Editor-Rashmi Sharma
जयपुर, 22 अक्टूबर, 2020 : इंडिया डायबिटीज़ केयर इंडेक्स (आईडीसीआई) के सबसे नए निष्कर्षों में यह सामने आया है कि जयपुर में पिछली तिमाही की तुलना में अप्रैल से जून 2020 की अवधि में लॉकडाउन के बावजूद ग्लायकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन या एचबीए1सी का स्तर और खराब नहीं हुआ है, बल्कि यह 8.50% से गिरकर 8.32% पर आ गया है। आईडीसीआई नोवो नॉर्डिस्क इंडिया के ‘इम्पैक्ट इंडिया : 1000 डे चैलेंज’ कार्यक्रम का एक भाग है और समग्र रुप से विभिन्न शहरों, राज्यों, और देश में डायबिटीज़ देखभाल की स्थिति के लिए एक गाइडिंग टूल की तरह कार्य करता है।
किसी भी व्यक्ति में एचबीए1सी की वैल्यू तीन महीनों से ज़्यादा के समय में खून में ग्लूकोज़ के औसत स्तर के बारे में जानकारी देती है और इसे लंबी अवधि में खून में ग्लूकोज़ के नियंत्रण हेतु सिफारिश किए गए सर्वश्रेष्ठ संकतकों में से एक माना जाता है। 56 वर्ष की औसत आयु के साथ करीब 300 लोग जयपुर में किए गए आंकलन का हिस्सा थे जिनमें से 39% पुरुष और 61% महिलाएँ थी। इसके अलावा इस तिमाही में पोस्ट प्रैंन्डियल (भोजन के बाद) ग्लूकोज़ का स्तर 265 एमजी/डीएल था और औसत फास्टिंग (खाली पेट) ग्लूकोज़ का स्तर 170 एमजी/डीएल।
जयपुर में एचबीए1सी स्तर में आए बदलाव के बारे में बात करते हुए डॉ. अजय शाह, जयपुर के सीनियर एन्डोक्राइनोलॉजिस्ट ने कहा, “आईडीसीआई के नवीनतम आंकड़ें सकारात्मक हैं और यह संकेत देता है कि सोशल डिस्टेंसिंग की सीमाओं और घरों में रहने के बावजूद डायबिटीज से पीड़ित लोग इस बीमारी को मैनेज करने के बारे में बहुत जागरूक हैं और यह काफी प्रोत्साहन वाला है। मुझे उम्मीद है कि महामारी और अनलॉक की प्रक्रिया के बावजूद यह ट्रेंड जारी रहेगा।”
एचबीए1सी स्तर में बदलाव का ट्रेंड एक राहत का संकेत है क्योंकि कोविड-19 या कोरोना वायरस से गंभीर जटिलताएँ विकसित होने का बड़ा खतरा डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों को है। यह दर्शाया गया है कि ज़्यादा उम्र के वयस्क जो पहले से मौजूद चिकित्सकीय स्थितियों जैसे उच्च रक्त चाप, हृदय रोग और फेफड़ों संबंधी विकृतियों और मोटापे से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित हैं, ऐसे लोगों में कोविड 19 के कारण गंभीर समस्याएँ अनुभव करने का खतरा भी बहुत ज़्यादा है।
डायबिटीज़ से पीड़ित मरीज़ों को घर में ही खून में ग्लूकोज़ की निगरानी के लिए दवाईयों और आपूर्ति का पर्याप्त स्टॉक बनाए रखना चाहिए। किसी भी तरह की चेतावनी के संकेत जैसे साँस लेने में तकलीफ या साँस फूलना, बुखार, सूखी खाँसी, थकान, दर्द, गले में खराश-परेशानी, सिरदर्द, स्वाद और गंध का पता न लगना आदि को अनदेखा नहीं करना चाहिए और तुरंत मेडिकल जाँच की व्यवस्था करनी चाहिए।
वर्तमान में भारत में 7.7 करोड से ज़्यादा लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। भारत सरकार ने डायबिटीज़ के ज्ञात/बीमारी का निदान किए गए लोगों को डॉक्टर की पर्ची पर आशा कार्यकर्ताओं या एसएचसी के ज़रिए दवाईयों की तीन महीनों तक की आपूर्ति का प्रावधान किया है। आईडीसीआई के कार्यक्रम के बारे में बात करते हुए डॉ. अनिल शिंदे, ट्रस्टी, नोवो नॉर्डिस्क एजुकेशन फाउंडेशन ने कहा, “इम्पैक्ट इंडिया कार्यक्रम के एक भाग के तौर पर आईडीसीआई के ज़रिए उपलब्ध कराए गए त्रैमासिक डाटा से हमें देश के सभी शहरों में एचबीए1सी स्तर को लेकर ट्रेंड की पहचान करने में सहायता मिली है। हमारे निरीक्षण में यह सामने आया है कि कोलकाता, चंडीगढ़, हैदराबाद, गोवा और गुवाहाटी जैसे शहरों के डायबिटीज से पीड़ित लोग एक सख्त दिनचर्या का पालन करते हुए, जिसमें सेहतमंद डाइट और नियमित एक्सरसाइज शामिल है, वर्तमान परिदृश्य में ग्लाइको हीमोग्लोबिन का स्तर कम बनाए रखने में समर्थ रहे हैं। इस समय घऱ पर ही डायबिटीज़ प्रबंधन करने की सिफारिश की जाती है क्योंकि हमारी चिकित्सा प्रणाली के सामने कोविड-19 महामारी से निपटने की बेहद गंभीर चुनौती मौजूद है।”
‘इम्पैक्ट इंडियाः 1000-डे चैलेंज’ प्रोग्राम नवंबर 2018 में लॉन्च किया गया था, ताकि भारत में डायबिटीज के अपर्याप्त नियंत्रण की समस्या का समाधान किया जा सके। इस प्रोग्राम का उद्देश्य है एचबीए1सी के राष्ट्रीय औसत को घटाकर 1 प्रतिशत करना, जिससे भारत में डायबिटीज से सम्बंधित जटिलताओं का जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है। बिग डेटा एनालिटिक्स के आधार पर आईडीसीआई भारत के चयनित शहरों में औसत एचबीए1सी का रियल-टाइम व्यू दे रहा है। इम्पैक्ट इंडिया प्रोग्राम के अंतर्गत स्वास्थ्यसेवा पेशेवरों (डॉक्टरों और पैरामेडिक्स) के साथ भागीदारी के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग किया जा रहा है, ताकि भारत में डायबिटीज के उपचार को बेहतर बनाने के लिए एक दृष्टिकोण को विकसित कर उसे लागू किया जा सके। आईडीसीआई एक डायनैमिक टूल है, जो न सिर्फ डायबिटीज केयर की स्थिति बताता है बल्कि स्वास्थ्यसेवा पेशेवरों (एचसीपी) एवं समाज के बीच जागरूकता फैलाने, उन्हें प्रेरित करने तथा संवेदनशील बनाने में भी मदद करता है। इम्पैक्ट इंडिया प्रोग्राम स्वास्थ्यसेवा पेशेवरों (एचसीपी), समाज/रोगी के साथ संलग्नता और निगरानी द्वारा संवाद के जरिये अगले दो वर्षों में तीन बिन्दुओं वाले अपने दृष्टिकोण को जारी रखेगा।