है और इंसानियत की धज्जियां उड़ रही है।
पशुओं से भी बदतर इंसान हैवानियत की हदे पार करता जा रहा है ।
इसको क्या नाम दे या संज्ञा लेकिन इंसानियत का नाम खत्म होता जा रहा है।
हमारी सुझबुझ ही हमारी सुरक्षा है।।