Editor-Rashmi Sharma
जयपुर 21 सितम्बर 2020 – उपरोक्तानुसार आपसे सादर अनुरोध है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश के मिहिरभोज महान् का शासन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता जाता . गुर्जर सम्राट मिहिर भोज अपने पिता के तीन वर्ष के शिथिल शासनकाल के राजगद्दी बैठें थे !
मिहिर भोज ने अपने पितामह नागभट्ट की परम्परा को आगे बढ़ाया ,जिसकी सेना में 8 लाख पैदल , 90 हजार घोड़े ,एक हजार हाथी ,रथ सेनिकों की स्थाई संगठित सेना थी.
गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन व्यवस्था वीरता और शौर्य से भरा एक समयकाल था .
इस राजवंश ने चारों तरफ अपनी सीमा का विस्तार कन्नोज से किया .भारतीय इतिहास में सैनिकों को नगद वेतन व्यवस्था का श्रेय इसी गुर्जर वंश को था एवं इस शासन काल में प्रजा पर अत्याचारी सामंत , सैनिकों के शिथिलाचार , रिश्वतखोरी पर कठोर दंड प्रावधान था.
गुर्जर प्रतिहार वंश की राज ध्वजा पर वरहा राज चिंह अंकित था.
भोजराज , वारहावतार ,परम भट्टारक , महाराजाधिराज गुर्जर सम्राट भोज की उपाधि सें अलंकृत था यह राजवंश.
गुर्जर सम्राट मिहिर भोज महान् ….
” आदिवराह चक्रवर्ती सम्राट ”
8वी शताब्दी से लेकर 14वी शताब्दी तक राज्य किया था । यह कार्यकाल और यह राजवंश जब गुर्जर प्रतिहार सेना हर हर महादेव , जय विष्णु जय महादेव का जयकारा के साथ धावा होता था ,गुर्जर सैनिकों ने हमेशा युद्द नीति का पालन किया.
गुर्जर प्रतिहार राजवंश में कन्नोज स्वर्ण और चांदी का सबसे बडा व्यवसाहिक केन्द्र था.
अतः पर्यटन, इतिहास एवम संस्कृति को जीवित रखते हुए इनकी प्रतिमा लगाने का आदेश तुरंत प्रभाव से देकर अनुग्रहित करे।